दस्तक-विशेष

गोरखनाथ मंदिर का महत्व

दिलीप कुमार

गोरखनाथ मंदिर सिर्फ नाथ योगियों के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त हिंदुओं के लिए आस्था का केंद्र है। गुरु गोरखनाथ की समाधि मंदिर और गोरखनाथजी की गद्दी इसी मंदिर के अंदर स्थित है। वैसे तो इस मंदिर की ख्याति पूरे विश्व में है, लेकिन पूर्वांचल, तराई और नेपाल में इसे काफी पवित्र माना जाता है। आस्थावान यहां के महंत को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हैं। कहा जाता है कि जो भी गोरखनाथ चालीसा 12 बार जप करता है वह दिव्य ज्योति के साथ धन्य हो जाता है। मकर संक्रांति पर मंदिर में खिचड़ी का मेला लगता है, जो एक माह चलता है। इतिहास के अनुसार गोरखनाथ मंदिर सल्तनत और मुगलोें के शासन के दौरान कई बार नष्ट भी हुआ, लेकिन हर बार इसका आकार बढ़ता ही गया है। पहली बार अलाउद्दीन खिलजी ने 14वीं सदी में और दूसरी बार 18वीं सदी में औरंगजेब ने इसे नष्ट किया था। कहा जाता है कि शिव गोरक्ष ने त्रेता युग में यहां जो ज्योति जलाई थी वो आज तक अखंड रूप से जल रही है। महाभारत काल में भीम भी यहां आए थे। यहां आराम किया। उनकी सोए अवस्था में विशाल प्रतिमा यहां पर स्थापित है।
हिंदुओं में खास पहचान रखने वाले नाथ सम्प्रदाय का मठ ‘गोरक्ष पीठ’ हठ योगियों का गढ़ रहा है। जाति-पाति से दूर यह संप्रदाय तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर पूरे पश्चिम उत्तर भारत में फैला था। गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ को हिंदू समेत तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्ध योगी माना जाता है। रावलपिंडी शहर को बसाने वाले राजपूत राजा बप्पा रावल गोरखनाथ को अपना गुरु मानते थे। इन्हीं की प्रेरणा से मोरी (मौर्या) सेना को एकत्र कर मुहम्मद बिन कासिम के हमलों से भारत की रक्षा की गई।
गोरखपुर से रिश्ता
नाथ संप्रदाय क्या है और इसका गोरखपुर से क्या रिश्ता है, इस बारे में जानना जरूरी है। प्राचीनकाल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को 11वीं सदी में गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार एक सू़़त्र में पिरोया। खासतौर से गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव को रोका। योग विद्याओं को एकत्र किया। नेपाल की गोरखा जाति के बारे में कहा जाता है कि बाबा गोरखनाथ के नाम से पड़ा। वहां के एक जिले का नाम गोरखा नाम भी गुरु गोरखनाथ से जुड़ा है। बाबा गोरखनाथ ने जिस स्थान को अपनी कर्मभूमि बनाई, आज वही गोरक्षनाथ या गोरखनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
चौरासी और नौ नाथ परंपरा
8वीं सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के वज्रयान की परंपरा का प्रचलन हुआ। कहा जाता है कि ये सभी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से जो प्रमुख हुए उनकी संख्या 84 मानी गई है।
इसके अलावा नौ नाथ गुरु मच्छेंद्रनाथ, गोरखनाथ, जालंधरनाथ, नागेशनाथ, भारतीनाथ, चर्पटीनाथ, कनीफनाथ, गेहनीनाथ और रेवननाथ हुए।
इसके अलावा आदिनाथ, मीनानाथ, गोरखनाथ, खपरनाथ, सतनाथ, बालकनाथ, गोलकनाथ, बिरुपक्षनाथ, भर्तृहरिनाथ, अईनाथ, खेरचीनाथ और रामचंद्रनाथ की भी चर्चा है। वैसे बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगानाथ, पंढरीनाथ और साईं बाबा को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं।
नाथ संप्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिवजी के स्वरूप हैं। ‘श्री गोरक्षनाथ जी’ सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी सौराष्ट्र में स्थित हुए थे।

क्या है नाथ संप्रदाय
हिंदू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देखरेख यहीं से होती है। नाथ संप्रदाय की मान्यता के अनुसार गोरक्षनाथ जी को शिव का साक्षात स्वरूप माना है। प्राचीनकाल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने एकजुट किया। इस संप्रदाय के बिखराव और इसकी योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धुनी रमाते हैं। या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है।
प्रारंभिक 10 नाथ
आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकालनाथ, काल भैरवनाथ, बटुकनाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ।
इनके 12 शिष्य नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुननाथ थे।
महंतों का इतिहास
गुरु गोरखनाथ के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि दी जाती है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्रीवरदनाथ जी महाराज कहे जाते हैं। वे गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। इसके बाद परमेश्वरनाथ हुए। गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में बुद्धनाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्रनाथ जी, महंत पियारनाथ जी, बाबा बालकनाथ जी, योगी मनसानाथ जी, संतोषनाथ जी महाराज, मेहरनाथ जी महाराज, दिलावरनाथ जी, बाबा सुंदरनाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीरनाथ जी, बाबा ब्रह्मनाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज रहे हैं।
11 सितंबर 2014 में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ब्रह्मलीन हुए थे। उनकी समाधि उनके गुरु महंत दिग्विजयनाथ की समाधि स्थल के पास में बनाई गई। महंत योगी आदित्यनाथ ने भी गुरु की समाधि व मूर्ति के लिए कोई कसर नहीं रखी। जयपुर के मूर्तिकार से उनकी मूर्ति मई 2016 में तैयार करवाई।
कौन हैं गोरखनाथ
महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। वे हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर मां पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। अनेकों ग्रंथों की रचना की। नेपाल के गोरखा जिले में एक गुफा है, जहां गोरखनाथ का पग चिन्ह है। उनकी एक मूर्ति भी है। काठमांडू में गोरक्षनाथ का आगमन पंजाब से या कम से कम नेपाल की सीमा के बाहर से ही हुआ था। ऐसी भी मान्यता है कि काठमांडू में पशुपतिनाथ के मंदिर के पास ही उनका निवास था। संत कबीर को भी गोरक्षनाथ जी का समकालीन माना जाता हैं। गोरक्षनाथ जी की एक गोष्ठी में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है। कबीर, नानक आदि के साथ गोरखनाथ का संवाद हुआ था, इस पर दंतकथाएं भी हैं और पुस्तकें भी लिखी गई हैं। गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे रांझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से संबंधित कई तीर्थ स्थल हैं।
मंदिर का इतिहास
गोरखनाथ मंदिर नाथ परंपरा में नाथ मठ समूह का एक मंदिर है। इसका नाम मध्ययुगीन संत गोरखनाथ (11वीं सदी) के नाम से पड़ा। वे प्रसिद्ध योगी थे। नाथ परंपरा गुरु मच्छेंद्र नाथ ने स्थापित की थी। गोरखनाथ मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां वे तपस्या करते थे। उनको श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए इस मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर रखा गया, जिन्होंने अपनी तपस्या का ज्ञान मत्स्येंद्रनाथ से लिया था, जो नाथ संप्रदाय (मठ का समूह) के संस्थापक थे। अपने शिष्य गोरखनाथ के साथ मच्छेंद्र नाथ ने योग स्कूलों की स्थापना की। करीब 52 एकड़ में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यंत कीमती आध्यात्मिक संपत्ति है।

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