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क्या अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर मोदी सरकार के दांव में फंस गया विपक्ष?


नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार के खिलाफ तेलगूदेशम पार्टी (टीडीपी) की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा एवं वोटिंग के लिए लोकसभा अध्यक्ष ने शुक्रवार का दिन मुकर्रर किया है। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के बहाने पॉलिटिक्स का वो ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच होने वाला है, जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों को 2019 से ठीक पहले बैटिंग करने का भरपूर मौका मिला है। कांग्रेस सहित ज्यादातर विपक्षी दल एकजुट हैं, लेकिन मोदी सरकार इसे लेकर ज्यादा आशंकित नहीं दिख रही है। नरेंद्र मोदी के पास पर्याप्त संख्या है, ऐसे में सरकार सदन में अविश्वास प्रस्ताव की अग्निपरीक्षा को आसानी से पार कर लेगी। अनुमान यह भी जताया जा रहा है कि ऐसे में एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाकर प्रधानमंत्री मोदी के दांव में कहीं फंस तो नहीं गया है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने मोदी सरकार की विफलताओं के मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मंजूर नहीं किया, बल्कि उन्होंने टीडीपी द्वारा आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट्स का दर्जा दिए के मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दी। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में टीडीपी एक समय पार्टनर रही है।

आंध्र प्रदेश को स्पेशल पैकेज के मुद्दे पर नाता तोड़कर टीडीपी अलग हो गई, इसके बाद से लगातार अविश्वास प्रस्ताव की मांग करती रही, जिसका समर्थन कांग्रेस सहित विपक्ष की दूसरी पार्टियां भी कर रही थीं। मनसून सत्र के पहले दिन ही टीडीपी, कांग्रेस, एनसीपी जैसी पार्टियों ने फिर से अविश्वास प्रस्ताव दिया, इस पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने टीडीपी के द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। इसके बाद चर्चा और वोटिंग का दिन भी तय कर दिया। हालांकि मोदी सरकार पिछले दो सत्र से विपक्ष द्वारा लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव से बचती रही है। बजट सत्र में कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस की कई कोशिशों के बावजूद लोकसभा अध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया था। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव को मानसून सत्र के पहले दिन ही नोटिस कर लेना और चर्चा और वोटिंग का दिन भी तय कर देने से कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘ट्रैप’ में विपक्ष फंस तो नहीं गया?

545 सदस्यों वाली लोकसभा में मौजूदा समय में 535 सांसद हैं, यानी भाजपा को बहुमत हासिल करने के लिए महज 268 सांसद चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष को हटाकर बीजेपी के पास अभी 273 सदस्य हैं। इसके अलावा भाजपा के सहयोगी दलों में शिवसेना के 18, एलजेपी के 6, अकाली दल के 4, आरएलएसपी के 3, जेडीयू के 2, अपना दल के 2 अन्य के 6 सदस्य हैं। इस तरह से कुल संख्या 314 पहुंच रही है। ऐसे में बीजेपी को अविश्वास प्रस्ताव को गिराने और सरकार को बचाने में कोई दिक्कत नहीं होने वाली। अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है। लोकसभा में फिलहाल बीजेपी के पास अकेले 273 सांसद हैं, जबकि बहुमत के लिए उसे 272 सांसदों का आंकड़ा चाहिए। ऐसे में भाजपा के पास बहुमत से एक सदस्य ज्यादा है, लेकिन मौजूदा समय में भाजपा के कई सांसद बागी रुख अख्तियार किए हुए हैं। इनमें शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद और सावित्री बाई फुले शामिल हैं। ऐसे में तीन सीटें कम कर दी जाएं तो बीजेपी के पास 270 का आंकड़ा बचता है, जबकि उसे बहुमत के लिए सिर्फ 268 वोट चाहिए। मतलब मोदी सरकार को अविश्‍वास प्रस्‍ताव गिराने के लिए सहयोगियों की भी जरूरत नहीं है।

वहीं विपक्षी दलों की बात करें तो मौजूदा समय में लोकसभा में सबसे ज्‍यादा 48 सीटें कांग्रेस के पास हैं। अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाने वाली टीडीपी के पास 16 सीटें हैं, जबकि जेडीएस के 1, एनसीपी के 7, आरजेडी के 4, टीएमसी के 34, सीपीआईएम के 9, सपा के 7 सदस्य हैं। इसके अलावा आम आदमी के 4, टीआरएस के 11, वाईएसआर कांग्रेस के 4,एयूडीएफ के 3 और बीजेडी के 20 सदस्य हैं, इन्हें मिला लेते हैं फिर भी 268 के आंकड़े को छू नहीं पा रहे हैं। इसलिए यह माना जा रहा है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव का औंधे मुंह गिरना तय है।

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