दस्तक-विशेष

खाड़ी देशों में जान गंवाते श्रमिकों पर सरकारी चुप्पी!

पारस अमरोही
paras amrohiउत्तर प्रदेश के मऊ जिले के उम्मनपुर गांव की चार जिंदगियां पैसे कमाने के चक्कर में दुबई में मौत के मुंह में फंसी हैं। परेशानहाल मजदूरों के परिवार वाले वाराणसी के सांसद और देश के पीएम नरेंद्र मोदी के जनसंपर्क कार्यालय में लिखित जानकारी (रिक्वेस्ट लेटर) देने पहुंचे। उनके साथ आप नेता भी थे। अधिकारियों ने इनकी फरियाद वाला खत लेने से मना कर दिया। इस खत में पीड़ित परिवारों के मन की बात भी थी और बेबसी के साथ उम्मीद भी कि शायद पीएमओ कोई कदम उठाकर उनके बच्चों को मौत के मुंह से बाहर निकाल कर वापस अपने वतन पहुंचाने की व्यवस्था करें। मऊ जिले के जो चार लोग फंसे हैं उनमें बीते एक साल से सूर्यनाथ, करीब दो साल से रामलाल, करीब आठ महीने से उदयभान और राकेश हैं। दुबई में फंसे सूर्यनाथ ने वहां फंसे लोगों का वीडियो वॉट्सएप पर परिजनों को भेजा है। लोगों ने वीडियो में बताया है कि एम्बेसी भी मदद नहीं कर रही है। वह दिल का मरीज है लेकिन दवाई तक नहीं दी जा रही। इतना ही नहीं, मालिक ने पासपोर्ट रख लिया है और छह महीने से ज्यादा से इन्हे पगार भी नहीं दी जा रही है। यह कहानी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के ही चार कामगारों की नहीं है। ऐसे बेबस लोगों की लंबी कतार है और भारत सरकार इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। वर्ष 2015 में खाड़ी देशों में काम करने गए कम से कम 5,875 भारतीय कामगारों की जान चली गई। इनमें से किसी एक देश में हुई सबसे ज्यादा मौतें सऊदी अरब में दर्ज हुईं। भारत सरकार ने ये आंकड़े जारी करते हुए बताया कि पिछले साल केवल सऊदी अरब में ही 2,691 भारतीय श्रमिकों की जान चली गई। इसके बाद नंबर है संयुक्त अरब अमीरात का जहां 1,540 भारतीय मारे गए। भारत के विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में ये जानकारी दी। पिछले साल कतर में 279 तो वहीं ओमान में 520 भारतीयों के मारे जाने की खबर है। विदेश राज्यमंत्री ने बताया कि 2015 में बहरीन में 223, कुवैत में 611 और इराक में 11 भारतीय कामगारों की जान चली गई। हालांकि उन्होंने भारतीय प्रवासियों के मारे जाने और उनके खतरनाक पेशों में लगे होने में कोई संबंध नहीं बताया है। वीके सिंह ने कहा कि इन खाड़ी देशों के भारतीय दूतावासों और काउंसलरों से मिली जानकारी के अनुसार इनमें से ज्यादातर मौतें प्राकृतिक कारणों या ट्रैफिक दुर्घटनाओं के कारण हुईं। इसी साल अप्रैल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर गए थे। सऊदी किंग सलमान से मुलाकात में भी उन्होंने वहां बड़ी संख्या में काम करने वाले भारतीय मजदूरों के बारे में बात की थी। सऊदी अरब भारत का एक प्रमुख तेल निर्यातक देश है जो कि भारत के कुल कच्चे तेल आयात का करीब 19 फीसदी हिस्सा भेजता है। इन कामों को छोटा समझने के कारण खाड़ी देशों के नागरिक इन्हें नहीं करना चाहते हैं। हालांकि समय-समय पर कई भारतीय और दूसरे प्रवासी मजदूर इन देशों में रोजगारदाता के हाथों दुव्र्यवहार और अत्याचार की की शिकायतें करते हैं। कई बार इनका पासपोर्ट छीन लिया जाता है और वेतन भी रोक दिया जाता है। अपनी सऊदी यात्रा के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने इन प्रवासी मजदूरों के लिए 24 घंटे काम करने वाली हेल्पलाइन सेवा शुरु करने की बात की थी। कुशल श्रम की तो कद्र है लेकिन अकुशल कामगारों के लिए देश हो या विदेश हालात विडम्बनापूर्ण ही हैं। खाड़ी देश कतर के प्रवासी श्रम कानूनों और मजदूरों की मौतों के हवाले से एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट भी यही बताती है।
