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क्या स्कूल अस्पताल के मुद्दे पर हरियाणा में सफल हो पायेंगे केजरीवाल?

केजरीवाल जब भी हरियाणा आते हैं तो दिल्ली के स्कूलों तथा अस्पतालों की तुलना हरियाणा के स्कूलों एवं अस्पतालों से अवश्य करते हैं। और हरियाणा से अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिल्ली आमंत्रित कर वहां के स्कूलों तथा अस्पतालों की व्यवस्था जरूर दिखाते हैं। केजरीवाल हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी दिल्ली जाकर वहां के स्कूलों तथा अस्पतालों की व्यवस्था देखने हेतु चुनौती देते रहते हैं। हरियाणा के आगामी चुनावों में केजरीवाल दिल्ली के स्कूलों तथा अस्पतालों की सुधरी हुई स्थिति का हरियाणा के स्कूलों तथा अस्पतालों की दुर्दशा के साथ तुलना का नारा देकर हरियाणा में सत्ता पाना चाहते हैं।

लोकसभ तथा विधानसभा चुनावों को निकट आता देख, इनेलो के विभाजन के बाद हरियाणा में मची राजनैतिक खलबली का फायदा उठाने के लिए अब न केवल प्रदेश में पहले से ही मौजूद धरातल वाले दल सक्रिय हो गये है, अपितु दिल्ली में अर्धसत्ता राजसुख भोग रहे केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी अपनी दिल्ली में स्कूल-अस्पताल नीति की कामयाबी के सहारे हरियाणा की गद्दी तक पहुँचने के लिए प्रदेश में रैलियों का ताबड़-तोड़ आयोजन करने लगी हैं। 15 दिसम्बर को कैथल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्कूल-अस्पताल रैली में बोलते हुए कांग्रेस और बीजेपी पर जमकर प्रहार किए। केजरीवाल ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमने 3 साल में दिल्ली के नक्शे को ही पलट दिया है, जबकि कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने 70 साल के अपने कार्यकाल में देश की व्यवस्था को सुधारने की बजाए बिगाड़ने का काम किया है। केजरीवाल ने अपनी हर रैली के मुख्य आधार वाक्य को दोहराते हुए कहा कि दिल्ली के मोहल्ला, क्लीनिक, स्कूल, अस्पताल हरियाणा से बहुत ज्यादा अच्छे हैं। उल्लेखनीय है कि केजरीवाल जब भी हरियाणा आते हैं तो दिल्ली के स्कूलों तथा अस्पतालों की तुलना हरियाणा के स्कूलों एवं अस्पतालों से अवश्य करते हैं। और हरियाणा से अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिल्ली आमंत्रित कर वहां के स्कूलों तथा अस्पतालों की व्यवस्था जरूर दिखाते हैं। केजरीवाल हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी दिल्ली जाकर वहां के स्कूलों तथा अस्पतालों की व्यवस्था देखने हेतु चुनौती देते रहते हैं। हरियाणा के आगामी चुनावों में केजरीवाल दिल्ली के स्कूलों तथा अस्पतालों की सुधरी हुई स्थिति का हरियाणा के स्कूलों तथा अस्पतालों की दुर्दशा के साथ तुलना का नारा देकर हरियाणा में सत्ता पाना चाहते हैं।

हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव पी.के. दास ने कहा कि विद्यालय मुखिया ‘‘जहां चाह वहां राह’’ की उक्ति के अनुरूप प्रयास करें। उन्होंने कहा कि पहला संकल्प पास-प्रतिशतता में सुधार का होना चाहिए, इसके बाद औसत प्रदर्शन के सुधार के लिए प्रयास किए जाएं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रशंसनीय कार्य करने वाले मुखिया प्रशंसा के पात्र बनेंगे तो इसमें विफल रहने वाले मुखिया दंड के। हरियाणा के विद्यालयों के मुखियाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र के बचे हुए समय में किस प्रकार की रणनीति बनाकर परीक्षा परिणामों में सुधार लाया जा सकता है। परन्तु केवल पास करवाना ही एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिये, आज के कम्पटीशन के युग में ऐसे सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले साथियों से केवल पास के उद्देश्य से दी गयी शिक्षा के सहारे कैसे कम्पीट कर पाएंगे?

