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कष्टों को दूर करता है अनंत चतुर्दशी

ज्योतिष डेस्क : आज अनन्त चतुर्दशी है। अनंत, जिसका न आदि का पता है और न ही अंत का अर्थात श्री हरि। इस व्रत में स्नानादि करने के पश्चात अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुई चौदह गांठ के अनंत को सामने रखकर हवन किया जाता है। फिर अनंतदेव का ध्यान करके इस शुद्ध अनंत, जिसकी पूजा की गई होती है, को पुरुष दाहिनी और स्त्री बायीं भुजा में बांधते हैं। इस व्रत में एक समय बिना नमक के भोजन किया जाता है। निराहार रहें तो और अच्छा है। इसी दिन प्रथम पूज्य गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन भी गणेश भक्तों द्वारा किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी के महत्व को कहती एक कथा कौरवों के छल से जुए में राज्य हार बैठे युधिष्ठिर से संबंधित है। पांडवों के दुख दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया। इससे पांडवों को हर हाल में राज्य वापस मिलेगा, इसका भी भरोसा दिया। युधिष्ठिर ने पूछा, ‘यह अनन्त कौन हैं?’ तब श्री कृष्ण ने कहा कि वे श्री हरि के ही स्वरूप हैं। इस व्रत को विधि-विधान से करने से समस्त संकट समाप्त होंते हैं। कहा जाता है कि वशिष्ठ गोत्री सुमंत नामक एक ब्राह्मण थे, जिनका विवाह महर्षि भृगु की कन्या दीक्षा से हुआ। इनकी पुत्री का नाम शीला था। दीक्षा के असमय निधन के बाद सुमंत ने कर्कशा से विवाह किया। शीला का विवाह कौडिन्यमुनि से हुआ। दहेज देने के नाम पर कर्कशा ने गुस्से में सब कुछ नष्ट कर डाला। बेटी और दामाद को भोजन से बचे कुछ पदार्थों को पाथेय के रूप में दिया। शीला अपने पति के साथ जब एक नदी पर पहुंची तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते देखा। महिलाओं ने अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा बताते हुए उसे संपूर्ण विधि भी बताई। इस तरह शीला का भी कल्याण हुआ। इस दिन धागा बांधते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए-
अनंत संसार महासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे, विनियोजितात्मा ह्यनंतरूपाय नमो नमस्ते॥
अर्थात हे वासुदेव! अनंत संसार रूपी महासमुद्र में मैं डूब रहा हूं, आप मेरा उद्धार करें, साथ ही अपने अनंतस्वरूप में मुझे भी आप विनियुक्त कर लें। हे अनंतस्वरूप! आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। फिर नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए। शीला ने भी यह व्रत किया और संपन्न हो गई, किंतु कौडिन्य मुनि ने गुस्से में एक दिन वह सूत्र तोड़ दिया। अनंत प्रभु के कोप से उन पर निर्धनता छा गई। प्रार्थना करने पर अनंत भगवान ने कौडिन्य मुनि को ज्ञान दिया। व्रत करने और अनंत भगवान से क्षमा मांगने पर कौडिन्य मुनि फिर से साधन संपन्न हो गए।

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