अद्धयात्म

आस्था को फर्क नहीं पड़ता ‘सरस्वती’ कल्पना है या सच्चाई

तथ्यों और विज्ञान की गुलाम नहीं आस्था, भावना ही मुख्य है

प्रयाग में माघ मेले की धूम है और देश-विदेश से श्रद्धालु और सैलानी यहां आ रहे हैं। भारत की 3 प्रमुख नदियों – गंगा, यमुना और सरस्वती। के संगम पर यह महीने भर माघ मेले की धूम रहती है। देश में गंगा और यमुना के अस्तित्व को किसी सबूत की जरूरत नहीं। लेकिन सरस्वती के अस्तित्व को लेकर अक्सर चर्चा उठ जाती है। क्योंकि यह नदी विलुप्त हो चुकी उन नदियों में शामिल है जिनके मात्र निशां बाकी हैं। यहां जानें, सरस्वती के अस्तित्व और महत्व से जुड़ी खास बातें…आस्था को फर्क नहीं पड़ता 'सरस्वती' कल्पना है या सच्चाई
मान्यातों में यहां मौजूद है सरस्वती

क्योंकि सरस्वती नदी देखने को नहीं मिलती है इसलिए कई लोग इसके अस्तित्व पर संदेह करते हैं। लेकिन वेदों के जानकार इस नदी का उल्लेख पुराणों और वेदों में बताते हैं। हिन्दू धर्म के चार वेदों में से एक ‘ऋग्वेद’ में बताया गया है कि सरस्वती नदी धरती पर किस कहां मौजूद है तथा कहां से होकर बहती है। यदि ऋग्वेद की इस जानकारी को वर्तमान समय से जोड़कर देखें तो आज के समय में यह नदी यमुनानगर में मौजूद है।
सबसे बड़ी नदी होने का गौरव

मान्यता के अनुसार, सरस्वती नदी भारत देश की दो विशाल नदियों गंगा और रावी से भी बड़ी नदी होने का गौरव हासिल था। लेकिन विलुप्त हो जाने या पूर्ण जानकारी के अभाव में इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिल पाते हैं। जबकि वैदिक तथ्यों के अनुसार, यह नदी पहाड़ों से बहती हुई समुद्र में आकर मिलती है। इसी कारण कई बार सरस्वती नदी को महज एक वैदिक कथा मान लिया जाता है। बावजूद इसके नदी की तलाश आज भी जारी है और कई साक्ष्य भी मिले हैं।
कई ग्रंथों में मिलता है सरस्वती का जिक्र

विभिन्न ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘यमुना के पूर्व’ और ‘सतलुज के पश्चिम’ में बहती हुई बताया गया है। जबकि उत्तर वैदिक ग्रंथों में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है। महाभारत में सरस्वती नदी का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार, मरुस्थल में ‘विनाशन’ नामक जगह पर सरस्वती नदी विलुप्त हो गई है। महाभारत में सरस्वती को देवी की तरह वर्णित किया गया है और बताया गया है कि ये अपने सभी पुत्रों के साथ विलुप्त हो गईं।
इसलिए कहा जाता है सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी

वेद रचते समय ऋषियों ने किया सरस्वती के जल का पान धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि वेदों की रचना मुनियों ने सरस्वती नदी के किनारे ही की। इस दौरान उन्होंने इसी के जल का सेवन किया। इसी कारण इन्हें ज्ञान और विद्या की देवी के तौर पर पूजा जाने लगा। वैदिक काल में सरस्वती को सबसे पवित्र नदी माना जाता था और धार्मिक कर्मकांडों में इसी के जल का उपयोग किया जाता था।
विलुप्त होने के बाद मिली यह संज्ञा

वैदिक काल में ऋषियों द्वारा सरस्वती को केवल ज्ञान की देवी कहा जाता था और नदी के तौर पर ही इनका वर्णन किया गया। जबकि इनके विलुप्त हो जाने के बाद रचित ग्रंथो में इन्हें वाणी की देवी की संज्ञा दी गई।
वैज्ञानिक स्वीकारते हैं यह सच

वैदिक जानकारी के साथ ही आज के वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यमुना और सतलुज नदी के बीच एक के साक्ष्य हैं लेकिन इसे घग्गर नदी के नाम से जाना जाता है। इसी नदी को पाकिस्तान में हाक्रा कहकर पुकारा जाता है। नदी के अस्तित्व से जुड़े साक्ष्य इसकी विशालता को प्रमाणित करते हैं। सरस्वती नदी का इतिहास भारत में हड़प्पा सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है। वेदों में वर्णित तथ्यों और उपस्थित साक्ष्यों के आधार पर वैज्ञानिक आज भी सरस्वती नदी की खोज और इसके विलुप्त हो जाने के कारण ढ़ूंढ रहे हैं।

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