अजब-गजब

कोहिनूर: एक श्रापित हिरे की कहानी

नई दिल्ली/लखनऊ। श्राप, काला जादू, टोने-टोटके, ये सब कुछ ऐसी बातें हैं, जिस पर हर कोई विश्वास नहीं कर सकता। जिसने ये सब देखा हो या फिर ऐसा कुछ भी महसूस किया हो, केवल वही किसी वस्तु के श्रापित होने जैसी बात मान सकता है। इतिहास में बहुत सी ऐसी कहानियां दर्ज हैं जो किसी ना किसी श्राप की दास्तां बयां करती हैं। इन्हीं में से एक है श्रापित कोहिनूर का राज। “रोशनी का पहाड़ जिसने अनेक सल्तनतों का सूर्य अस्त कर दिया” ..ये विरोधाभासी पंक्ति सुनकर आपको थोड़ी हैरानी अवश्य हो रही होगी लेकिन यहां एक ऐसे ही पत्थर का जिक्र करने जा रहे हैं जिसने हर उस इन इंसान की जिन्दगी बर्बाद कर दी जिसने उसे अपना बनाया। इतिहास के सबसे महंगे हीरे कोहिनूर, जिसका अर्थ है रोशनी का पहाड़, के बारे में तो सभी जानते हैं। भारत की सरजमीं पर विख्यात हुआ यह हीरा आज अंग्रेजी राजघराने की शोभा बढ़ा रहा है। ब्रिटेन की रानी के ताज पर विराजित यह हीरा बेहद खूबसूरत और अतुलनीय है लेकिन इसका इतिहास इसकी इन खूबियों से कहीं ज्यादा खौफनाक है। इसे पाने की ख्वाहिश बहुत से लोगों में रही, बहुत से लोगों ने इसे पाया भी सही लेकिन जिन-जिन के पास यह मनहूस हीरा गया, उनका पूरा का पूरा खानदान तबाह हो गया, उनकी जिन्दगी नर्क से भी बदतर बन गई। कभी भारत की धरोहर रहा कोहिनूर हीरा सदियों से एक ऐसे श्राप से जूझ रहा है जिसकी वजह से यह अपने मालिकों के लिए कष्ट का कारण बनता रहा है। इस अनमोल हीरे की खोज वर्तमान आंध्र प्रदेश गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदानों में खुदाई के दौरान हुई थी। लेकिन यह कब बाहर आया, सबसे पहले किसने इसे देखा, इसका कोई प्रमाण दर्ज नहीं है। 13वीं शताब्दी से ही इस हीरे को एक श्राप से ग्रस्त माना गया है और इसका पहला प्रमाण मिलता है।बाबरनामा के अनुसार 1294 ईसवी में सर्वप्रथम यह हीरा ग्वालियर के एक राजघराने के पास था लेकिन उस समय किसी ने इसे कोहिनूर का नाम नहीं दिया था। सन 1306 के आसपास इस हीरे को अपनी पहचान मिलने लगी। जिसने इसे पहचाना उसने यह भी साफ कर दिया था कि इस हीरे का मालिक संसार पर राज तो करेगा लेकिन उसके साथ ही दुर्भाग्य भी उसकी किस्मत का हिस्सा बन जाएगा। किसी ने इस बात पर विश्वास नहीं किया लेकिन जब सबसे पहले यह हीरा काकतीय वंश के पास आया और इसके आते ही उस वंश पर जो ग्रहण लगा उसके बाद बहुत से लोग श्रापित कोहिनूर की बात को सच मानने लगे। 