डॉक्टरी, इंजीनियरी या ऐसा ही ऊंचा काम करने विदेश जा रहे हैं तो शायद आपको दिक्कत न आएं, लेकिन अगर कोई छोटा कामगार या मजदूर परिवार का पेट पालने विदेश निकलता है तो ये सफर जोखिम भरा और जानलेवा हो सकता है। खाड़ी के अमीर देश कतर गए भारतीय मजदूरों की बदहाली की खबरें भी यही बताती हैं। प्रवासी भारतीय कामगारों की सुरक्षा दांव पर लगी है. देशों के श्रम कानून क्या अपने यहां काम करने वाले विदेशी मजदूरों और छोटे कामगारों के प्रति उदासीन और निष्ठुर हैं, ये सवाल एक बार फिर उठने लगे हैं।
labour in foregnखाड़ी का एक अत्यंत अमीर देश है कतर जो पिछले कुछ समय से विवादों में है। 2022 के विश्वकप फुटबॉल आयोजन के लिए जो बेशुमार निर्माण कार्य वहां हो रहा है उसमें दक्षिण एशिया के देशों के भी कामगार गए हैं। खासकर भारत और नेपाल से। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर के विश्व कप आयोजन और तैयारियों की रोशनी में एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें प्रवासी भारतीयों की मौतों पर सवाल उठाए हैं। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से उसने कहा है कि पिछले एक साल में 289 भारतीय कामगारों की कतर में मौत हुई है। हालांकि ये साफ नहीं है कि इनमें से कितने मजदूर थे और विश्व कप निर्माण कार्य में लगे थे।
मीडिया में भी इस पर परस्पर विरोधी आंकड़े और आकलन आ रहे हैं। कई रिपोर्ट ये इशारा करती हैं कि कतर श्रम कानूनों की घोर अनदेखी कर रहा है, जिसका फायदा निर्माण कार्य में लगी कंपनियां उठा रही हैं और वे बाहर से आए मजदूरों का शोषण कर रही हैं। ये रिपोर्ट बताती हैं कि वहां बहुत तंग हालात में गुजर बसर कर रहे मजदूर बेबस हो जाते हैं क्योंकि उनके पासपोर्ट भी कंपनियां ही रख लेती हैं और उन्हें पहचान पत्र भी नहीं दिया जाता है। इस तरह से वे एक तरह की कैद में रहने को विवश होते हैं। पिछले चार साल में करीब एक हजार प्रवासी भारतीयों की कतर में मौत हुई है।
लेकिन इन आंकड़ों को अलग रोशनी में परखती हुई रिपोर्टें भी आई हैं जो बताती हैं कि कतर में रहने वाले कुल भारतीयों की संख्या को देखते हुए ये मौतें नगण्य हैं। विदेशी कामगारों में सबसे ज्यादा संख्या कतर में भारतीयों की है और ये छह लाख से ज्यादा है। इसमें मजदूरों के अलावा डॉक्टरी, इंजीनियरी जैसे पेशों में शामिल भारतीय भी हैं, जिनकी स्थितियां जाहिर है बेहतर हैं। रही बात मौतों की तो ये सिर्फ विश्व कप आयोजन के निर्माण कार्य से जुड़ी हों, ऐसा नहीं है। उनकी अलग-अलग वजहें हैं और कई मौतें सामान्य की श्रेणी में आती हैं। आंकड़ों और परस्पर-विरोधी रिपोर्टों से इतर ये तो शायद सभी मानेंगे कि खाड़ी देशों में मजदूरी जैसे छोटे-मोटे काम करने के लिए गए प्रवासी भारतीयों की जीवन परिस्थितियां आकर्षक नहीं हैं। हाड़तोड़ मेहनत, बेतहाशा तापमान, पोषणयुक्त आहार की कमी, रहने के लिए पर्याप्त जगह का अभाव, ये सारी मुसीबतें तो उनकी बनी हुई हैं। कई मामलों में कंपनियों का रवैया भी सख्त ही पाया जाता है जैसे पासपोर्ट अपने पास रख लेना या पहचान पत्र जारी न करना आदि। कतर के साथ भारत के व्यापार और निवेश संबंधी दोतरफा समझौते हैं। इन समझौतों में अब प्रवासी मजदूरों के लिए काम का न्यायसंगत माहौल बनाने पर भी खुलकर बात की जानी चाहिए ताकि कंपनियां मनमानी न कर सकें। इसके लिए भारतीय दूतावास को भी अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी और अपने नागरिकों की स्थितियों की दरयाफ्त करते रहनी होगी। भारत में उपलब्ध सस्ता श्रम, विकसित, अमीर और तेल भंडार से समृद्ध खाड़ी देशों को लुभाता है। इन कामगारों का अकेला बोनस होता है अपना अस्तित्व।
भारत सरकार को बुरे हालात में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों के लिए काम की बेहतर स्थितियां सुनिश्चित कराने के लिए दबाव बनाना चाहिए। अपने प्रायोजकों और नियोक्ताओं के रहमोकरम पर टिके रहने की विवशता के साथ इन मजदूरों का काम करना, उस देश के लिए तो शर्मनाक है ही, उस देश को भी सोचना चाहिए कि आखिर दुनिया में तेजी से उभरती अपनी जिस शक्ति का डंका वो पीटता आ रहा है, वो शक्ति इन मामलों में कहां काफूर हो जाती है। 

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