दस्तक-विशेषराजनीति

गुजरात ने जातिवाद-परिवारवाद को नकारा

-प्रो.देवेन्द्र शर्मा

गुजरात में छठी बार भाजपा की जीत भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण और सीख देने वाली है। मतदाताओं ने दोनों को अलग-अलग तरह से सीख देने की कोशिश की है। पहले बात करें भाजपा की। भाजपा पिछले 22 साल से लगातार राज कर रही है। इसमें अधिकतर समय नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने गुजरात में विकास के नए युग का प्रारम्भ किया। भाजपा ने मूलतः विकास के नाम पर ही चुनाव लड़ा किन्तु पाटीदार आंदोलन के नाम पर गुजरात में जातिवाद को फिर से एक खतरे के रुप में प्रायोजित करने का काम किया। वास्तव में देश के अधिकतर भागों में बहुत सारे लोगों ने जातिवाद के सहारे ही सत्ता का सुख भोगा है। कई नाकारा और भ्रष्ट व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने और बने रहने में सफल हुए हैं। जाति और धर्म भारतीय राजनीति के दो बहुत ही अवांछनीय पक्ष हैं। इसलिए गुजरात में जातिवाद के दंश से भाजपा भी नहीं बच पाई फिर भी कम सीटों से ही सही जीत गई। इससे सबक लेकर भाजपा को 1919 के चुनाव की तैयारी करना चाहिए। सबक यह भी है कि गुजरात जैसे विकसित राज्य में भी जातिवाद का जहर कम नहीं हुआ है। कांग्रेस की सीटें बढ़ने से भी भाजपा को सबक लेना चाहिए। 1919 के लिए उसे बहुत काम करना है।

कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव से सबक और प्रोत्साहन दोनों है। कांगेस प्रारम्भ से ही जातिवाद और सम्प्रदायवाद के सहारे सत्ता में बनी रही। अल्प संख्यकों की हितेशी का मुखोटा पहन कर सत्ता में लम्बे समय तक बनी रही। वास्तव में कांग्रस अल्प संख्यकों की गरीबी का लाभ उठाती रही। उसकी रुचि उनको गरीब रखने और बहुसंख्यक हिन्दुओं के नाम से डराने में रही है ताकि वे उसे वोट देते रहे, हुआ भी यही। अब जैसे-जैसे अल्प संख्यकों का भ्रम टुटता जा रही है राजनैतिक समीकरण भी बदलने लगे हैं। उत्तरप्रदेश के चुनाव में यह स्पष्ट हो गया है। इतिहास देखा जाए जो हिन्दू किसी के भी लिए संकीर्ण अथवा खतरा रहे ही नहीं है।

गुजरात चुनाव में राहूल गांधी ने खुब जोर लगाया जातिवाद के सहारे उगे हुए कुकुरमुत्तो का भी बेहद सहारा लिया। मंदिर गए, पूजा पाठ की पर अधिक लाभ नहीं हुआ। जो सीटें बढ़ी वे भाजपा सरकार के प्रति असंतोष का परिचायक हो सकती है। राहूल गांधी को समझना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी का विकास कांगेस के जातिवाद से अधिक पसंद आने लगा है। विकास सबको अच्छा लगता है। कुछ मूलभूत सुविधाएं तो गरीब से गरीब भी चाहने लगा है। बिजली, साफ-सफाई, छोटा सा घर और बच्चों के स्कूल सबको पसंद आने लगे हैं। कांगेस को इस वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। वैसे भाजपा और कांग्रेस दोनों को समझना चाहिए कि अब आप नागरिकों को मुर्ख नहीं बना सकते। 

 

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