ज्ञान भंडार

उत्तराखण्ड: राजनीति का काला दिन

गोपाल सिंह पोखरिया
black dayपहाड़ के विकास व उपेक्षा के चलते लंबे संघर्ष के बाद बने उत्तराखंड राज्य की राजनीति के करीब डेढ़ दशक की राजनीति में यह सबसे काला दिन दर्ज हुआ है। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के नौ विधायकों के बागी होने के बाद दस दिन तक चले ड्रामे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। हालांकि इस राज्य की गति उसी दिन तय हो गई जब राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को राज के अंधेरे में शपथ दिलाई गयी। उसके बाद लगातार प्रदेश की राजनीति का चेहरा बदरंग ही होता रहा। भाजपा के अंतरिम अठारह माह के शासनकाल में ही दो मुख्यमंत्री बने। राज्य के प्रथम विधानसभा चुनाव 2002 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो मिला, लेकिन मुख्यमंत्री पद के दावेदार व तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हरीश रावत को किनारे कर एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके बाद तो प्रदेश में लगातार एनडी तिवारी के खिलाफ हरीश रावत ने उनको हटाने के लिए प्लान बनाया, हालांकि पांच साल तक एनडी तिवारी ने निर्बाध गति से शासन किया। कई बार पालीटिकल ड्रामे भी हुए, लेकिन वह इतने मंझे हुए राजनीतिज्ञ रहे कि उनको नहीं हटाया जा सका। इसके बाद फिर भाजपा ने वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव में फतह हासिल की लेकिन तत्कालीन भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भगत सिंह कोश्यारी का सीएम पद पर दावा बनता था, लेकिन पार्टी हाईकमान ने कांग्रेस की तर्ज पर उनको किनारे कर भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बना दिया। इसके बाद करीब दो साल तक उनके खिलाफ बगावत का खेल चलता रहा। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश के पांच सीटों पर मात खाई तो फिर एक बार खंडूड़ी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। इसके बाद रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन डेढ़ साल के भीतर ही फिर कोश्यारी व खंडूड़ी गुट ने उनको हटवा दिया। इसके बाद चुनाव से डेढ़ साल पहले भाजपा ने फिर राज्य में नेतृत्व परिवर्तन कर खंडूड़ी को दोबारा सीएम बनाया। इसके साथ वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा, लेकिन भाजपा की बहुमत से महज एक सीट कम आयी। इसके अलावा सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके सीएम पद के उम्मीदवार भुवन चंद्र खंडूड़ी खुद ही चुनाव हार गए। इसके बाद जोड़तोड़ कर कांग्रेस ने सरकार बनाई। इसमें तीन सदस्य बसपा, एक उत्तराखंड क्रांतिदल व तीन निर्दलीय का समर्थन लिया। यहां भी वही कहानी हुई फिर एक बार हरीश रावत को किनारे कर विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया। इससे प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना रहा। फरवरी 2014 में पार्टी हाईकमान ने लोकसभा चुनाव से तीन माह पहले प्रदेश की बागडोर हरीश रावत को सौंप दी। यहां से एक बार फिर विजय बहुगुणा व हरक रावत गुट ने हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसमें सबसे पहले तो सतपाल महाराज लोकसभा चुनाव से कुछ ही पहले कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद सरकार ने सबसे पहले सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत को ही मंत्री पद से हटा दिया। यहीं से हरीश रावत के खिलाफ माहौल बनता गया।
हालांकि हरीश रावत के खिलाफ बगावत के और भी कई कारण रहे हैं। इसके बाद 18 मार्च को उत्तराखंड की विधानसभा में जो हुआ उसकी तो किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी। सदन में धन विधेयक के खिलाफ काग्रेस के नौ विधायकों ने वोट करने का दावा किया, हालांकि विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने दावा किया कि ध्वनिमत से धन विधेयक व विभागवार बजट पारित किया गया है। इसके बाद भाजपा के 26 विधायक व कांग्रेस के विजय बहुगुणा, हरक रावत, अमृता रावत समेत नौ विधायक राज्यपाल केके पॉल से भी मिले। इसके बाद देर रात केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के साथ चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली चले गए। इस बीच शह मात का खेल चलता रहा। कहा गया कि इनमें से कई बागी विधायक वापस आ रहे हैं, लेकिन तमाम जद्दोजहद के बीच राज्यपाल की ओर से हरीश रावत सरकार को 28 मार्च को 11 बजे सदन में बहुमत हासिल करने को कहा। इसके बाद सरकार को बचाने के लिए बागी विधायकों की विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की कवायद भी शुरू हुई।
