पर्यटन

खूबसूरती का ख़जाना हैं अजंता की गुफाएं, बन जायेगा आपका सफर यादगार

अजंता की गुफाएं 56 मीटर ऊंचाई पर हैं और 550 मीटर के दायरे में फैली हैं। गुफा नंबर आठ सबसे नीची तो गुफा नंबर 29 पहाड़ की चोटी पर स्थित है। कुल मिलाकर यहां 29 गुफाएं देखने को मिलती हैं। इनमें गुफा नंबर 9,10,26, 29 पूजास्थल की तरह हैं तो बाकी विहार के लिए मशहूर हैं।

अजंता पहुंचने के दो रास्ते

मध्य रेल के स्टेशन भुसावल या जलगांव से यहां सीधे पहुंचा जा सकता है। इन स्टेशनों से अजंता की दूरी 70 किमी. के लगभग है। दूसरा रास्ता औरंगाबाद से होकर आता है। यहां से अजंता की दूरी अधिक लगभग 101 किमी. है। सीएनजी बसों से अजंता घाटी के नीचे पहुंचने और करीब 70 मीटर चढ़ाई चढऩे के बाद आंखों के सामने वह विस्तार था जिसकी कीर्ति हमें यहां तक खींच लाई थी। चारों तरफ हरियाली और ऊंचे पेड़ों से घिरी पहाड़ी में घोड़े की नाल के आकार वाले विस्तार में फैली गुफाओं के दरवाजे अब हमें दिखने लगे थे। बाघोरा नदी, जिसमें अब केवल बरसात और उसके कुछ महीनों में ही पानी रहता है, के किनारे चट्टानों को काटकर इन गुफाओं को बनाया गया है। शिलाखंड़ों को तराशकर एक विशालकाय घाटी के मार्ग में ये गुफाएं आरंभिक बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकारी और शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण हैं। मौर्य, वाकाटक, राष्ट्रकूट राजवंशों के अलग-अलग कालखंडों में इन गुफाओं का निर्माण किया गया। 1819 में एक अंग्रेज शिकारी जॉन स्मिथ ने इन्हें खोज निकाला।

नंबर में बंटी हैं गुफाएं

हमारा सामना सबसे पहले गुफा नंबर एक से हुआ। बौद्ध विहार होने के कारण सभी को गुफा के बाहर ही जूते उतार देने को कहा गया। गुफा के अंदर अंधेरा था। गुफा नंबर एक बीस स्तंभों पर बना बड़ा हॉल है। पूरे हॉल की दीवार और छतों पर चित्रकारी की गई है। इस चित्रकारी को देखने के लिए साथ में टॉर्च जरूरी है। यह टिकट खिड़की से भी कुछ रुपये अदाकर किराए पर ली जा सकती है। इसके बिना चित्रों को देख पाना संभव नहीं है।

विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध

गुफा के प्रवेश द्वार के ठीक सामने दीवार काटकर बनाई गई बुद्ध की विशाल मूर्ति है। बुद्ध की मूर्ति लगभग सभी गुफाओं में विभिन्न मुद्राओं में मौजूद है। अजंता की गुफाओं के निर्माण का काम करीब चार शताब्दी तक चला। खुदाई का काम वाकाटक राजाओं के शासन में हुआ। पांचवीं शताब्दी के आखिरी 50 साल और छठीं शताब्दी के आरंभिक 50 साल मूर्ति और चित्रकला के लिए स्वर्णयुग माने जाते हैं। अजंता की खुदाई का समय भी यही रहा। सातवीं शताब्दी के आते-आते काम धीमा होता गया। कई गुफाओं के निर्माण का काम अधूरा रह गया। ऐसा लगता है कि इनके निर्माणकर्ताओं की आर्थिक शक्ति चुक गई या फिर उनकी राजनीतिक सत्ता का पराभव हो गया। कुछ भी हो, अजंता का काम कई जगह अधूरा दिखाई देता है।

यहां के डिजाइन और खासतौर पर 26 और 16 नंबर गुफाओं के विशाल हॉल देखकर लगता है कि यह बौद्ध शिक्षा का एक विशाल केंद्र था। इन हॉलों का इस्तेमाल प्रशासनिक गतिविधि के तौर पर किया जाता रहा होगा। गुफा 26 की संरचना ऐसी है जिसके सामने खड़े होकर सभी गुफाओं पर नजर रखी जा सकती थी। इन गुफाओं में कुछ कमरे सोने के लिए भी बनाए गए हैं। अधिकांश गुफाओं में ध्यान लगाने के लिए छोटे-छोटे कमरे हैं। इन कमरों का आकार अलग-अलग है। साफ है इन्हें इनके उपयोगकर्ताओं के महत्व के आधार पर बनाया गया होगा। अजंता में पर्यटन विभाग ने हर गुफा में एक कर्मचारी को तैनात कर रखा है। इनका काम इन गुफाओं के बारे में पर्यटकों को जानकारी देना है। मगर इनमें से एक भी बिना दान-दक्षिणा लिए मुंह खोलने तक को तैयार नहीं होता। यहां तक कि अधिकांश गुफाओं में प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अजंता का ऐश्र्वर्य हमारे सामने बिखरा हुआ था। ताज की नगरी से अपने तार जुड़े होने से अजंता को देखकर जलन हो रही थी। लगता है ताज को सत्ता के करीब (दिल्ली के करीब) होने का लाभ मिला है, वरना अजंता का शिल्प और सौंदर्य दोनों ही अधिक बेजोड़ हैं।

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