क्या है हरियाणा के स्कूलों की स्थिति?
10 सितंबर 2018 को विधानसभा में ही हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ ने शिक्षामंत्री राम बिलास शर्मा की ओर से बताया था कि प्रदेश में प्रधानाचार्य के 2170, मुख्य अध्यापक के 1222, पी.जी.टी. के 38229 और मौलिक अध्यापकों के 5548 पद स्वीकृत हैं। विभाग में मास्टर के 18761, सी एण्ड वी.के. 19127 तथा जे.बी.टी. मुख्य शिक्षक के 44269 पद स्वीकृत हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पी.जी.टी. के 14736 तथा टी.जी.टी. के 5939 पद रिक्त पड़े हैं। प्रदेश में शिक्षा विभाग में प्रथम व द्वितीय श्रेणी के भी सैकड़ों पद खाली पड़े हैं, जिनके अभाव में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई व्यवस्था ठप हो रही है।

6 सितंबर 2018 को विधान सभा में जानकारी देते हुए हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने बताया था कि हरियाणा में 13771 गेस्ट टीचर्स कार्यरत हैं। जिनमें 6252 जे.बी.टी., (जूनियर बेसिक ट्रेनिंग) 5554 टी.जी.टी. और 1965 पी.जी.टी. कार्यरत हैं। पहले इन्हें सालाना करीब 392 करोड़ रुपये वेतन मिलता था जो कि अब बढ़कर करीब 479 करोड़ रुपये हो गया है। अब सवाल उठता है कि प्रदेश में कार्यरत जिन 13771 गेस्ट टीचर्स की नौकरी पर चौबीसों घंटे सेवामुक्ति की तलवार लटकती रहती है, न जाने उन्हें कब घर जाने के आदेश थमा दिए जांयें। ऐसे में इन कच्चे अध्यापकों से कैसे पक्की पढ़ाई की आस की जा सकती है। ये अतिथि अध्यापक हर बार स्थाई अध्यापकों की ट्रान्सफर के समय ये फुटबाल बनाकर इधर से उधर लुढ़का दिए जाते हैं। एक गेस्ट टीचर, नाम न छापने की शर्त पर, कहते हैं कि उन्हें सरकार स्थाई अध्यापकों के ट्रान्सफर के समय मैदान में फालतू पड़े फुटबाल की तरह किक मारती रहती है, जहाँ जी करता है वहीं लुढ़का दिया जाता है। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि उन्हें पहले जिला भिवानी से फतेहाबाद जिला में भेज दिया गया बाद में अगले ट्रान्सफर के समय उन्हें फालतू घोषित कर पद मुक्त कर दिया गया। महीनों सड़क पर रखने के बाद उन्हें गुड़गाँव जिले में भेज दिया गया। वे प्रश्न करते हैं .. क्यों नहीं वर्ष 2005 से कार्यरत इन गेस्ट टीचर्स को कोई स्थाईकरण पालिसी बना कर स्थाई कर दिया जाए ताकि स्कूलों में वेकेंसी भी भर जाएं और इन गेस्ट टीचर्स को स्थाई रोजगार मिले।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, हरियाणा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्याम सखा श्याम कहते हैं मेडिकल कॉलेज में ट्रेनिंग लेकर शहरी वातावरण में रंग चुके डॉक्टर्स को देहात में न आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित रिहाइस मिलती है, न शुद्ध पीने का पानी, न बच्चों की अच्छी शिक्षा तथा न ही उन्हें इकवीस्टेटस सामजिक कम्पनी मिलती है, इसलिए वहां कोई भी डॉक्टर टिकना नहीं चाहता है। जब तक सरकार उन्हें यह सुविधाएं प्रदान नहीं करती है तब डॉक्टर्स का पी एच सी लेवल तक टिकना मुश्किल है। अगर सरकार हर सरकारी कर्मचारी, अधिकारी के लिए सरकारी नौकरी में रहने के लिए सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना तथा अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिक्षा दिलाना कंपल्सरी कर दे तो भी काफी हद तक सरकारी स्कूलों तथा अस्पतालों की व्यवस्था एवं अवस्था अपने आप ही सुधर जाएँगी।

