हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को अब तक का सबसे बड़ा झटका देते हुए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बनी विनियमितीकरण नियमावली-2016 को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने सीधी भर्ती के पदों पर संविदा व अस्थायी कर्मचारियों की बजाय नियमित भर्ती करने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट के फैसले से राज्य के करीब पांच हजार से अधिक सरकारी नियुक्ति पा चुके कर्मचारियों की नौकरी संकट में पड़ गई है। हालांकि सरकार के पास एकलपीठ के फैसले के खिलाफ अपील का विकल्प है।
30 दिसंबर 2016 को पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने विनियमितीकरण सेवा नियमावली-2016 को मंजूरी प्रदान की थी। इसके तहत 2011 में नियुक्त हुए और पांच साल पूरे कर चुके अस्थायी व संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण का हकदार बना दिया गया। इस नियमावली के प्रभावी होने के बाद राज्य के तमाम विभागों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को सीधी भर्ती वाले पदों पर नियमित कर दिया गया। इस नियमावली से करीब पांच हजार से अधिक कार्मिक लाभान्वित हुए।
अधिमान व आयु में छूट दे सकती है सरकार
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि नियमावली निरस्त होने से प्रभावित होने वाले कार्मिकों को सरकार सीधी भर्ती के पदों में नियुक्ति प्रक्रिया में अधिमान में तथा आयु में छूट दे सकती है।
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी कर्मी उमा देवी से संबंधित मामले में अहम फैसला दिया था। इसमें कहा था कि दस अप्रैल 2006 तक जिन लोगों को अस्थायी तौर पर काम करते हुए दस साल हो चुके हैं, वह बिना कोर्ट के आदेश यदि नियमित न हुए हों तो सरकार उन्हें नियमित करने के लिए एक बार नियम बना सकती है। मगर उत्तराखंड में 2011, 2013 फिर 2016 में विनियमितीकरण नियमावली को कैबिनेट ने मंजूरी प्रदान की।
पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी सरकार
हाईकोर्ट के आदेश के बाद जहां राज्य में हजारों की संख्या में नियमित और नियमितीकरण की बाट जोह रहे कर्मचारियों को झटका लगा है, वहीं राज्य सरकार भी सकते में है। इस बारे में अग्रिम कानूनी विकल्प तलाशे जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि वह कर्मचारियों के साथ है और कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी।
सरकार के प्रवक्ता एवं काबीना मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी मिलने का इंतजार किया जा रहा है। इसका अध्ययन कर आगे की तैयारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार कर्मचारियों के साथ है और इस आदेश के सिलसिले में रिव्यू में जाएगी।