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अभी-अभी: कश्मीर में सीजफायर खत्म होते ही आतंकियों पर सेना का प्रहार, 48 घंटे में 7 ढेर

कश्मीर में पत्थरबाजी, आतंकी वारदातें और आतंकियों से मुठभेड़ तो पहले भी होती रही हैं. लेकिन बीते तीन सालों में ये सारी घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ीं. इसे सरकार की खुद की उहापोह कहें या फिर कोई बड़ी साजिश लेकिन कश्मीर में बीते तीन सालों का हिसाब किताब बेहद चौंकाने वाला है.

पत्थरबाज़ी की 4799 घटनाएं हुईं. पथराव में सुरक्षाबलों के करीब 12 हज़ार जवान घायल हुए. तीन साल में 591 आतंकवादियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया. लेकिन इस दौरान सुरक्षाबलों के 252 जवान शहीद भी हो गए.

आतंकियों की अब खैर नहीं

सीजफायर खत्म होते ही बांदीपुरा की जंगलों में आतंकियों के छुपे होने की खबर मिलते ही सेना ने मोर्चा संभाल लिया. सुरक्षाबलों को पता चला था कि गुरेज एरिया से 6 आतंकी भारतीय में घुसे हैं, जिसके बाद ऑपरेशन में 18 जून को 2 आतंकियों को मार गिया गया. जबकि अगले दिन 19 जून को भी 2 आतंकी ढेर कर दिए गए. मारे गए सभी आतंकी लश्कर से जुड़े हुए थे.

उसके बाद 19 जून को त्राल में सेना को बड़ी कामयाबी मिली. यहां के हयना गांव में आतंकियों को घेर का ऑपरेशन चलाया गया, और 3 आतंकियों को मार गिराया गया, ये तीनों आतंकी संगठन जैश से जुड़े थे.

बीजेपी को कश्मीर में पहली बार पैठ बनाने का मौका, और पीडीपी की सत्ता में वापसी की कसमसाहट, बस यही एक सूत्र था जिसने कश्मीर में हर तरह से बेमेल गठबंधन को सरकार में पिरो दिया था. तीन सालों तक कश्मीर की सियासत की ऊबड़खाबड़ सड़कों पर उछलने कूदने के बाद आखिरकार मंगलवार को सारे गठबंधन के सारे बंधन टूट गए गए. तीन साल की शादी में लगातार झगड़ते रहने वाले पति पत्नी की तरह कश्मीर की सरकार भी उसी अंजाम तक पहुंची जो ऐसे जोड़े का होता है…तलाक.

जिस आतंकवाद और कट्टरपंथ का हवाला देकर बीजेपी ने पीडीपी को तलाक दिया, उसके बारे में दोनों पार्टियों की राय कितनी अलग-अलग थी. और ये तो हर हिंदुस्तानी समझता है. लेकिन इस बेमेल शादी की कीमत कश्मीर में जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करने वाली सेना को चुकानी पड़ेगी, इस हद तक शायद कोई नहीं सोच पाया था. लेकिन हुआ यही.

दिन-रात आतंकियों और पत्थरबाजों से जूझने वाले हमारे जवानों के साथ कश्मीर की सरकार का ये सलूक मनोबल तोड़ने वाला था. ऐसे तमाम मामलों में जवानों को महबूबा सरकार का गुस्सा झेलना पड़ा तो सत्ता की पार्टनर बीजेपी से वाहवाही मिली. एक ही सरकार के दो धड़ों के अलग-अलग बर्ताव ने सुरक्षाबलों के सामने जबर्दस्त कश्मकश के हालात पैदा कर दिए कि वो आतंकियों और पत्थरबाजों के खिलाफ कार्रवाई करें कितनी और किस हद तक जाकर करें, और फिर आया रमजान के दौरान सीजफायर का फैसला. माना जाता है कि केंद्र सरकार ने ये फैसला भी महबूबा मुफ्ती के दबाव में लिया. लेकिन इस एक महीने के दौरान आतंकियों और पत्थरबाजों के जो हौसले बुलंद हुए उसने कश्मीर से लेकर दिल्ली सरकार तक की नीयत पर ही सवाल खड़े कर दिए.

सीजफायर के खात्मे के ऐलान से ठीक पहले सेना प्रमुख ने शहीद औरंगजेब के पिता से मुलाकात कर ये इशारा दे दिया था कि इस शहादत का पूरी सेना को कितना अफसोस है, और बदले के लिए शहीदों के साथी किस कदर बेचैन हैं. बंधन खुलने के बाद कश्मीर अब एक बार फिर करीब करीब केंद्र यानी मोदी सरकार के हवाले है. अब न तो आतंकियों से हमदर्दी की मजबूरी है.

आंकड़े गवाह हैं पिछले तीन सालों में कश्मीर में आतंकियों का सबसे ज्यादा सफाया हुआ है. लेकिन उतनी ही तेजी से नए आतंकी और उनके हमदर्दों ने भी सिर उठाया है, इनसे निपटने में सेना के आड़े आने वाली सियासत अब जमींदोज हो चुकी है. उम्मीद है कि कश्मीर अमन के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ेगा.

जम्मू-कश्मीर में एक तरफ सरकार गिरी तो दूसरी तरफ सेना के ऑपरेशन ऑल आउट ने फिर से जोर पकड़ लिया है. कल पुलवामा में तीन आतंकियों को ढेर कर दिया गया, तीनों जैश के आतंकी थे और एक मकान में छिपे हुए थे.

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