black day_1विधानसभा में कांग्रेस की मुख्य सचेतक व वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश की ओर से बागी विधायकों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष को पत्र दिया। इसके बाद बागियों के घर पर तीन-तीन बार नोटिस दिए। नोटिस का जवाब सुनने के बाद 27 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी है। इससे एक दिन पहले यानि 26 मार्च को दिल्ली में बागी विधायक हरक सिंह रावत व सुबोध उनियाल ने प्रेस वार्ता कर एक वीडियो सीडी मीडिया को दी। इस कथित स्टिंग में सरकार को बचाने के लिए 25 करोड़ रुपये में पांच विधायकों को खरीदने व एक मंत्री पद की बात कही गई। इस स्टिंग आपरेशन को 23 मार्च के दिन जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर होना बताया जा रहा है। हरक रावत का कहना है कि स्टिंग आपरेशन एक पत्रकार व मुख्यमंत्री के बीच वार्ता हुई है। मुख्यमंत्री ने पत्रकार को यह जिम्मेदारी दी थी कि वह उनकी उनसे वार्ता करायें। हरक रावत ने कहा कि उनके पास पत्रकार का फोन आया। वह पत्रकार को जानते थे इसलिये उनसे बात की। पत्रकार ने कहा कि मुख्यमंत्री बात करना चाहते हैं। इस पर हरक सिंह रावत ने कहा कि वह इस समय बात करने की स्थिति में नहीं हैं। डा रावत ने कहा कि वह फोन काटते, उससे पहले ही उधर से अचानक आवाज आयी कि मैं हरीश रावत बोल रहा हूं। इस पर उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहा कि वे पत्रकार से बात कर लें। इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वह पत्रकार से सारी बातचीत कर लेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री और पत्रकार के बीच क्या बातचीत हुई इसके विषय में उन्हें कोई जानकारी नहीं है लेकिन कुछ देर बाद उक्त पत्रकार का दोबारा फोन आया और उसने कहा कि उसकी व मुख्यमंत्री के बीच जो भी बातचीत हुई है उसका उसने स्टिंग आपरेशन कर लिया है। इसी स्टिंग आपरेशन की सीडी जारी की जा रही है। हरक रावत ने कहा कि स्टिंग आपरेशन में साफ दिख रहा है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत किस तरह विधायकों को पांच पाच करोड़ रुपये में खरीदने की बात कह रहे हैं। बागी विधायकों को वापस लाने के लिये डील हो रही है। उन्होंने कहा कि स्टिंग आपरेशन में मुख्यमंत्री को यह कहते हुए भी दिखाया गया है कि यदि विधायक तैयार होते हैं तो पांच करोड़ का इंतजाम दिल्ली में ही हो जायेगा। हरक रावत ने कहा कि मुख्यमंत्री तो स्टिंग आपरेशन में यह भी कह रहे हैं कि उन्हें अच्छा लगा कि मामला सस्ते में निपट रहा है। बीजेपी में बागी चल नहीं पायेगें। एक दो साल में बागी वापस कांग्रेस में आ जायेंगे। हरक रावत ने उत्तराखंड सरकार से विधायकों को धमकी मिलने की भी बता कही। हरक रावत ने कहा कि भाजपा के विधायकों को भी खरीदने की कोशिश चल रही हैं। कई विधायकों को अलग अलग आफर दिये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी तरफ से पत्रकार को मुख्यमंत्री से किसी बातचीत के लिये नहीं कहा गया था मुख्यमंत्री ने ही पत्रकार को उनसे बात करने का काम दिया था। हरीश रावत साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाकर अपनी सरकार को बचाना चाहते हैं इसलिये विधायकों को अपनी जान का खतरा हो सकता है।
वहीं दूसरी सीडी के जारी होने के 24 घंटे के भीतर ही केंद्र सरकार की ओर से आनन फानन में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है। इसके साथ ही प्रदेश में अब केंद्र से ही सीधे तौर पर राज हो गया। इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस भी स्तब्ध है। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया। बहरहाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने से भाजपा व कांग्रेस के बागियों के हौसले बुलंद हैं। अब देखना यह भी होगा कि आगे किस प्रकार से उत्तराखंड में शासन के कार्य चलते हैं। यहां पर सबसे अधिक चुनौती पूर्ण कार्य अप्रैल में शुरू होने जा रही विश्वप्रसिद्ध चारधाम यात्रा व अप्रैल में ही हरिद्वार में पड़ने वाले अद्र्धकुंभ के पांच स्नान है। अब तक की बात करें तो जनवरी से शुरू हुए अद्र्धकुंभ में पाच स्नान पड़े। इन सभी में सरकार की ओर से पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई