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कमर दर्द और अस्थमा के लिये रामबाण है शलभासन

लखनऊ : शलभ का अर्थ टिड्डी होता है। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर टिड्डी जैसा लगता है, इसलिए इसे इस नाम से जाना जाता है। यह कमर एवं पीठ दर्द के लिए बहुत लाभकारी आसन है। इसके नियमित अभ्यास से आप कमर दर्द पर बहुत हद तक काबू पा सकते हैं।
शलभासन की विधि
शलभासन को कैसे किया जाए ताकि इसके अधिक फायदे मिल सके, इसको यहां पर बहुत सरल तरीके में बताया गया है-
सबसे पहले पेट के बल लेट जाएं।
अपने हथेलियों को जांघों के नीचे रखें।
एड़ियों को आपस में जोड़ लें।
सांस लेते हुए अपने पैरों को यथासंभव ऊपर ले जाएं।
धीरे धीरे सांस लें और फिर धीरे धीरे सांस छोड़े और इस अवस्था को बनाएं रखें।
सांस छोड़ते हुए पांव नीचे लाएं।
यह एक चक्र हुआ।
लाभ : वैसे तो शलभासन के बहुत सारे लाभ हैं, लेकिन यहां पर इसके कुछ महत्वपूर्ण फायदे के बारे में बताया जा रहा है।
कमर दर्द: यह कमर दर्द के लिए अति उत्तम योगाभ्यास है। इसके नियमित अभ्यास से आप पुराने से पुराने कमर दर्द से निजात पा सकते हैं।
दमा में सहायक: इस आसन के अभ्यास से आप दमा रोग को कण्ट्रोल कर सकते हैं।
तंत्रिका तंत्र: यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाता है और इसके सक्रियता को बढ़ाता है।
पेट की मालिश: यह पेट की मालिश करते हुए पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
कब्ज दूर करने में: कब्ज से निजात पाने के लिए यह लाभकारी योग है।
रक्त साफ करता है: यह रक्त साफ करता है तथा उसके संचार को बेहतर बनाता है।
लचीलापन: शरीर के लचीलापन को बढ़ाता है और आपको बहुत सारी परेशानियों से दूर रखता है।
साइटिका: यह आसन साइटिका को ठीक करने के लिए अहम भूमिका निभाता है।
वजन कम करने में: यह पेट और कमर की अतरिक्त वसा को कम करता है, इस तरह से वजन कम करने में सहायक है।
मधुमेह: यह पैंक्रियास को नियंत्रण करता है और मधुमेह के प्रबंधन में सहायक है।
गर्भाशय: इसके अभ्यास से आप गर्भाशय सम्बंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं।
पेट गैस: इसके अभ्यास से पेट गैस को कम किया जा सकता है।
मणिपूर्ण चक्र: मणिपूर्ण चक्र के लिए प्रभावी योग है।
नाभि: यह नाभि को सही जगह पर रखता है।
सावधानी : इस आसन को उच्च रक्तचाप की स्थिति में नहीं करनी चाहिए।
हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को इस आसन के प्रैक्टिस से बचना चाहिए।
दमा के रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
कमर दर्द: ज़्यदा कमर दर्द में इसका अभ्यास न करें।
शुरू में इसको ज़्यदा देर तक न रोकें।
हर्निया की स्थिति में इसका अभ्यास न करें।
मेरुदंड की समस्या में इसे न करें।
पेट का ऑपरेशन होने पर इसको करने से बचें।

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