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ईरान परमाणु डील रद्द, अलग हुए ट्रम्प

नई दिल्ली : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते को दरकिनार करते हुए अलग होने का फैसला लिया है। ट्रंप के इस फैसले की जहां ईरान समेत दूसरे सहयोगी राष्ट्र आलोचना कर रहे हैं, वहीं उनके इस निर्णय का दुनिया पर बड़ा असर होने के आसार जताए जा रहे हैं। भारत समेत दूसरे एशियाई देशों पर भी इस कदम का कई रूप में प्रभाव पड़ सकता है। तेल पैदा करने और निर्यात करने वाले ओपेक देशों में ईरान तीसरे नंबर पर है, खासकर एशियाई देशों को ईरान बड़े पैमाने पर तेल सप्लाई करता है। भारत में सबसे ज्यादा तेल इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान से आता है। भारत इस आयात को और बढ़ाने वाला है। हाल ही में जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी दिल्ली पहुंचे तो भारत ने उससे तेल आयात बढ़ाने का वादा किया, जिसके बाद ये समझा जा रहा है कि 2018-19 से ईरान और भारत के बीच तेल का कारोबार डबल हो जाएगा। 2017-18 की बात करें तो भारत ईरान से प्रतिदिन 2,05,000 बैरल तेल आयात करता है, जो 2018-19 में बढ़कर 3,96,000 बैरल प्रति दिन होने की संभावना है। मौजूदा वक्त में तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है, जो कि पिछले चार सालों में सबसे ज्यादा है, ऐसे में ईरान पर अमेरिका के इस फैसले से तेल दामों में बढ़ोतरी की आशंका भी जताई जा रही है। अंग्रेजी अखबार दि हिंदू के एक लेख में इसका अनुमान लगाया गया है। ईरान, भारत और अफगानिस्तान के बीच चाबहार बंदरगाह शुरू हो गया है। यह बंदरगाह विकसित करने के लिए तीनों देशों के बीच समझौता हुआ था, चाबहार दक्षि‍ण पूर्व ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थि‍त है, इसके जरिए भारत का मकसद पड़ोसी पाकिस्तान को बाइपास कर अफगानिस्तान तक पहुंचना है। भारत पहले ही इस बंदरगाह के लिए 85 मिलियन डॉलर निवेश कर चुका है और अभी उसकी योजना करीब 500 मिलियन डॉलर के इन्वेस्टमेंट की है। भारत इस चाबहार बंदरगाह के जरिए पिछले साल 11 टन गेंहूं की पहली खेप अफगानिस्तान भेज चुका है। भारत के इस कदम पर उस वक्त अमेरिका ने नरमी जाहिर की थी, जबकि अब हालात जुदा हैं। ऐसे में इस बात की भी आशंका है कि ईरान पर अमेरिका का सख्त कदम भारत के चाहबहार निवेश को महंगा कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा भारत को ईरान के रास्ते रूस और यूरोप से जोड़ने की परियोजना है, जो कारोबार को आसान बनाएगा। इस गलियारे को 2002 में मंजूरी मिलने के बाद से ही भारत इसका हिस्सा है, 2015 में समझौते के तहत जब ईरान से प्रतिबंध हटाए गए तो इस गलियारे की स्थापना को गति मिली, लेकिन एक बार फिर इस समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद इस परियोजना को झटका लगने की आशंका है। शंघाई सहयोग संगठन में भारत को जगह मिल गई है, जिसकी आधिकारिक तौर पर शुरुआत अगले महीने चीन में होने वाले एससीओ समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिस्सेदारी से हो जाएगी। पाकिस्तान को भी इसमें जगह मिल गई है और अब चीन ईरान को लेकर विचार कर रहा है, अगर ईरान भी एससीओ में साथ आ जाता है तो चीन और रूस के नेतृत्व वाला यह संगठन एक तरीके से अमेरिका विरोध ताकतों का समूह बन जाएगा और इसमें भारत भी शामिल रहेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत हमेशा से नियम आधारित संबंधों का समर्थक रहा है, लेकिन अमेरिका का ईरान से समझौता तोड़ना एक तरीके की वादाखिलाफी के रूप में देखा जा रहा है।

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