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चंपा षष्ठी व्रत करने धुल जाते हैं पूर्व जन्म के पाप, जानें क्या है महत्व

ज्योतिष डेस्क : चंपा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान शिव के अवतार खंडोबा या खंडेराव को समर्पित है। खंडोबा को किसानों, चरवाहों और शिकारियों आदि का मुख्य देवता माना जाता है। यह त्योहार कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों का प्रमुख त्यौहार है। मान्यता है कि चंपा षष्ठी व्रत करने से जीवन में खुशियां बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से पिछले जन्म के सारे पाप धुल जाते हैं और आगे का जीवन सुखमय हो जाता है। इस दिन भगवान शिव ने राक्षसों मणि और मल्ह पर जीत हासिल की थी। भगवान शिव ने मणि और मल्ह से छह दिनों के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें चंपा षष्ठी के दिन पर हराया। राक्षसों के साथ लड़ाई के बाद, भगवान शिव एक स्वयं शिवलिंग के रूप में खण्डोबा मंदिर में दिखाई दिये गये। जिस तरह पूर्वी इलाको में चैत्र व शारदीय नवरात्र होते हैं, उसी तरह मार्गशीर्ष प्रतिपदा से चंपा षष्ठी तक के छह दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में नवरात्र की तरह ही उपवास रखने के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। घरों में लोग इनकी प्रतिमा की स्थापना कर आराधना करते हैं। कई लोग सोने अथवा चांदी के पतरे पर प्रतिमा गुदवाकर पूजा के लिए रखते हैं। प्रदेश के इंदौर, खंडवा, बुरहानपुर के अलावा महाराष्ट्र में इसे काफी धूमधाम से मनाते हैं। शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं। इस दिन मल्हारी कवच व मल्हारी करुणाष्टक का पाठ भी किया जाता है।

चंपा षष्ठी त्योहार भगवान शिव और दो शक्तिशाली राक्षसों मणि और मल्ह की लड़ाई की कहानी के साथ जुड़ा हुआ है।राक्षसों ने एक विशाल सेना बनाई और तीनों लोकों पर कब्जा करने की कोशिश की। ऋषि तथा देवों ने मदद के लिए भगवान विष्णु का दरवाजा खटखटायाण्विष्णु ने कहा कि यह भगवान शिव का काम है और उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की और दुनिया को बचाने के लिए कहा भगवान् शिव ने भैरव रूप लिया और देवी पार्वती ने शक्ति रूप लिया। शिवशंकर और दानव भाइयों मणि मल्ह के बीच लड़ाई छह दिनों तक चली और भगवान शिव ने षष्ठी के दिन राक्षसों को मार डाला। चंपा षष्ठी इस घटना की स्मृति में मनाया जाता है। भगवान शिव स्वयंभू खण्डोबा मंदिर में शिवलिंग के रूप में दिखाई दिए गये। भगवान् शिव मार्तंड या मलहरी या खण्डोबा या खंडेराव के रूप में महाराष्ट्र में चंपा षष्ठी त्योहार के दौरान पूजे जाते है। भगवान शिव ने भैरव अर्थात मल्हारी मार्तंड का रूप धारण कर मणिमल्ल नामक राक्षस का वध किया था। यह दिन चंपा षष्ठी का था। दक्षिण भारत में इस पर्व को भगवान कार्तिकेय की पूजा के साथ मनाया जाता है। कार्तिकेय भगवान शिव के पुत्र हैं। उन्होंने भी राक्षस का वध किया था। उन्हें चंपा का पुष्प पसंद है। इसलिए इस माह की षष्ठी को चंपा षष्ठी कहा जाता है।
पूजा विधि : प्रातः स्नान के बाद शिवलिंग की पूजा करें। इत्र मिले गाय के घी का दीपक जलायें, तगर से धूप करें, गुलाब का फूल चढ़ाएं, अबीर चढ़ाएं, खांड का भोग लगाएं तथा पूजन के बाद भोग को जल में प्रवाहित कर दें।
मंत्र : ॐ मार्तंडाय मल्लहारी नमो नमः॥ इस मंत्र से जाप करें।
उपाय
– शिव मंदिर में षडमुखी तिल के तेल के 9 दीप जलाएं इस से ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
– शिव मंदिर में कार्तिकेय को नीला वस्त्र चढ़ाने से मान.सम्मान की प्राप्ति होती है।
– शिवलिंग पर बैंगन व बाजरा चढ़ाकर गरीबों में बांटे। इस से शत्रुओं से रक्षा होती है।

 

 

 

 

द्वारा-पंडित प्रखर गोस्वामी, एस्ट्रो गुरुकुल क्लासेज
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