दस्तक-विशेष

अब वही पप्पू बन गया नेता

परदे के पार
क्रिकेट का मैदान छोड़ने के बाद उन्होंने भगवा पार्टी का दामन थामा और अपनी लोकप्रियता के बल पर संसद तक पहुंच गये। उधर उनकी नामाराशि पत्नी भी विधायक बन गयीं। इस बड़बोले सिख नेता को जब केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया तो वह नाराज हो गए और कमल छोड़ ‘झाड़ू’ थामने की भी खबरें आयीं लेकिन अंत में उन्होंने ‘पंजे’ को अपनाया। दिलचस्प बात तो यह है कि जिस नेता को उन्होंने ही ‘पप्पू’ नाम दिया था उसी ने न सिर्फ उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलायी बल्कि पंजाब में चुनाव प्रचार की कमान भी सौंप दी। लेकिन उनका वहां मुख्यमंत्री के प्रत्याशी एवं पार्टी के कैप्टन से छत्तीस का आंकड़ा है। अब देखना है कि उनकी इस पार्टी में कैसी निभती है।

 

रामपुरी खां साहब की मेहनत
पिता-पुत्र के बीच चल रही उठापटक को शांत करने के लिए रामपुरी खां साहब ने मध्यस्थ की भूमिका निभायी। कभी लगता था वह सफल हो गये हैं लेकिन अगले ही पल कुछ नयी बात सामने आ जाती। लेकिन खां साहब भी कहां मानने वाले थे। साइकिल चुनाव चिन्ह बच जाने के बाद उनकी खुशी दोगुनी हो गयी। बोले, मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू आ गया। साइकिल भी बच गयी और नेताजी भी मिल गए। दरअसल खां साहब की चिन्ता का सबब उनका बेटा था जिसे उन्होंने चुनाव मैदान में इस बार उतारा है। यदि पार्टी में टूट-फूट हो जाती तो इसका असर उनके चुनाव पर तो इतना नहीं पड़ता लेकिन बेटे के चुनाव पर असर पड़ने की पूरी संभावना थी। इसीलिए उन्होंने दोनों धड़ों को एक करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया।

 

कभी मुलायम तो कभी सख्त
साइकिल वाली पार्टी में पिछले दिनों बड़ा उलटफेर हुआ। अब तक जो मुखिया थे उन्हें जबरिया संरक्षक बना दिया गया। जिसके बाद तो रिश्तों में खटास आनी ही थी। हालांकि यह भी चर्चा आम हुई कि पार्टी में जो कुछ भी घटा उसकी पटकथा पहले ही लिख दी गयी थी। लेकिन पार्टी की नींव रखने वाले नेता को सभी को मैनेज करना था, पुत्र को भी और भाई को भी। ऐसे में वे कभी सख्त हो जाते तो कभी मुलायम। कभी कहते प्रचार करने नहीं जाऊंगा तो कभी प्रचार पर जाने की तारीखों का ऐलान कर देते। उनके रुख से कार्यकर्ता बुरी तरह भ्रमित हैं तो वहीं पार्टी के मतदान करने वाले मतदाता भी। अब तो चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में इसका मतदान और परिणाम पर क्या असर होगा, इसकी चर्चा अब आम हो गयी है।

 

सीएम की बेटी और बहू में जंग
दो राजनैतिक घराने चुनावी मैदान में आमने सामने हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्री हैं तो दूसरी एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्रवधू। इन दोनों के बीच चुनावी जंग को लेकर विधानसभा क्षेत्र ही नहीं पूरे जिले में चर्चाएं आम हैं। दरअसल जो पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्री हैं वह इसी सीट से वर्तमान में भी विधायक हैं लेकिन अब उन्होंने पाला बदल लिया है। वहीं जो पुत्रवधू हैं उन्होंने राजनीति में नया-नया कदम रखा है लेकिन हैं पूरे जोश में। उधर वर्तमान विधायक के पाला बदलने और पंजे का साथ छोड़ कमल थामने से क्षेत्रीय जनता नाखुश है। वहीं भगवा दल से अब तक टिकट की दावेदारी ठोक रहे नेता भी भितरघात करने की तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में अब यह लगने लगा है कि ऐसे हालात में कहीं कोई तीसरा न बाजी मार ले जाये और यह दोनों राजनैतिक घराने टापते रह जायें।

 

पप्पू और बबुआ की जोड़ी
पिछले दिनों ‘साइकिल’ को पकड़ने के लिए जब हाथ कम पड़ गए तो फिर पार्टी ने ‘पंजे’ का सहारा लिया। उसके बाद दोनों ही दलों के युवराज मिले और साथ ही साथ रोड शो भी किया। एक दल के युवराज को पप्पू की संज्ञा मिली हुई है तो दूसरे को बबुआ की। दोनों के मिलन की तुलना गंगा-यमुना के मिलन से की गयी। वहीं दोनों की जोड़ी को देखकर कुछ लोगों को कामिक्स के उन दो पात्रों की याद ताजा हो गयी जो मोटू और पतलू के नाम से प्रसिद्ध हैं। मोटू और पतलू की जोड़ी की तर्ज पर जब युवराजों की यह जोड़ी सड़कों पर ‘यूपी को यह साथ पसन्द है’ स्लोगन के साथ निकली तो लोग कयास लगाने लगे कि पप्पू और बबुआ की जोड़ी चुनाव में क्या रंग लाती है।

 

टिकटों को लेकर कलह
चाहे सत्तारूढ़ दल हो या फिर भविष्य में सत्ता में आने के दावे करने वाला दल हो, सभी टिकटों के बंटवारे के बाद भी चैन से नहीं हैं। हर दल के कार्यालय में विरोध हो रहा है। स्थिति यह है कि हर कोई अपने विरोधी से नहीं बल्कि अपनों से लड़ रहा है। हर तीसरे विधानसभा सीट पर एक बागी ताल ठोंकता आसानी से देखा जा सकता है। सोशल मीडिया में तो एक दल के सूबाई मुखिया को तो मुंह पर गाली देते वीडियो तक वाइरल हुआ। साइकिल में भी वही स्थिति है जो कमल में है। कुछ बागी तो आत्मदाह तक करने पर आमादा हो गए लेकिन पार्टियों को दूसरे दलों से आये नेता ज्यादा भा रहे हैं। भगवा पार्टी ने तो अपने सात बार के विधायक तक का टिकट काट दिया। कुछ यही हाल साइकिल की सवारी करने वालों की भी हुई। अब वे तो दूसरे दलों में शामिल होकर अपने ही पुरानों को चुनौती देते दिख रहे हैं।

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