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अब चीन को सताने लगी है नई चिंता, भारतीय ही अमेरिका में CEO क्यों बन जाते हैं?

चीन को भारतीयों से जुड़ी एक नई परेशानी सताने लगी है. वह यह कि लगभग सभी दिग्ग्ज अमेरिकी कंपनियों के सर्वोच्च पद भारतीयों के पास है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट झलक रही है.

अब चीन को सताने लगी है नई चिंता, भारतीय ही अमेरिका में CEO क्यों बन जाते हैं?अखबार में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि, ‘भारत के तमिलनाडु में पैदा हुए सुंदर पिचाई अगस्त 2015 में गूगल के सीईओ नियुक्त हुए जबकि तेलंगाना में जन्मे सत्या नडेला 2014 में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने.

इन दोनों के अलावा, सैनडिस्क, अडोबी सिस्टम्स, पेप्सिको, हरमन इंटरनेशनल और कॉग्निजेंट के सीईओ भी भारतीय मूल के ही हैं. इसके उलट चीनी मूल के लोग शायद ही बड़ी अमेरिकी कंपनियों के सीईओ हैं.

रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आखिर भारतीय इतनी बड़ी तादाद में मल्टिनैशनल कंपनियों के सीईओज क्यों बन रहे हैं, जबकि कारोबारी जगत से जुड़े चीनी मूल के लोग पिछड़ रहे हैं.

चीन की यह परेशानी इसलिए भी है कि पश्चिमी शिक्षा हासिल करने वाले चीनी लोगों की संख्या भारतियों से ज्यादा ही होती है. देखा जाए तो 2016-17 में 3,50,755 चाइनीज स्टूडेंट्स ने अमेरिकी यूनवर्सिटीज में एडमिशन लिए जबकि सिर्फ 1,85,000 भारतीयों को यह मौका मिला.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीनियों का पिछड़ना केवल व्यक्तिगत हार नहीं है. इसे बड़े परिदृश्य में देखना चाहिए. भारत का सॉफ्ट पावर बढ़ रहा है. इससे भारत टेक्नॉलजी सेक्टर में अमेरिकी कंपनियों की नजर में आकर्षक बन सकता है.

इस रिपोर्ट में भारत और चीन बिजनेस जगत के लोगों से भी बात की गई. उनके मुताबिक, काम और भाषा सीखने में भारतियों को इसलिए महारत हासिल है क्योंकि वो अलग-अलग संस्कृतियां अपनाने में मददगार होते हैं. जबकि अमेरिका में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स चीन लौटकर यहीं की अर्थव्यवस्था पर फोकस करना पसंद करते हैं.

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