दस्तक-विशेषस्तम्भ

ऋग्वेद के अधिकांश देवता प्रकृति की शक्ति

हृदयनारायण दीक्षित : ऋग्वेद के अधिकांश देवता प्रकृति की शक्ति हैं। सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु, मरूत, नदी आदि देव प्रकृति में प्रत्यक्ष हैं। लेकिन इन्द्र प्रकृति की प्रत्यक्ष शक्ति नहीं हैं। ऋग्वेद में सभी देवों की तुलना में इन्द्र की सबसे ज्यादा स्तुतियां हैं। इसकी स्थिति यूनानी देवता जियस जैसी है। 250 सूक्तों में इन्द्र की स्तुति है और लगभग 300 सूक्तों में उनका उल्लेख है। वृहदारण्यक उपनिषद् में इन्द्र को प्रकृति का बल बताया गया है। ऋग्वेद में उनका मानवीकरण है। वे सोमपान प्रेमी हैं। उन्हें शक्तिशाली योद्धा कहा गया है। वे राजा या नृपति भी कहे गए हैं। उनकी पत्नी का नाम इन्द्राणी है। उनके बलशाली शरीर के अंगों के भी उल्लेख हैं। वे देवता होकर भी मनुष्य जैसे चित्रित किए गए हैं। लोक प्रचलन में वे वर्षा के देवता हैं। ऋग्वेद (2.12.7) में वे जलों के नेता हैं।

ऋग्वेद के इन्द्र प्रकृति में प्रत्यक्ष रूप वाली शक्ति भले न हो लेकिन प्रत्यक्ष सभी रूपों के भीतर विद्यमान होकर वे रूप रूप प्रतिरूप होते हैं, “इन्द्र अर्थैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो वभूवः।” ऋग्वैदिक काल कृषि प्रधान था। अन्य उद्योग भी थे लेकिन कृषि और पशुपालन की अधिक वरीयता थी। कृषि कर्म की पहली जरूरत जल है। इन्द्र जल जरूरत पूरा कराने वाले देवता हैं। वर्षा की कार्यवाही का चक्र बड़ा है। समुद्र का पानी विशेष ताप पर ऊपर जाता है। विशेष वायु दबाव में बादल बनकर वर्षा रूप धरती पर आता है। नदी होकर बहता है। इस जल प्रवाह को रोकने वाले का नाम ऋग्वेद में ‘वृत्त’ है। इन्द्र ‘ब्रत्रहंता’ है। ऋग्वेद (1.52.2 तथा 8.12.96) में इन्द्र नदी प्रवाह को रोकने वाले वृत्त को मारते हैं। निर्बाध जल प्रवाह इन्द्र की इच्छा जान पड़ती है। जैसे ऋषियों ने इन्द्र को मनुष्य की तरह चित्रित किया वैसे ही जल अवरोधक वृत्त को भी मनुष्य जैसा रूप दिया। वृत्त जल प्रवाह रोकने के लिए रास्ते में आया। इन्द्र ने उसे मारा। इस मानवीकरण से प्रथक सोचें तो जल अवरोध पत्थर या पर्वत हो सकते हैं। ऋग्वेद (1.32.10) में कहते है, “सतत् प्रवाहित जलों के भीतर छुपे शरीर के ऊपर से जल बहता है।” जल प्रवाह रोकने वाले मनुष्य भी हो सकते हैं और प्राकृतिक पत्थर भी। जो अवरोधकों को हटाते हैं वे इन्द्र हैं। उनकी शक्ति भी इन्द्र है।
इन्द्र का महत्व जल देवता के कारण ज्यादा जान पड़ता है। योद्धा या वीर होने के कारण कम। एक मंत्र (8.24.2) में कहा गया है कि “इन्द्र ने सप्तसिंधु-सात नदियों के क्षेत्र में जल वर्षा की।” एक मंत्र में नदियों की रचना के लिए भी इन्द्र की स्तुति की गई है। लेकिन ऋग्वेद में जल के अतिरिक्त भी इन्द्र से अनेक अन्य कार्यो के लिए भी तमाम स्तुतियाॅं हैं। यहां एक सूक्त (2.12) में इन्द्र को बार-बार याद किया गया है,’’ जिसके उत्पन्न होते ही लोक कम्पित हुए, बल के प्रभाव से यशस्वी यही वह इन्द्र है।’ (वहीं 2) एक मंत्र में सीधे इन्द्र से ही कहते हैं” अनेक मनुष्य उन्हें पुकारते हैं। (1.102.5)