कैसे सुधरे शिक्षा का गिरता स्तर?
गत शैक्षणिक सत्र 2017-18 में सरकारी स्कूलों में दसवीं कक्षा का बोर्ड का परिणाम मात्र 44 प्रतिशत तथा बारहवीं का परिणाम 64 प्रतिशत रहा था। शिक्षा की बदतर होती स्थिति इस बात से इंगित होती है कि गत वर्ष 121 स्कूल ऐसे थे जहाँ का दसवीं का परिणाम शून्य से दश प्रतिशत के मध्य रहा। दस हायर सेकेंडरी स्कूलों में बारहवीं का परिणाम भी शुन्य से दस प्रतिशत के बीच रहा। इनमें कुछ ऐसे स्कूल भी रहे जहाँ का परीक्षा परिणाम शून्य से ऊपर नहीं बढ़ पाया। हिसार जिले के काबरेल स्कूल का मामला लोकसभा में भी सांसद दुष्यंत चौटाला ने उठाया था जहाँ दसवीं की सभी 24 लड़कियां फेल हो गयी थी। अभी 19 दिसम्बर, 2018 को कम पास प्रतिशत वाले स्कूल मुखियाओं की मीटिंग आयोजित की गयी जिसमे स्पष्ट निर्देश दिए गये कि दसवीं के विद्यार्थियों की पास प्रतिशत 44 से बढ़ाकर 65 की जाये तथा बारहवीं की प्रतिशत 64 से 85 की जाए। अब सरकार ने शायद केजरीवाल की बार-बार की चुनौतियों के बाद स्कूलों की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया है, अगर सरकार अपने स्तर पर ही इस ओर ध्यान देती तो शिक्षा सत्र के प्रारम्भ में अप्रैल माह में ही स्कूल मुखियाओं की ऐसी मीटिंग आयोजित करती। अब शिक्षा सत्र के मात्र तीन महीने शेष हैं, ऐसे में कैसे ये स्कूल एक दम किसी जादुई छड़ी के सहारे अपने बच्चों की पास प्रतिशत बढ़ा पाएंगे, ये सोचनीय विषय है। क्या वे इस तीन महीने में इतना सुधार कर पाएंगे या नकल जैसे अवैध माध्यमों का आसरा लेकर अपनी नैया पार लगायेंगे।

उल्लेखनीय है कि पंचकूला में स्कूल शिक्षा निदेशालय में आयोजित इस बैठक में हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव पी.के. दास ने कहा कि विद्यालय मुखिया ‘‘जहां चाह वहां राह’’ की उक्ति के अनुरूप प्रयास करें। उन्होंने कहा कि पहला संकल्प पास-प्रतिशतता में सुधार का होना चाहिए, इसके बाद औसत प्रदर्शन के सुधार के लिए प्रयास किए जाएं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रशंसनीय कार्य करने वाले मुखिया प्रशंसा के पात्र बनेंगे तो इसमें विफल रहने वाले मुखिया दंड के। हरियाणा के विद्यालयों के मुखियाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र के बचे हुए समय में किस प्रकार की रणनीति बनाकर परीक्षा परिणामों में सुधार लाया जा सकता है। परन्तु केवल पास करवाना ही एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिये, आज के कम्पटीशन के युग में ऐसे सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले साथियों से केवल पास के उद्देश्य से दी गयी शिक्षा के सहारे कैसे कम्पीट कर पाएंगे? जब प्राइवेट स्कूलों में कम वेतन पर कार्यरत अध्यापक बढ़िया परिणाम दे रहे हैं तो, ज्यादा पढ़े-लिखे और ज्यादा वेतन लेने वाले सरकारी अध्यापक पीछे क्यों? जब तक सरकारी स्कूलों में पूरे अध्यापक नियुक्त नहीं किये जायेंगे तथा अध्यापकों एवं स्कूल मुखिया को कमतर परिणाम के लिए जिम्मेदार ठहरा उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी सुधार की कामना करना कोई मायने नहीं रखती? देखते हैं सरकार कुछ ऐसे कठोर कदम उठा पाती है या अपने वोट बैंक को डगमगाने के भय से यथास्थिति ही बनाए रखती है।

