अजब-गजबउत्तर प्रदेशफीचर्ड

औषधीय पौधों की खेती के लिये सरकार देती है आर्थिक मदद

लखनऊ : एम्स की तर्ज पर बने देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को मंगलवार को राष्ट्र को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों से आह्वान किया कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना चाहते हैं, ऐसे में किसान अगर अपनी खाली पडी जमीन का उपयोग औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए करने लगेगा, तो किसानों की आय बढ़ेगी। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एस के बारिक ने बताया ” देश-दुनिया में जिस तरह से आयुर्वेद और हर्बल उत्पादों मांग बढ‍़ रही है उसके कारण से देश के विभिन्न क्षेत्रों में किसान परंपरागत खेती के अलावा औषधीय और जड़ी-बूटियों की तरफ भी अपना रूख कर रहे हैं, इसकी खेती से किसानों का फायदा मिल रहा है।केन्द्रीय आयुष मंत्रालय और विभिन्न प्रदेशों के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए काम करे हैं। जिसमें औषधीय खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। राष्ट्रीय आयुष योजना में किसानों को सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच और आर्टीमीशिया जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार की तरफ से अनुदान प्रति एक हेक्टेयर सर्पगन्धा की खेती के लिए 45753 रुपए, अश्वगंधा के लिए 10980.75 रुपए, ब्राम्ही के लिए 17569.20 रुपए, कालमेघ के लिए 10980.75 रुपए, कौंच के लिए 8784.60 रुपए, सतावरी के लिए 27451.80 रुपए, तुलसी के लिए 13176.90 रुपए, एलोवेरा के लिए 18672.20 रुपए, वच के लिए 27451.80 रुपए और आर्टीमीशिया के लिए 14622.25 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों के पास अपने नाम से कम से कम एक एकड़ खेती की जमीन, खेत के पास सिंचाई साधन, किसान के पास बैंक में खाता और चेकबुक के साथ ही अपनी पहचान के लिए वोटर आईकार्ड, राशन कार्ड, आधार कार्ड या पासपोर्ट में से कोई एक होना चाहिए। लाभुकों का चयान पहले आओ और पहले पाओ की तर्ज पर किया जाएगा।
सालों से खेत की एक की तरह की फसल उगाने से खेत की पैदावार क्षमता कम होते जाती है। ऐसे में खेत में फसल विविधता के लिए औषधीय खेती करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से दी जा रही है। इस बारे में जानकारी देते हुए नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय फैजाबाद के कृषि मौसम विभाग के प्रोफेसर डा. ए.के़ सिंह ने बताया, खेत की एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उर्वरकता प्रभावित होती है। ऐसे में किसानों को फसल विविधता के लिए सलाह दी जाती है। फसल विविधता के इस क्रम में अगर गेहूं और धान के खेतों को खाली होने के बाद अगर किसान उसमें औषधीय पौधों की खेती करेंगे तो यह उनके लिए बहुत लाभकारी होगा। अगली बार जब वह उसमें धान और गेहूं उगाएंगे तो उसकी पैदावार अधिक होगी।

Related Articles

Back to top button