1323 में हुई तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में काकतीय वंश पूरी तरह समाप्त हो गया। कोहिनूर हीरा हर पुरुष राजा के लिए एक श्राप साबित हुआ। जिसने भी इसे पाने की कोशिश की या अपना बनाया, इस हीरे ने उनके पूरे के पूरे वंश को ही समाप्त कर दिया। काकतीय वंश के बाद यह हीरा मोहम्मद बिन तुगलक के पास आ गया। इसके बाद 16वीं शताब्दी के मध्य तक रोशनी का ये पहाड़ अलग-अलग मुगल सल्तनतों के पास रहा। लेकिन जिस-जिस के भी पास यह रहा, उन सबका अंत बेहद दर्दनाक रहा। जब यह हीरा शाहजहां के पास आया तब उसने अपने सिंहासन में इसे जड़वा लिया और इसी के साथ ही उसका अंत भी करीब आ गया। शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज महल का इंतकाल, शासन का उसके बेटे औरंगजेब के हाथ में जाना, अपने ही बेटे द्वारा बंदी बनाया जाना, कुछ इसी हीरे के श्राप का कारण माना जाता है। 1739 ईसवी में फारसी आक्रमणकारी नादिर शाह ने मुगल सल्तनतों का पतन कर इस हीरे को अपना बना लिया और वह इसे अपने साथ पर्शिया ले गया। नादिर शाह ने ही इस हीरे का नाम कोह-इ-नूर, यानि रोशनी का पहाड़ रखा। नादिर शाह की भी हत्या हो गई और फिर यह हीरा अफगानिस्तान के शहंशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया। अहमद शाह दुर्रानी की मौत के बाद यह हीरा उसके उत्तराधिकारी शाह शुजा दुर्रानी के पास जा पहुंचा और उसके कुछ समय बाद ही मोहम्मद शाह ने शाह शुजा का सिंहासन छीन लिया। 1813 ई. में अफ़गानिस्तान का अपदस्त शहंशाह शाह शुजा कोहिनूर हीरे के साथ भाग कर लाहौर पहुंचा और उसने कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रणजीत सिंह को सौंप दिया। इस हीरे के इसके एवज में राजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का राज-सिंहासन वापस दिलवाया और आखिरकार यह हीरा फिर से एक बार भारत लौट आया। इस हीरे को हासिल करने के महज कुछ ही समय बाद पंजाब के राजा रणजीत सिंह की भी मौत हो गई और उनकी गद्दी उनके उत्तराधिकारियों तक भी नहीं पहुंची। रणजीत सिंह की मौत और उनके उत्तराधिकारियों की दुर्दशा देखने के बाद अंग्रेजी हुकूमत को भी यह बात समझ में आ गई कि वाकई इस हीरे के साथ कोई ना कोई श्राप जुड़ा है। इस हीरे के श्राप का बस एक ही काट था कि अगर ईश्वर या फिर कोई महिला कोहिनूर को पहनती है तो यह श्राप विफल हो जाएगा। यह बात जानने के बाद अंग्रेजी सरकार ने यह निर्णय किया कि इसे कोई पुरुष नहीं बल्कि महिला ही पहनेगी। इसीलिए 1936 में जब कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लगा तो किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में इसे जड़वा दिया गया और तब से लेकर आज तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने से संबंधित महिलाओं की ही शोभा बढ़ा रहा है।
क्या है श्रापित कोहिनूर हीरे का राज ?