स्वास्थ्यविभाग का खुद का स्वास्थ्य चल रहा है खराब
प्रदेश में ग्राउंड लेवल पर चिकत्सा सुविधा ना के बराबर ही है? अलबत्ता तो कोई अस्पताल दूर-दूर तक उपलब्ध नहीं है, और अस्पताल है तो डॉक्टर नहीं है, डॉक्टर भी पोस्टेड हैं तो हाज़िर नहीं मिलते और अगर डॉक्टर मिल भी जाएं तो वहां इलाज की बजाय चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के नाम पर किसी जिला स्तरीय अस्पताल में रेफर करके अपनी ड्यूटी पूरी कर ली जाती है। स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली भी ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ की कहावत को अक्षरश: चरितार्थ कर रही है। विभाग में कुछ डॉक्टर्स ऐसे हैं जो वर्ष 2010 से 2017 के विभिन्न अंतरालों से विभाग से बिना अनुमति, बिना छुट्टी स्वीकृति के अनुपस्थित चल रहे है। सोते तो सब हैं पर स्वास्थ्य विभाग की तो न खुलने वाली कुम्भकरणी नींद है। जगाये कौन? पर देर आये दुरुस्त आये। 21 दिसम्बर, 2018 को जारी एक सरकारी सूचना के अनुसार हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि ड्यूटी पर गैरहाजिर रहने वाले डॉक्टरों पर कारवाई के लिए कमेटी का गठन किया है।

श्री विज ने बताया कि यह कमेटी एक रिपोर्ट तैयार करेगी और छुट्टी या ड्यूटी पर न आने वाले डाक्टरों को नोटिस भेजगी। इसके लिए उन्हें अखबार में तीन नोटिस निकलवाएगी और इसके बावजूद भी अगर कोई ड्यूटी नहीं आएगा तो उनकी सेवा समाप्त कर दी जायेगी। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा की इन डाक्टरों की संख्या लगभग 180 के करीब है।
गांवों में अस्पतालों की स्थिति तो इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि हरियाणा के 47 उपमंडल में से केवल 21 उपमंडल में सरकारी अस्पताल है, यहाँ लोगों को प्राइवेट नीम हकीम के पास इलाज के लिए निर्भर रहना पड़ता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स वर्ष 2018 (31.03.2018 की स्थिति) के अनुसार हरियाणा में केवल कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों में ही 452 विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता के विरुद्ध केवल 17 ही नियुक्त हैं और 435 की अभी कमी है। यहां सरकार की चिकित्सा के प्रति उदासीन इच्छाशक्ति भी स्पष्ट होती है कि प्रदेश की (पी एच सी) में सरकार ने 452 विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता के विरुद्ध केवल 59 पद स्वीकृत कर रखे हंै और स्वीकृत 59 पद में से भी 42 पद रिक्त पड़े हैं, केवल 17 चिकत्सा विशेषज्ञ ही नियुक्त कर रखे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पी एच सी) में भी 551 स्वीकृत चिकित्सक पदों के विरुद्ध 60 पद खाली पड़े हैं। पदों की है, यह स्थिति केवल स्वीकृत पदों की है आवश्यकता मापदंड के अनुसार तो स्थिति काफी ख़राब है। खुद स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज स्वीकार करते है कि वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मापदंड के अनुसार प्रति 1000 व्यक्तियों पर एक चिकित्सक होना चाहिए जबकि भारत में 1800 व्यक्तियों पर एक चिकित्सक उपलब्ध है। रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स वर्ष 2018 (31.03.2018 की स्थिति) के अनुसार हरियाणा में कुल 2589 सब हेल्थ सेंटरों में से 942 केन्द्रों की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है, वे या तो किराए के भवनों में चल रही हैं या किसी पंचायत या अन्य भवनों में। 368 प्राथमिक हेल्थ सेंटर में से भी 54 केंद्र का अपना भवन नहीं है। 113 में से दो कम्युनिटी हेल्थ सेंटर के पास भी अपनी बिल्डिंग नहीं है।
हालांकि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने अंग्रेजी दैनिक द ट्रिब्यून में18 दिसम्बर, 2018 को छपे एक समाचार में दिल्ली के मुख्यमंत्री को चुनौती देते हुए हरियाणा में स्वास्थ्य विभाग में की गयी प्रगति का दावा किया है कि उनकी सरकार ने अपने इस चार साल के कार्यकाल में पुरानी सरकार द्वारा चालू किये गये 21 सीएचसी, 77 पीएचसी तथा 216 एसएचसी का निर्माण कार्य पूरा करवाया है। और 13 अस्पताल, 14 सीएचसी, 26 पीएचसी एवं 37 एसएचसी के नए भवनों का भी निर्माण करवाया है। परन्तु जहाँ 2589 (एसएचसी) सब हेल्थ सेंटरों में से 942 केन्द्रों, 368 (पीएचसी) प्राथमिक हेल्थ सेंटर में से 54 केंद्र की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है वहां चार वर्ष में केवल 37 एसएचसी, 26 पीएचसी एवं 14 सीएचसी, का नव निर्माण कब तक स्वस्थ्य सेवाओं को सुधार पायेगा, यह चिन्तनीय विषय है।


केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आधीन कार्यरत सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस द्वारा जारी नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के अनुसार सारे हरियाणा में सीएचसी केन्द्रों में केवल 16 विशेषज्ञ चिकित्सक तथा पीएचसी केन्द्रों में केवल 429 डॉक्टर्स कार्यरत हैं। इस प्रकार हरियाणा में प्रति 10189 व्यक्तियों के पीछे एक सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है। जबकि वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मापदंड के अनुसार प्रति 1000 व्यक्तियों पर एक चिकित्सक होना चाहिए। इस अनुपात के हिसाब से प्रदेश की 2.50 करोड़ से अधिक जनसंख्या के लिए वर्तमान में कार्यरत 2618 सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर की बजाय दस गुना यानी कम से कम 26000 सरकारी चिकित्सक होने चाहिए। परन्तु जिस रफ्तार से सरकार डॉक्टर्स को ट्रेनिंग दे रही है और भर्ती कर रही है, उस हिसाब से तो अगली सदी तक भी हरियाणा की हालात नहीं सुधर सकती। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, हरियाणा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्याम सखा श्याम कहते हैं मेडिकल कॉलेज में ट्रेनिंग लेकर शहरी वातावरण में रंग चुके डॉक्टर्स को देहात में न आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित रिहाइस मिलती है, न शुद्ध पीने का पानी, न बच्चों की अच्छी शिक्षा तथा न ही उन्हें इकवीस्टेटस सामजिक कम्पनी मिलती है, इसलिए वहां कोई भी डॉक्टर टिकना नहीं चाहता है। जब तक सरकार उन्हें यह सुविधाएं प्रदान नहीं करती है तब डॉक्टर्स का पी एच सी लेवल तक टिकना मुश्किल है। अगर सरकार हर सरकारी कर्मचारी, अधकारी के लिए सरकारी नौकरी में रहने के लिए सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना तथा अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिक्षा दिलाना कंपल्सरी कर दे तो भी काफी हद तक सरकारी स्कूलों तथा अस्पतालों की अवस्था अपने आप ही सुधर जाएँगी। सरकार को प्राइवेट अस्पतालों के साथ एम्पन्नेल्मेंट भी बंद कर देनी चाहिए।

