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कजरी तीज: मिट्टी के बने श‍िव-गौरी की मूर्ति की होती है पूजा, जानें व्रत एवं पूजा-विधि…

कजरी तीज भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ने वाली है, जो इस वर्ष 18 अगस्त दिन रविवार को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी दाम्पत्य जीवन की मनोकामना से इस व्रत को करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इन महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।

व्रत एवं पूजा विधि

व्रत के दिन महिलाएं सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होती हैं। स्नान के पश्चात वे भगवान श‍िव और माता गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं, या फिर बाजार से लाई मूर्ति का पूजा में उपयोग करती हैं। व्रती महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर स्थापित करती हैं।

इसके पश्चात वे शिव-गौरी का विधि विधान से पूजन करती हैं, जिसमें वह माता गौरी को सुहाग के 16 समाग्री अर्पित करती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा, भांग आदि चढ़ाती हैं। फिर धूप और दीप आदि जलाकर आरती करती हैं और शिव-गौरी की कथा सुनती हैं।

महिलाएं निर्जला व्रत रहती हैं, लेकिन बीमार और गर्भवती महिलाओं को इससे छूट है।

कजरी तीज पर खास पकवान

गेहू, चावल, चना, घी व मेवे के साथ मीठे पकवान बनाए जाते हैं। इस द‍िन पूजा के बाद सुहाग का सामान दान क‍िया जाता है। चन्द्रमा के दर्शन व आटे की 7 रोटियां बनाकर उस पर गुड़ चना रखकर पहले गाय को ख‍िलाना जरूरी होता है। उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।

गौरी की सवारी

कुछ जगहों पर कजरी तीज के दिन मां गौरी की सवारी बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है। वहीं कुछ जगहों पर कजरी तीज के एक दिन पहले रतजगा का भी र‍िवाज है। इस दिन घरों में झूला डाला जाता है और महिलाएं झूला झूलती हैं।

श्रृंगार का महत्व

कजरी तीज के दिन महिलाएं श्रृंगार करती हैं, नए कपड़े पहनती हैं और हाथों में मेंहदी रचाती हैं। इस दिन पैरों में मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है। कहते हैं क‍ि इससे श‍िव-पार्वती अपने भक्तों पर खुश होते हैं और उनकी हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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