थीं। इससे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कि कोई सवाल उठता, लेकिन अप्रैल में होने वाले पांचों स्नान में पिछले स्नानों की अपेक्षा भीड़ भी अधिक आने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसकी वजह अधिकांश लोगों का मानना है कि इस माह पड़ने वाले सभी का महत्व अधिक होगा। दूसरा कारण बोर्ड परीक्षाएं भी हैं। बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियों के चलते मां-बाप घूमने का प्रोग्राम नहीं बनाते, लेकिन अप्रैल में सभी बोर्ड परीक्षाएं समाप्त हो जाएंगी। ऐसे में प्रशासन की चुनौती बढ़ना तय है। ऐसे में भगवान न करें कुछ ऐसा हो, लेकिन कुछ भी हुआ तो उसकी सीधी जिम्मेदार राज्यपाल, यानि केंद्र सरकार की भी होगी। इसी प्रकार चारधाम यात्रा की भी सफलता का लाभ या हानि केंद्र सरकार की होगी।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होते ही निर्वतमान मुख्यमंत्री हरीश रावत केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने यहां तक कह डाला कि भाजपा पहले ही दिन से उनकी सरकार की खून की प्यासी थी। भाजपा ने उत्तराखंड में लोकतंत्र की हत्या की है। हरीश रावत ने कथित स्टिंग आपरेशन को भी भाजपा का एक हथियार बताया। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि भाजपा पहले ही दिन से उनकी सरकार की खून की प्यासी थी। उन्होंने कहा कि भाजपा ने पूरा प्रोपेगंडा किया हुआ था। हरीश रावत ने कहा कि भाजपा कथित स्टिंग को अपना अस्त्र बताते हुए उसे ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल कर हरीश रावत की छवि को धूमिल करना चाहता है लेकिन वह यह नहीं जानते कि इस स्थिति तक पहुंचने के लिये उन्होंने 50 साल उत्तराखंड की गली गली की खाक छानी है। करोड़ों लोगों से संवाद बनाया है। उनके सुख दुख में भागीदार रहे हैं। 24-25 साल से अलग अलग पदों पर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा सत्ता के अहंकार में छोटे राज्यों में लोकतंत्र की हत्या कर रही हैं। केंद्र सरकार धन बल, सत्ता बल का इस्तेमाल कर स्थिर सरकारों को अस्थिर कर रही हैं। वह यह नहीं जानती कि हरीश रावत जनता की आवाज है और उसे कोई नहीं दबा सकता। उत्तराखंड ऐसा दूसरा राज्य है जहां लोकतंत्र की हत्या हुई हैं। भाजपा जिस व्यक्ति के स्टिंग को हथियार बनाकर उनकी छवि ध्ूमिल करना चाहती है वह व्यक्ति खुद विश्वास के काबिल नहीं हैं। उस पर 420 तक के मुकदमें दर्ज हुए। भाजपा के शासन में ही यह मुकदमे दर्ज हुए थे।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने कहा कि भाजपा की केंद्र सरकार ने न्यायसंगत काम किया हैं। केन्द्र सरकार ने गत रात ही कैबिनेट की आपात बैठक बुलाकर उत्तराख्ांड में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश महामहिम राष्ट्रपति से कर दी थी। राज्य में संविधान के अनुरूप ही काम हुआ है। जबकि उत्तराख्ांड में संविधान के अनुरूप कांग्रेस सरकार नहीं चल रही थी। यहां जंगल राज हो गया था। सरकार भू माफियाओं, खनन माफियाओं, शराब माफियाआें के हाथों की कठपुतली बन गयी थी। ऐसी सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं था। केंद्र सरकार के कदम का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू होना निश्चित रूप से उत्तराख्ांड के हित में है। उन्होंने कहा कि रावत सरकार उत्तराखंड को विकास के स्थान पर विनाश की ओर ले जा रही थी। उन्होंने निवर्तमान मुख्यमंत्री से कहा कि शायद उन्होंने संविधन नहीं पढ़ा है तभी वह राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक बता रहे है। बेहतर हो कि हरीश रावत संविधान का अध्ययन करें। उन्होंने कहा कि उत्तराख्ांड राज्य के साथ मुख्यमंत्री मजाक कर रहे थे। वह विधायकों की खरीद फरोख्त कर अपनी अल्पमत की सरकार को बचाने का प्रयास कर रहे थे। यदि हरीश रावत में जरा भी नैतिकता होती तो वह 18 मार्च को ही त्यागपत्र दे देते। श्री बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि स्पीकर निवर्तमान मुख्यमंत्री के सचिव के रूप में काम कर रहे थे। विधानसभा अध्यक्ष ने अपनी गरिमा के विपरीत कार्य किया है। उन्होंने 9 कांग्रेसी विधायकों को जो नोटिस दिया था, उसका जवाब देने के लिये विधायकों के जो अधिवक्ता विधानसभा में पहुंचे थे, उनका तर्क भी विधानसभा अध्यक्ष ने नहीं सुना। अधिवक्ताओं की बात को सुनने से पहले ही वह उठकर चले गयें। संविधान की हत्या तो स्पीकर कर रहे थे। =

Related Articles

Back to top button