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कर्नाटक : सुप्रीम कोर्ट ने कहा—विश्वासमत में शामिल होने के लिए बागी विधायकों को बाध्य न किया जाए

नई दिल्ली : महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कर्नाटक के बागी विधायकों को विश्वास मत प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने दूसरी ओर यह भी स्पष्ट किया कि विधानसभा अध्यक्ष कांग्रेस और जनता दल (एस) के बागी विधायकों के इस्तीफे पर अपने हिसाब से निर्णय करेंगे। इसके लिए कोई समय अवधि निर्धारित नहीं की जा सकती। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कांग्रेस और जद (एस) के बागी विधायकों की याचिकाओं पर अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा, “हम यह स्पष्ट करते हैं कि राज्य विधानसभा के सभी 15 बागी विधायकों को अगले आदेश तक सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।” न्यायमूर्ति गोगोई ने पीठ की ओर से आदेश सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लें या उससे बाहर रहें। शीर्ष अदालत ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार को निर्धारित समय-सीमा के तहत बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में अध्यक्ष की भूमिका एवं दायित्व को लेकर कई अहम सवाल उठे हैं, जिन पर बाद में निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल संवैधानिक संतुलन कायम करने के लिए वह अपना अंतरिम आदेश सुना रहे हैं।

न्यायमूर्ति गोगोई ने बागी विधायकों के इस्तीफे पर विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय से शीर्ष अदालत को अवगत कराने का निर्देश भी दिया। इस मामले में संवैधानिक मुद्दों की न्यायिक समीक्षा के सवाल पर न्यायालय ने कहा, “इस अवसर पर सबसे जरूरी है संवैधानिक संतुलन बरकरार रखना। ऐसी स्थिति में हमें फिलहाल अंतरिम आदेश के जरिये संवैधानिक संतुलन बनाना होगा। इसके तहत विधानसभा अध्यक्ष 15 बागी विधायकों के इस्तीफे पर अपने हिसाब से उचित समय पर निर्णय लेंगे।” न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, “हमारा मानना है कि मौजूदा मामले में निर्णय लेते वक्त विधानसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार को न्यायालय के किसी निर्देश या टिप्पणी से बाधित नहीं किया जाना चाहिए।” बागी विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किये जाने को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कल संविधान के अनुच्छेद 190 का हवाला देते हुए दलील दी थी कि यदि कोई विधायक इस्तीफा देता है तो उसे मंजूर किया जाना चाहिए, भले ही उसके खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया शुरू क्यों नहीं की गयी हो? रोहतगी ने इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या कम करने के बाद सरकार की अस्थिरता का उल्लेख करते हुए कहा था, “इस अदालत के समक्ष याचिका दायर करने वाले विधायकों की संख्या कम कर दी जाये तो सरकार गिर जाना तय है।

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