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केरल हाईकोर्ट के जज ने कहा- जजों की नौकरी किसी परिवार की संपत्ति नहीं

देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रकिया को लेकर बहस अब भी जारी है। केरल हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी कमाल पाशा ने भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूरे न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पद किसी परिवार की संपत्ति नहीं है, जिसे जाति या लगाव के आधार पर बांटा जाए।

उनकी यह टिप्पणी केरल हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पद को भरने के लिए कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों के बाद आई है। खास बात यह है कि इन नामों की सिफारिश को रद्द करन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी, जिसे खारिज किया जा चुका है।

बता दे कि याचिकाकर्ता वकील सीजे जोवसन और साबू ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कॉलेजियम द्वारा दिए गए नामों को खारिज करने की मांग की थी। उन्होंने यह दरख्वास्त की थी कि न्यायाधीशों के खाली पदों को भरने के लिए वकीलों की नई सूची बनाई जाए। इस सूची में ऐसे किसी वकील का नाम शामिल न किया जाए, जिसका किसी मौजूदा या पूर्व जज से संबंध हो।

याचिका में तर्क दिया कि अनुशंसित उम्मीदवार पूर्व न्यायाधीशों या वकील जनरल के परिचित और रिश्तेदार हैं। इसके साथ ही आरोप लगाया गया है कि एक तो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश का दामाद है, दूसरा हाईकोर्ट के जज का चचेरा भाई है, तीसरा एक शीर्ष न्यायिक अधिकारी का दामाद है और चौथा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का रिश्तेदार है।

न्यायमूर्ति पाशा ने बार और बेंच के सदस्यों द्वारा विदाई बैठक में दिए गए अपने भाषण में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति किसी परिवार की संपत्ति नहीं है। मुझे इस पर विश्वास नहीं है कि नियुक्ति प्रक्रिया को धर्म, जाति, उप जाति या लगाव के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति पाशा ने कहा कि उन्होंने बार से कुछ नामों पर विचार करने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, ‘अगर मीडिया द्वारा दिए गए नाम सही हैं, तो मैं बहुत अच्छी तरह से कह सकता हूं कि मेरे साथ इस अदालत के अधिकांश न्यायाधीशों के पास इन लोगों के चेहरों को देखने के लिए कोई अच्छा भाग्य नहीं है। क्या न्यायपालिका के लिए यह अच्छा है? ‘

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