विधान सभा क्षेत्र लोहारू के आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष सुभाष पंवार सिवानी मंडी बताते हैं कि सिवानी क्षेत्र में गाँव लीलस, गुरेरा, बड़वा तथा झुम्पा कलां में चार पी.एच.सी. हैं, परन्तु गुरेरा में कोई डॉक्टर नहीं है, यहां दूसरी पी.एच.सी. लीलस के डॉक्टर को ऑफिसियल काम काज निपटाने हेतु चार्ज दिया हुआ है। राजस्थान बोर्डेर पर स्थित गुरेरा के लोगों को इलाज के लिए नीम हकीम पर निर्भर रहना पड़ता है। पंवार का कहना है कि यहां चालीस वर्ष से भी पहले बनी पी.एच.सी. की बिल्डिंग काफी पुरानी हो चुकी है, कोई सुविधा न होने के कारण यहाँ डॉक्टर नहीं टिकते हैं। मिराण एहालाँकि सी एच सी है, जहाँ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स होने चाहियें परन्तु लगभग पचास गाँव के मध्य इस सी.एच.सी. में कोई भी डॉक्टर नहीं है और ऑफिसियल कार्य हेतु तीस किलोमीटर दूर स्थित पी.एच.सी. झुम्पा कलां के डॉक्टर को एडिशनल चार्ज दे रखा है। क्षेत्र में किसी भी अस्पताल में लेडी डॉक्टर नहीं है, जिसके कारण औरतों को पचास किलोमीटर दूर हिसार लेडी डॉक्टर्स के पास जाना पड़ता है। सिवानी में सब डिवीज़नल हॉस्पिटल होने के बावजूद डॉक्टर्स के रहने के लिए कोई सुविधा नहीं है। विभागीय सूत्र भी सुभाष पंवार के वक्तव्य की पुष्टि करते हैं और कहते हैं कि यहाँ डॉक्टर्स को केवल दो हजार रुपए हाउस रेंट के रूप में दिए जाते हैं, इतने में तो सिवानी में रहने के लिए अच्छा मकान तो क्या कोई सिंगल रूम भी नहीं मिलता यहां नियुक्त छ: डॉक्टर्स के स्थान पर केवल तीन ही उपलब्ध हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज बार-बार यह स्वीकार कर रहे हैं कि प्रदेश में मेवात जैसे क्षेत्रों में उन्हें विशेष भत्ते भी दिए जा रहे है। मंत्री जी कारण बताते हुए कहते हैं कि दूर-दराज के इलाकों में डॉक्टर्स के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा तथा अन्य सुविधाओं की कमी के चलते वहां डॉक्टर्स सरकारी नौकरी में चयन के बाद भी ज्वाइन नहींं कर रहे हैं। यहाँ प्रश्न उठता है? क्या अच्छी शिक्षा तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं। दूसरे विभाग पर अपने विभाग की कमी या जिम्मेदारी को थोपना समस्या का कोई हल नहीं है। सरकार को त्वरित गति से हल खोजना होगा। ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर्स तैयार करने होंगे और उनको पूरी सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। ’

क्या केवल स्कूल? अस्पताल के मुद्दे पर जंग जीत पाएंगे केजरीवाल?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, हरियाणा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्याम सखा श्याम कहते हैं? केजरीवाल का स्कूल, अस्पताल रैली अभियान हरियाणा की जाति आधारित राजनीति में कोई खास असर नहीं डालेगा। हां, उनका बार-बार यह दोहराना कि हरियाणा में राजनेता जाट, गैर जाट की राजनीति करते आये हैं, जरूर असर डालेगा और भाजपा समर्थित गैर जाट वोटर्स, विशेषकर बनिया कम्युनिटी को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो सकता है। उनके इस अभियान से भाजपा को तो नुक्सान हो सकता है, परन्तु आम आदमी पार्टी को सत्ता गद्दी तक नहीं पहुंचा सकता। अन्य राजनैतिक विचारक भी स्वीकारते हैं कि हरियाणा में सार्वजानिक विकास का मुद्दा कोई वोट नहीं दिला सकता, यहां केवल व्यक्तिगत लाभ का कार्य या जातिगत समीकरण तथा गाँव में सूत-कसूत की लड़ाई ही जीत, हार का फैसला करती है। लोग कर्जा माफी तथा पन्द्रह लाख रुपए प्रत्येक के खाते में आएंगे, जैसे लालच देने वाले नारे ही लोगों को डगमगा कर वोट ले सकते हैं। यहां विकास के नाम पर वोट मिलते तो हरियाणा के विकास पुरुष कहलाने वाले चौधरी बंसीलाल कभी नहीं हारते। 1977 में केंद्र तथा हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के बुरी तरह हारने के बाद एक शाम अपने समर्थकों के साथ गप-शप लगाते हुए, जहां इन पंक्तियों का लेखक भी मौजूद था, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने विकास कार्यों का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने अपने लगभग 10 वर्ष के मुख्यमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्री के कार्यकाल में जितने विकास कार्य किये हैं उतने शायद ही किसी ने किये हों, फिर भी लोगों ने हमारी पार्टी को हरा दिया। यहाँ आम आदमी केवल ताजा (लिपी, लिपाई, पुताई) याद रखता है। हरियाणा के लोग दस साल के विकास को भूल गये और केवल गत साल-डेढ़ साल की इमरजेंसी व नसबंदी को मुद्दा बनाकर हमें हरा दिया। अत: जहाँ किये हुए सार्वजनिक विकास को जनता ने नकार दिया हो वहां स्कूल-अस्पताल के विकास के नारे मात्र से लोग प्रभावित होंगे, लगता तो नहीं।

 

 

 

 

 

जग मोहन ठाकन

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