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इश्क से मात खा रहा नक्सलवाद, बंदूक छोड़कर थाम रहे एक-दूसरे का हाथ

रायपुर : इतिहास गवाह है, प्रेम को पाने के लिए या फिर खोने पर न जाने कितने राज्य तबाह हो गए। प्रेम के कई रूप हैं। सबरी के जूठे बेर को भगवान श्रीराम ने जिस भाव के साथ खाया था, वह भी प्रेम ही था। यही प्रेम आज नक्सलियों के लिए सिरदर्द बन गया है। प्रेम की ही ताकत थी, जो अकेले बस्तर में दस साल में सौ से ज्यादा युवक-युवतियां बंदूकें त्याग शादी की और समाज की मुख्यधारा से जुड़ गए। यह जानने के बावजूद कि यह कदम उन्हें नक्सलियों का दुश्मन बना देगा, डिगे नहीं। नक्सली समर्पित कई युवक-युवतियों की जिंदगी भी ले चुके हैं, लेकिन प्रेम तो आखिर प्रेम है, जिसे बांधा नहीं जा सकता। नक्सली नेता प्रेम के हमेशा खिलाफ रहे हैं। संगठन में शामिल साथियों को वे शादी की इजाजत नहीं देते। उन पर सख्त नजर रखी जाती है। वे मानते हैं कि इससे उनकी लड़ाई कमजोर हो जाएगी। स्कूली दौर से गुजर रहे किशोरों को वे जबरिया संगठन में शामिल तो कर लेते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि युवा होने पर वही किशोर जब प्रेम पाश में फंस जाएंगे, तो बगावत करने से भी नहीं चूकते। ऐसे ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे जब संगठन में साथ काम करते हुए एक-दूसरे के करीब आने के बाद प्रेमी जोड़ों ने ना केवल बंदूकें त्यागी, बल्कि ब्याह के बंधन में भी बंधे। जगरगुंडा एरिया कमेटी के कमांडर बदरन्ना ने चिंतलनार दलम की लतक्का से विवाह किया और कोंटा में आत्मसमर्पण कर हिंसा को तिलांजलि दी। केशकाल डिवीजनल कमेटी के कमांडर के सन्ना ने नक्सल दलम की सदस्य सुनीता से शादी की। दक्षिण बस्तर एरिया कमटी के अर्जुन ने देवे से, बासागुड़ा के डिप्टी कमांडर जोगन्ना ने चन्द्रक्का से, मद्देड़ के डिप्टी कमांडर अशोकन्ना ने नक्सल दलम की सदस्य जयकन्ना से विवाह किया। इधर दक्षिण बस्तर स्पेशल जोनल कमेटी के लछन्ना और मद्देड़ के एरिया कमांडर रामाराव ने भी प्रेम विवाह कर हिंसा छोड़ दी है। प्रेम के बंधन में बंधने वाले नक्सलियों को पुलिस और बस्तर की विभिन्न सामाजिक संगठन भी प्रोत्साहित कर रहे हैं। इन्द्रावती एरिया कमेटी के कमांडर लक्ष्मण का विवाह झीरम निवासी व कटेकल्याण की 26वीं कंपनी की सदस्य कोसी मरकाम से 16 जनवरी 2016 को हाता मैदान में कराया गया था, जिसमें शहर की विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोग बाराती बने थे।

वहीं पुलिस विभाग ने कन्यादान किया था। इसी तरह 8 अक्टूबर 2016 को दरभा में दो आत्मसमर्पित नक्सली जोड़ों का विवाह आदिवासी परंपरा के अनुरूप कराया गया था। कांदानार के नक्सली मानसाय ने नक्सली सदस्य बेंगपाल की पदमनी से तो सक्रिय नक्सली झीरम निवासी बुदराम ने अपनी सहकर्मी प्रेमिका मंदेनार की लक्षमती के प्रेम विवाह किया। आत्मसमर्पित नक्सली लतक्का, कोसी व लक्ष्मण, बुदराम व लक्षमती और मानसाय व पदमनी बताते हैं कि अब तक उनके सौ से ज्यादा साथी नक्सल विचारधारा के खिलाफ बगावत कर प्रेम विवाह कर चुके हैं और कई करने वाले हैं। जब तक नक्सली नेताओं की संगति में रहे, तनाव और मौत के साए में जीते रहे। आपस में बातें भी नहीं कर पाते थे। आत्मसमर्पण व प्रेम विवाह कर अब वे बेहद खुश हैं। उन्हें तो यह उम्मीद ही नहीं थी कि समाज उन्हें इतने उत्साह के साथ अपनाएगा। समर्पित नक्सलियों ने बताया कि पहले तो नक्सली नेता प्रेम की इजाजत नहीं देते थे, लेकिन वक्त के साथ थोड़ी नरमी आ गई। अब कुछ जोड़ियां संगठन में रहते हुए ही औपचारिक शादी कर लेते हैं। लेकिन इसके बाद वे संतान का सुख ना उठा पाएं, इसके लिए पुरुषों की जबरिया नसबंदी करा दी जाती है। इस मामले में महिलाओं को बख्श दिया जाता है। नक्सली नेताओं को लगता है कि महिला के गर्भवती होने पर उनका मिशन कमजोर पड़ जाएगा।

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