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आषाढ़ी एकादशी आज, चातुर्मास शुरू, न करें शुभ कार्य


ज्योतिष डेस्क : ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि भगवान विष्णु अवतार इस दौरान चार मास तक पाताल में राजा बलि के यहां निवास करते हैं। शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलने वाले चातुर्मास को शत्रु नाश की अवधि भी कहते हैं इसमें श्रद्धालुओं को व्रत आैर पूजन से भगवान को प्रसन्न करने की सलाह दी जाती है। इस बार देवशयनी एकादशी या आषाढ़ी एकादशी यानि 23 जुलाई 2018 से हरिप्रबोधनी एवं देवउत्थान एकादशी तक यानि 19 नवम्बर 2018 तक चातुर्मास रहेगा। इस अवधि में प्रतिदिन सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए।

जानकारों के अनुसार इस व्रत में कुछ खाद्य पदार्थों को पूर्ण रूप से त्यागने का सिद्धांत है। जैसे सावन मास में साग-सब्जी, भाद्रपद मास में दही, अश्वनी मास में दूध और कार्तिक मास में दालें नहीं ग्रहण करनी चाहिए। चातुर्मास का व्रत करने वाले व्यक्ति को चारपाई पर सोना, मांस मदिरा का सेवन करना, शहर आदि का त्याग करना भी वर्जित होता है। इस अवधि में जमीन पर शयन करना चाहिए आैर पूर्णत: शाकाहारी भोजन करना चाहिए। कहते हैं इस अवधि में गुड़, तेल, दूध, दही, बैंगन, आैर हरी सब्जी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। ज्ञानियों के अनुसार चातुर्मास में हर खाद्य पदार्थ के त्याग में एक निहित अर्थ होता है, जैसे गुड़ का त्याग करने से मधुर स्वर प्राप्त होता है, तिल का त्याग करने से संतान की प्राप्त होती है और अंग-प्रत्यंग सुंदर हो जाते हैं, कड़वे तेल के त्याग से शत्रु का नाश होता है जी के त्याग से सौंदर्य मिलता है हरी सब्जी के त्याग से बुद्धि एवं संतान प्राप्त होती है, आैर वंश वृद्धि होती है।

चातुर्मास में जो व्यक्ति उपवास करते हुए नमक का त्याग करता है उसके सभी पूर्व कर्म सफल होते हैं। चातुर्मास में प्रभु की आराधना में पुरुष सूक्त, विष्णु सहस्रनाम अधिकार का नित्य पाठ करना चाहिए और ओम नमो भगवते वासुदेवाय या विष्णु गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार चातुर्मास में जो भर्ती विष्णु सूक्त की आरतियां तिल और चावल के साथ करता है वह निरोगी हो जाता है, जो व्यक्ति पुरुष सूक्त का पाठ करता है उसकी बुद्धि में वृद्धि होती है। इस अवधि में व्रत का भी बड़ा महत्व है आैर उसके भिन्न-भिन्न स्वरुप है। दिन में 1 बार भोजन करने से, लगातार उपवास कर के चौथे दिन भोजन करने से, आैर सप्ताह में एक दिन भोजन करने से अलग-अलग लाभ होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नक्षत्रों का दर्शन करके एक ही बार भोजन करता है वह धनवान, रूपवान एवं माननीय होता है आैर उसे अपने भाई-बहन, बंधुओं से कभी वियोग योग नहीं होता।

चातुर्मास में जो व्यक्ति एक दिन के अंतर में भोजन करता है वह सदा बैकुंठ धाम में निवास करता है, जो व्यक्ति छठे दिन भोजन करता है वह एवं अश्वमेघ यज्ञ आैर राज सूर्य यज्ञ का संपूर्ण फल प्राप्त करता है। जबकि 38 उपवास करके चौथे दिन भोजन करते हुए पूजन करता है वह व्यक्ति इस संसार में पुनर्जन्म नहीं लेता। चतुर्दशी व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण भोज करने की बात भी कही जाती है। चातुर्मास के हर माह में अलग अलग देवी देवता की पूजा का विधान है। जैसे आषाढ़ के महीने में अंतिम समय में भगवान वामन और गुरु पूजा का विशेष महत्व होता है। वहीं सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना होती है। जबकि भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्म होता है और उनकी पूजा की जाती है। आश्विन के महीने में देवी के शक्ति रूप की उपासना की जाती है, इसके बाद अंत में चौथे माह में यानि कार्तिक में देवउत्थान एकादशी को पुनः भगवान विष्णु का जागरण होता है और सृष्टि में मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं, इसलिए इस माह में विष्णु जी की ही पूजा होती है।

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