इन्द्र दिखाई नहीं पड़ते । कुछ ऋषि शंका भी करते हैं कि क्या इन्द्र वास्तव में है ? या नही? (8.100.3) एक और सुन्दर मंत्र (5.30.1) में प्रश्न है ‘‘जिस इन्द्र का आह्वान सब लोग करते हैं उस स्वर्णिम अश्वों वाले स्वर्ण रथ पर जाते हुए इन्द्र को किसने देखा है?’’ इस मंत्र के ठीक बाद ऋषि अपना मत देते हैं, “मैंने उसका गोपनीय स्थान देखा है।” (वहीं 2) इन्द्र कहीं कहीं रहस्यपूर्ण लगते हैं लेकिन अधिकांश सूक्तों में वे प्रकृति की तमाम गतिविधियों में भागीदार दिखाई पडते हैं। एक मंत्र (10.73.9) में इन्द्र का वज्र मधुर जल देता है यही जल गायों में दूध है और वनस्पतियों में रस।’’ जल या वर्षा की चर्चा बिना इन्द्र नहीं पूरी होती। एक अन्य मंत्र (10.73.8) में कहते हैं,’’ हे इन्द्र आप संसार को जल से व्याप्त करते हैं। आपने ही जल भरे बादलों का मुख पृथ्वी की ओर किया है।’’
ऋग्वेद के समय के अनेक देवता परवर्तीकाल में भी उपास्य हैं सूर्य, जल, मरूत, विष्णु ऐसे ही देव हैं। लेकिन ऋग्वेद में सर्वाधिक स्तुति पाने वाले इन्द्र पुराण काल में वैसे ही उदात्त देव नहीं है। ऋग्वेद वाले इन्द्र दुष्टों का बध करते हैं। पराक्रमी हैं। श्रेष्ठ राजा और देवता है लेकिन पुराणों वाले राजा इन्द्र किसी भी तपस्वी का तप देखकर डर जाते हैं। इन्द्रांसन कापने लगता है। वे तप भंग के लिए अपसराएं भेजते हैं। इन्द्र का ऐसा पराभव आश्चर्यजनक है। जान पड़ता है कि ऋग्वेद के इन्द्र की छवि ऋग्वैदि काल के राजा की प्रतिच्छाया है। यह ऋग्वेद के ऋर्षियों की आदर्श राजा की कल्पना भी हो सकती है। जल उपलब्धि महत्वपूर्ण कार्य है। राजा को जलावरोध दूर करना चाहिए, इन्द्र जल अवरोधक दूर करते हैं। वर्षा जरूरी है। इसी से जीवन चक्र की व्यवस्था है। इन्द्र वर्षा कराते हैं। ऋग्वेद के इन्द्र में लोक कल्याण के तत्व हैं।


पुराण काल के तमाम राजा अपनी सत्ता स्थाई करने के लिए तमाम षड़यंत्र करते थे। ऐसे राजाओं के गुण-अवगुण पौराणिक पूर्वजों ने इन्द्र पर आरोपित किए हों तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। महाभारत और श्रीमद्भागवत तक इन्द्र की छवि काफी कमजोर जान पड़ती है। वृजवासियों ने भी इन्द्र का विस्थापन किया, गोवर्द्धन पूजा की नींव पड़ी। महाभारत में इन्द्र योद्धा तो है लेकिन देवरूप में उनकी उपासना कम है।
वरूण ऋग्वेद के सबसे शक्तिशाली देवता हैं। वरूण ईश्वर जैसे सर्वोच्च देव हैं। उन्हें ‘सर्वज्ञ’ सब कुछ जानने वाला कहा गया है। वे श्रेष्ठ शासक हैं। ऋग्वेद (8.41.3) में “वरूण देव अपनी कर्मशक्ति से विश्व रचते हैं।” वे सभी लोकधारण करते हैं। (8.41.4) कीथ के अनुसार ऋग्वेद में पांच बार ‘शासक’ शब्द का प्रयोग हुआ है। इनमें 4 बार यह शब्द वरूण देव के लिए आया है। वशिष्ठ के एक मंत्र (7.34.11) में वे ‘राजा राष्ट्रानां’ हैं। एक मंत्र (8.42.1) में वे सम्राट भी हैं। कुछ विद्वानों ने ‘अवेस्ता’ के ‘अहुरमजदा’ देव को वरूण जैसा बताया है। कुछ विद्वान यूनानी देवता ‘आरणौस’ की तुलना ऋग्वेद के वरूण से करते हैं। ऋग्वेद के 12 सूक्तों में वरूण की स्तुति है। मित्र देव के साथ लगभग 24 सूक्तों में उनकी स्तुति है।
वरूण नियम पालन के देव भी हैं। एक मंत्र में वरूण के शासन के विभाग भी बताए गए हैं “द्युलोक के तीन व भूलोक के तीन और कालचक्र की 6 ऋतुएं वरूण के शासन में हैं। (7.87.5) वरूण का मुख्यकाम नियमपालन कराना है। गल्ती पर दण्ड देना भी है। इसलिए ऋषि प्रार्थना करते हैं “आप हमारे द्वारा किए गए पापों से मुक्ति दे।” (7.8.5) डाॅ0 राधाकृष्णन् ने ‘उपनिषदों का संदेश’ (पृष्ठ 29) में लिखा है, “वरूण भारतीयों और ईरानियों दोनो का देवता है। सूर्य के मार्ग व ऋतुओं के क्रम का नियामक है। वह जगत् को व्यवस्थित रखता है। मानव जाति के लिए अनिवार्य सत्य और व्यवस्था का मूर्तरूप है।”

वरूण का मुख्य सम्बंध जल से है। वरूण का निवास जल है। (7.86.10) नदियां वरूण के नियमों में बहती हैं। (2.84.4) ऋग्वेद के ऋषियों का ध्यान जल की गतिविधि पर ज्यादा है। इन्द्र तमाम पराक्रम के बाद भी मुख्य रूप से जल से सम्बंधित देव हैं। वरूण प्रकृति के संविधान के मुख्य देव हैं लेकिन जल से उनका अटूट सम्बन्ध है। संपूर्ण जलो को विश्व को जन्म देने वाली ‘आपः मातरम्’ उपास्य हैं। वे जल माताएं हैं फिर वरण हैं। ऋषि कवि के भावबोध में वे शासक, ज्ञानी ज्ञानदाता पापमोचन हैं लेकिन जल से जुड़े हुए हैं। जल जीवन का अनिवार्य तत्व है। जल और जीवन पर्यायवाची हैं।

(रविवार पर विशेष)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हैं।)

ऋषि पृथ्वी को माता कहते हैं और आकाश को पिता

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