कहते हैं बिजली एक बार गिरे तो वह दुर्घटना है, उसी स्थान पर जब वह दूसरी बार गिरे तो वह एक इत्तेफाक है लेकिन अगर समान स्थान पर तीसरी बार भी बिजली गिरे तो समझ लेना चाहिए कि यह किसी का श्राप है। भारत का विश्वविख्यात धरोहर कोहिनूर हीरा, जिसे अंग्रेज भारत से दूर लंदन ले गए थे, उसके साथ भी जुड़ी है ऐसी ही एक रहस्यमय और आश्चर्यचकित बात। भले ही कोहिनूर दुनिया का सबसे अनमोल हीरा क्यों ना हो लेकिन उसके साथ भी एक ऐसा श्राप जुड़ा है जो मौत तो लाता ही है लेकिन पूरी तरह तबाह और बर्बाद करने के बाद।कोहिनूर अर्थात कोह-इ-नूर, का अर्थ है रोशनी का पहाड़, लेकिन इस हीरे की रोशनी ने ना जाने कितने ही साम्राज्यों का पतन कर दिया। वर्तमान आंध्र-प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित एक खदान में से यह बेशकीमती हीरा खोजा गया था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में सबसे पहले इस हीरे का उल्लेख बाबर के द्वारा “बाबर नामा” में किया गया था। कुछ स्रोतों के अनुसार, कोहिनूर हीरा, लगभग 5000 वर्ष पहले, मिला था, और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। हिन्दू कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्बवंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। जब जाम्वंत सो रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी। एक अन्य कथा अनुसार, यह हीरा नदी की तली में मिला था, बाबरनामा के अनुसार यह हीरा सबसे पहले सन 1294 में ग्वालियर के एक अनाम राजा के पास था। इस हीरे के श्राप को इसी बात से समझा जाता है कि जब यह हीरा अस्तित्व में आया तो इसके साथ इसके श्रापित होने की भी बात सामने आई कि: “इस हीरे को पहनने वाला दुनिया का शासक बन जाएगा, लेकिन इसके साथ ही दुर्भाग्य भी उसके साथ जुड़ जाएगा, केवल ईश्वर और महिलाएं ही किसी भी तरह के दंड से मुक्त होकर इसे पहन सकती हैं।” कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया। इतिहास से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार 1200-1300 ई. तक इस हीरे को गुलाम साम्राज्य, खिलजी साम्राज्य और लोदी साम्राज्य के पुरुष शासकों ने अपने पास रखा और अपने श्राप की वजह से यह सारे साम्राज्य अल्पकालीन रहे और इनका अंत जंग और हिंसा के साथ हुआ। किन जैसे ही यह हीरा 1326 ई. में काकतीय वंश के पास गया तो 1083 ई. से शासन कर रहा यह साम्राज्य अचानक 1323 ई. में बुरी तरह गिर गया. काकतीय राजा की हर युद्ध में हार होने लगी, वह अपने विरोधियों से हर क्षेत्र में मात खाने लगे और एक दिन उनके हाथ से शासन चला गया। काकतीय साम्राज्य के विनाश के बाद यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। अपने शासन काल के अन्तिम समय में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गुजरात में विद्रोह को कुचल कर तार्गी को समाप्त करने के लिए सिंध की ओर बढ़ा, तो मार्ग में थट्टा के निकट गोंडाल पहुँचकर वह गंभीर रूप से बीमार हो गया। यहाँ पर सुल्तान की मृत्यु हो गई। उसके मरने के पर इतिहासकार बदायूंनी ने कहा कि, “सल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।” जब कोहिनूर हुमायुं के पास पहुँचा तो उसका जीवन भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा। वह शेरशाह सूरी से हार गया। सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान अपने साले द्वारा हत्या को प्राप्त हुआ। उस साले को भी उसके एक मंत्री ने तख्तापलट कर हटा दिया। वह मंत्री भी एक युद्ध को जीतते जीतते आंख में चोट लग जाने के कारण हार गया, व स्ल्तनत खो बैठा। हुमायुं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो कि बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा। शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल में ही नजरबंद कर दिया। 1605 में एक फ्रांसीसी यात्री, जो हीरों जवाहरातों का पारखी था, भारत आया और उसने कोहिनूर हीरे को दुनिया के सबसे बड़े और बेशकीमती हीरे का दर्जा दिया। 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और सत्ता फारसी शासक नादिर शाह के हाथ चली गई। 1747 में नादिर शाह का भी कत्ल हो गया और कोहिनूर उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में गया। लेकिन कोहिनूर के श्राप ने उन्हें भी नहीं बक्शा। सभी को सत्ताविहीन कर उन्हीं के अपने ही समुदाय पर एक बोझ बनाकर छोड़ दिया गया। फिर यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास गया और कुछ ही समय राज करने के बाद रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी गद्दी हासिल करने में कामयाब नहीं रहे।

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