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क्यों फ़्रांस में गृहयुद्ध जैसे हालात

फ़्रांस की पुलिस ने प्रदर्शन और तोड़फोड़ कर रहे 400 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया है। इस प्रदर्शन में तीन लोगों की मौत हो गई है। सौ से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए हैं। इस बीच फ़्रांस के निजी एंबुलेंस ड्राइवर भी सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं और उन्होंने संसद के पास के मुख्य चौराहे को ब्लॉक कर दिया है। देश के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हालत को संभालने और उसका स्थाई हल निकालने के लिए आपातकालीन बैठकें की हैं। प्रदर्शन कर रहे लोग ऊंचे ईंधन कर और बढ़ती क़ीमतों का विरोध कर रहे हैं। इस बीच फ़्रांस के क़ानून मंत्री ने कहा है कि हिंसा फैलाने वाले लोगों से क़ानून सख़्ती से निपटेगा।

नई दिल्ली: फ्रांस में 16 महीने पुरानी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार मुश्किल में है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों की आंच अब पेरिस तक पहुंच गई है। इसे लेकर फ्रांस में हिंसक प्रदर्शन का दौर जारी है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में 110 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इस सिलसिले में 260 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है। स्थिति को काबू करने के लिए सरकार आपातकाल लगाने पर विचार कर रही है। फांस के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक हालात के बारे में। इसके साथ यह भी जानेंगे कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की साख क्यों गिर रही है। दरअसल, फ्रांस की जनता के इस आक्रोश के पीछे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का वह वादा है, जिसे उन्होंने चुनाव के दौरान किया था। मैक्रों ने चुनाव प्रचार के दौरान देश की जनता को सुनहरा सपना दिखाया था। उन्होंने फ्रांस की जनता के समक्ष यह वादा किया था कि वह देश में आर्थिक वृद्धि लाएंगे। उन्होंने कहा था कि युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराया जाएगा। वहां की जनता ने उन पर भरोसा किया और वह देश के राष्ट्रपति बनें। लेकिन 16 माह के शासन काल में फ्रांस में कोई ऐसा चमत्कार नहीं हुआ। देश में आर्थिक विकास का पहिया नहीं दौड़ सका और युवाओं के रोजगार के सपने भी उड़ान नहीं भर सके। इसे लेकर फ्रांस की जनता में आक्रोश पनप रहा था। इस दौरान फ्रांस सरकार ने तेल पर टैक्स लगाकर लोगों की नाराजगी बढ़ा दी। तेल के दाम बढ़ने से फ्रांस में महंगाई बढ़ गई। इससे लोगों का गुस्सा सड़कों पर निकल रहा है। फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मैक्रों ने बड़े राजनीतिक बदलाव का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि समाज के पिछड़े और निचले तबके के लोगों को विकास में सहभागी बनाया जाएगा। लेकिन 16 माह पुरानी मैक्रों की सरकार पर कुलीन वर्ग की ओर झुकाव का आरोप लगा। मैक्रों की सबसे ज्यादा किरकिरी उनकी सुरक्षा में तैनात एलेक्ज़ेंड्रे बैनेला मामले में हुई। इस साल जुलाई में मैक्रों के 26 वर्षीय सुरक्षाकर्मी बैनेला का एक वीडियो सामने आया था, इसमें वह एक प्रदर्शनकारी को निर्मम तरीके से पीटते हुए नज़र आ रहे थे। इस घटना को लेकर देश में तमाम आलोचनाएं हुईं, लेकिन एलेक्ज़ेंड्रे को फ़्रांस सरकार ने पद से हटाया। इसके बाद से ही सरकार पर सवाल उठने लगे कि आख़िर सब कुछ जानते हुए भी मैक्रों ने क्यों एलेक्ज़ेंड्रे बैनेला को बचाने की कोशिश की? इस घटना के बाद फ़्रांस के लोगों को ये लगा कि कुछ कुलीन लोगों के लिए सरकार के अलग नियम हैं और बाक़ी देश के लिए अलग नियम लागू किया जा रहा है। कई बार कैमरे पर अति उत्साह के कारण मैक्रों अपने देश के नागरिकों के लिए अपमानजनक टिप्पणी कर चुके हैं। हाल में उन्होंने बाग़ान के मालियों के लिए कहा था कि माली जो काम ना मिलने की शिकायत करते हैं, उन्हें अन्य व्यवसाय की ओर रुख़ करना चाहिए। वे खाना परोसने का काम सीख सकते हैं। यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था फ्रांस में आर्थिक मंदी के कारण नौकरियों का सृजन बहुत कम हुआ है, जिसकी वजह से अक्टूबर में बेरोजगारों की संख्या में 1.2 प्रतिशत वृद्धि हुई। फ्रांस के श्रम मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले महीने फ्रांस में 34,400 बेरोजगारों की संख्या दर्ज की गई, जिससे देश में नौकरी की तलाश करने वालों की संख्या बढ़कर 28 लाख 10 हजार हो गई है। यदि प्रवासी विभाग और कर्मचारियों को भी जोड़ लिया जाए तो इस वक्त बेरोजगारों की संख्या 44 लाख 50 हजार है। सालाना आधार पर देखा जाए तो बेरोजगारों की संख्या में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यहां के कई सर्वेक्षण एजेंसियों का दावा है कि मैक्रों की लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। ओपिनियन-वे के मुताबिक फ़्रांस की केवल 28 फ़ीसद जनता मैक्रों के कामकाज से संतुष्ट हैं। छह माह पूर्व यानी जुलाई में यह आंकड़ा 35 फीसद था। मैक्रों की लोकप्रियता पूर्व राष्ट्रपति फ़्रास्वां ओलांद और निकोलस सरकोज़ी से भी कम है। अगर सर्वेक्षण पर भरोसा करें तो मैक्रों की लोकप्रियता निरंतर घट रही है। हालांकि, इमैनुएल मैक्रों के कार्यकाल के अभी साढ़े तीन साल शेष है। उनके पास अभी देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के लिए पर्याप्त समय बचा है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है वह देश की आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इमैनुएल मैक्रों अपने वादों को लेकर देश की राजनीति में छा गए थे। फ्रांस में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ा था। लेकिन राष्ट्रपति बनने के 16 महीने बाद उनकी इस लोकप्रियता पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में सवाय यह पैदा होता है कि क्या वाकई उनकी लोकप्रियता मंद पड़ रही है ? आपको पता होना चाहिए की फ़्रांस में अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था की तरह राष्ट्रपति बेहद शक्तिशाली होता है। व्यवस्था में समस्त शक्तियां उसके इर्द-गिर्द ही घुमती है। वह अपने देश में कोई भी नीति लागू करने का अधिकार रखता है। राष्ट्रपति मैक्रों का भले ही अपने देश में लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा हो, लेकिन अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उनकी साख मजबूत हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैक्रों ने जिस तरह फ़्रांस की तस्वीर बदली है, इसकी वहां के लोग उनकी तारीफ़ करते हैं।

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