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कश्मीर से हमेशा अलग होना चाहता था लद्दाख

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में गहराते तनाव के बीच भारतीय सेना घाटी के चप्पे-चप्पे की घेराबंदी किए हुए है. अटकलबाजियां चल रही हैं. इसी दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने का ऐलान किया. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन प्रस्ताव के तहत लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाएगा. बता दें कि लद्दाख को कुछ वक्त पहले ही नए संभाग का दर्जा मिला था. जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है, लेकिन इसके तीनों संभागों में काफी विविधता है. कश्मीर यानी घाटी की जनसंख्या 5,476,970 है. इसमें 97 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुस्लिम है. जम्मू हिस्से में 65 प्रतिशत हिंदुओं और 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के साथ कुल आबादी 4,430,191 है. वहीं लद्दाख की बात करें तो यहां बौद्ध और मुस्लिम लगभग बराबर संख्या में हैं. 236,539 आबादी के साथ बौद्ध अनुयायी 45.87% हैं, वहीं मुस्लिम आबादी लगभग 47 प्रतिशत है. इसी साल फरवरी में बौद्ध आबादी वाले लद्दाख को राज्य प्रशासन ने अलग संभाग का दर्जा दिया. यहां लेह और करगिल दो जिले हैं, तथा इसका मुख्यालय लेह है. लद्दाख अपनी विषम भौगौलिक परिस्थितियों के लिए जाना जाता है. बर्फीला रेगिस्तान कहलाने वाले लद्दाख में साल में लगभग 6 महीने आइसोलेशन में ही गुजरते हैं. यानी यहां आवाजाही लगभग नहीं के बराबर हो जाती है. हालांकि खुले मौसम और बेहद खुशगवार वादियों-घाटियों की वजह से पर्यटन ही यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यहां के लोगों के बारे में माना जाता है कि वे काफी ईमानदार और खुशमिजाज होते हैं. यही वजह है कि यहां आने वाले अधिकतर सैलानी होटलों की बजाए होम-स्टे को तरजीह देते हैं. साल के छह महीने भयंकर बर्फबारी होने पर लेह का हवाई अड्डा ही आवाजाही के लिए खुला रहता हैै. लद्दाख भारत का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है, जिसका क्षेत्रफल 1.74 लाख वर्ग किलोमीटर है और आबादी है 236,539. बड़े क्षेत्रफल के साथ यह देश के सबसे कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में शुमार है. लद्दाख लोकसभा सीट सूबे के दो जिलों कारगिल और लेह में फैली हुई है. इसके अन्तर्गत चार विधानसभा सीटें (कारगिल, लेह, नोबरा और जानस्कार) शामिल हैं. हेडक्वार्टर लेह माना जाता है. साल के छह महीने भयंकर बर्फबारी होने पर लेह हवाई अड्डा ही आवाजाही के लिए खुला रहता है.

बड़ी आबादी तिब्बती संस्कृति से प्रभावित है. ये बौद्ध धर्म को मानते हैं, हेमिस गोंपा यहां का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. सियाचिन ग्लेशियर की मौजूदगी के कारण भारत का ये बेहद संवेदनशील हिस्सा अलग होने के बाद और भी संवेदनशील हो सकता है. हालांकि इसका दूसरा पक्ष ये भी माना जा रहा है कि अलग राज्य होने के बाद सीमा पर नजर रखना ज्यादा आसान हो जाएगा. तमाम विषम हालातों के बावजूद कश्मीर का ये हिस्सा खुद को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करता रहा है. लेह घूमने जाएं तो एक स्टिकर जगह-जगह चस्पा दिखेगा- फ्री लद्दाख फ्रॉम कश्मीर. लद्दाखी, खासकर यहां की शांतिप्रिय बौद्ध आबादी आतंक का गढ़ माने जाने वाले कश्मीर से आजादी की मांग लंबे समय से कर रहे हैं. यहां के स्थानीय लोग आजादी के बाद से कश्मीर की सत्तासीन पार्टियों से नाखुश रहे. उनका मानना है कि कश्मीर घाटी के कारण उनकी शांति में भी खलल पड़ता रहता है. इसी वजह से आमतौर पर शांतिप्रिय माने जाने वाले बौद्धों ने कई बार पत्थरबाजी भी की. लद्दाख में इस भाव के बढ़ने की वजह तिब्बती रिफ्यूजी भी माने जाते रहे हैं. उनकी सोच है कि अगर लद्दाख को अलग राज्य बना दिए जाए तो कश्मीर से उन्हें आजादी मिलेगी और चीन से विवाद भी थम सकेगा. लद्दाख बौद्ध संघ की मानें तो इसके कश्मीर से जुड़ा होने की वजह से नौकरियों में भी पक्षपात होता है. जैसे राज्य सरकार के तीन लाख कर्मचारियों में कुल 5900 बौद्ध हैं वहीं राज्य सचिवालय में केवल दो लोग लद्दाख से हैं. पढ़ाई के मामले में भी वे लगातर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं. ऐसे में अगर लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा मिल जाए तो ये वहां के निवासियों और खासकर बौद्ध आबादी के लिए ये बड़ी बात होगी.

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