जीवनशैली

अगर आप भी आपने बच्चो पर रखती है नज़र तो हो जाये सावधान

नई दिल्ली। आप स्कूल के दोस्तों से बैठे बात कर रहे हों। अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ हों। कहीं पार्क में खेल रहे हों या सिनेमाघर में फ़िल्म देख रहे हों और मां या पिता की ‘ड्रोन जैसी निगाह’ आपका हमेशा पीछा करती रहे। मां-बाप की ऐसी आदत को हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग कहा जाता है। काजोल की फ़िल्म ‘हेलिकॉप्टर इला’ रिलीज़ हो गयी है। फ़िल्म की कहानी भी एक मां की इसी आदत के इर्द-गिर्द है। फ़िल्म में काजोल एक सिंगल मदर इला का किरदार निभा रही हैं। इस टर्म का पहली बार इस्तेमाल साल 1969 में हुआ था। डॉ हेम गिनोट्ट ने अपनी किताब ‘पेरेंट्स एंड टीनएजर्स’ में इसका ज़िक्र किया था। किताब में एक बच्चा ये कहता है कि मेरे मां-बाप हेलिकॉप्टर की तरह मुझ पर मंडराते रहते हैं। 2011 में इस टर्म को डिक्शनरी में भी शामिल कर लिया गया। ऐसा नहीं है कि बच्चों के आसपास मंडराने की इस लत को सिर्फ़ इसी नाम से पुकारा जाता है। लॉनमोवर पैरेंटिंग, कोस्सेटिंग पेरेंट या बुलडोज़ पैरेंटिंग भी ऐसी आदतों के कुछ और नाम हैं। आप भी अपने बच्चे की परवाह करते होंगे। लेकिन ये परवाह कब हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग बन जाती है। इसके लिए आपसे कुछ सवाल पूछते है।
– बच्चा खाली वक़्त में क्या करेगा, ये हर बार आप ही तय करते हैं?
– बिना बच्चे के पूछे आपका तय करना कि वो दोस्तों से मिलने क्या पहनकर जाए?
– आप रोज़ बच्चे के 24 घंटों का हिसाब लेते हैं?
– डर के चलते बच्चों का कुछ रोमांचक करने की चाहत को पूरी तरह ख़ारिज कर देते हैं?
– आपको लगता है कि हर हाल में बच्चे की रक्षा करनी चाहिए, चाहे जैसे?
अगर इन सभी सवालों में आपका जवाब हां है तो संभवत: आप हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग करते हैं।एजुकेशन एक्सपर्ट पूर्णिमा झा ने ख़ास बातचीत की। पूर्णिमा समझाती हैं, ”हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर में फ़र्क़ ये है कि हेलिकॉप्टर आपको हर जगह फॉलो कर सकता है। जब बच्चों को पालते हुए आप भी यही करते हैं तो ये हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग हो जाती है। ज़्यादा फ़िक्र करना या नज़र बनाए रखना इसकी पहचान है। बीते पांच या दस सालों में ये काफ़ी बढ़ी है। इसकी वजह असुरक्षा का भाव भी होता है। आज कल आप देख ही रहे हैं कि गुड टच और बैड टच पर इतनी बात हो रही है।”
हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग के ख़तरे क्या हैं?
– बच्चों का आत्मविश्वास बेहद कमज़ोर हो जाएगा।
– बच्चों का मन डरपोक हो सकता है।
– फ़ैसला लेने की ताक़त का विकसित न होना।
– खुद कुछ नया सीखने की क्षमता कम हो जाएगी।
– भावनात्मक तौर पर कमज़ोर हो जाएंगे।
– अचानक हुई घटनाओं के लिए बच्चे तैयार नहीं होंगे।
– बाहरी दुनिया के लिए नहीं तैयार हो सकेंगे बच्चे।
फिल्म ‘हेलिकॉप्टर इला’ में काजोल सिंगल मदर के किरदार निभाने वाली अल्का कहती हैं, ”मां के सामने जब बच्चा बड़ा होता है तो उसे एहसास नहीं होता कि बच्चा बड़ा हो रहा है, वो बच्चा ही रहता है। बड़े होने के साथ बच्चों को स्पेस चाहिए होता है। इस बीच में मां बच्चे की पैरेंटिंग करती है। बच्चों पर नज़र रखने और परेशान होने के क्रम में एक मोड़ आता है, जब परवाह हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग बन जाती है। मैंने भी ऐसा किया है।” अल्का ने कहा, ”एक सिंगल मदर के तौर पर हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग ज़्यादा होती है। ज़िम्मेदारियों का बोझ ज़्यादा होता है। औरतें वैसे भी ज़्यादा सोचती हैं तो हम सबसे ख़राब बातों को मन में सोच लेते हैं। जिससे बच्चों को आज़ादी देने में वक़्त लगता है। मेरा मानना है कि बच्चों से डॉयलॉग बनाए रखना चाहिए। बच्चों के हिसाब से थोड़ी सी ढील देनी चाहिए।” अगर बात की जाये समाधान की तो ‘मैंने ये कर लिया।’ इस भाव का आपके बच्चे के मन के अंदर आना बेहद ज़रूरी है। पूर्णिमा झा इसे समझाती हैं, ”अगर आप स्कूल के होमवर्क से लेकर किन दोस्तों के संग खेलना है, ये तय कर रही हैं तो इसके नुकसान समझिए। आपका बच्चा फ़ैसला नहीं ले पा रहा है। मगर आप ऐसा न करें तो वो धीरे-धीरे ज़िंदगी के फ़ैसले लेने लगेगा। क्योंकि आपके बच्चों को दुनिया का सामना अकेले करना होगा। वरना उसे आदत हो जाएगी कि मेरी मां या पापा हमेशा मेरे साथ हैं। हर मां-बाप अपने बच्चे का अच्छा चाहते हैं लेकिन एक सीमा पर जाकर रुकना होगा।”
सोचकर तय कीजिए- आपकी मदद के बिना बच्चा क्या-क्या कर सकता है?
– बेपरवाही और फिक्र के बीच बैलेंस बनाइए
– सॉरी कहने की ताकत को समझाइए
– प्यार और दुलार से बच्चे की ज़िम्मेदारी तय कीजिए
– सही और गलत के बीच फर्क बताइए
– बच्चा एक कदम बढ़ा सके इसलिए अपना एक कदम पीछे कीजिए
– बच्चों के रिस्क लेने से डरिए मत
– बच्चों की उम्र के हिसाब से आज़ादी दीजिए
– बच्चों को आदेश देने की बजाय हँसी मज़ाक, गले लगने जैसे संबंध बनाइए
– परफेक्ट पैरेंट की बजाय अच्छा पैरेंट्स बनने की कोशिश करिए
अल्का ने कहा, ”इसे करने से नुकसान ये होता है कि बच्चा समर्थ नहीं पो पाता है। वो तैयार नहीं हो पाता है। इसमें बेहतर ये रहेगा कि माता, पिता खुद पर कंट्रोल करते हुए बच्चों को कुछ छूट दें ताकि वो खुद फ़ैसला ले सके। वो गलती करें तो करें। हालांकि माता-पिता को ये पता नहीं चल पाता है कि वो कब हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग कर रहे हैं। अगर ये हो सके कि बच्चों से फीडबैक लिया जा सके। इतना स्पेस तो देना चाहिए कि बच्चा कुछ ग़लत करे तो वो लौटकर आ सके और कहे कि अब मैं आपसे सहमत हूं।”

Related Articles

Back to top button