दस्तक-विशेष

चांटे के साथ शुरू हुआ था राजकपूर का करियर

raj-kapoor1नई दिल्ली: हिंदी फिल्म जगत के ‘शोमैन’ कहे जाने वाले दिवंगत अभिनेता-निर्माता-निर्देशक राज कपूर का आज 90वां जन्मदिन है। उनके फिल्मी करियर की शुरुआत भी उनकी तरह ही निराली है। हिंदी सिनेमा में बड़े कीर्तिमान स्थापित करने वाले राज कपूर का फिल्मी करियर एक चांटे के साथ शुरू हुआ था। हुआ यूं कि पेशावर (पाकिस्तान) में जन्मे राजकपूर जब अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ मुंबई आकर बसे, तो उनके पिता ने उन्हें मंत्र दिया कि ‘राजू नीचे से शुरुआत करोगे तो ऊपर तक जाओगे’। पिता की इस बात को गांठ बांधकर राज कूपर ने 17 साल की उम्र में रंजीत मूवीकॉम और बॉम्बे टॉकीज फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में स्पॉटब्वॉय का काम शुरू किया। उस वक्त के नामचीन निर्देशकों में शुमार केदार शर्मा की एक फिल्म में क्लैपर ब्वॉय के रूप में काम करते हुए राज कपूर ने एक बार इतनी जोर से क्लैप किया कि नायक की नकली दाड़ी क्लैप में फंसकर बाहर आ गई और केदार शर्मा ने गुस्से में आकर राज कपूर को एक जोरदार चांटा रसीद कर दिया। आगे चलकर केदार ने ही अपनी फिल्म ‘नीलकमल’ में राजकपूर को बतौर नायक लिया। राज कपूर को अभिनय तो पिता पृथ्वीराज से विरासत में ही मिला था, जो अपने समय के मशहूर रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता थे। राज कपूर पिता के साथ रंगमंच पर काम भी करते थे, उनके अभिनय करियर की शुरुआत पृथ्वीराज थियेटर का मंच से ही हुई थी। राज कपूर का पूरा नाम ‘रणबीर राज कपूर’ था। रणबीर अब उनके पोते यानी ऋषि-नीतू कपूर के बेटे का नाम है। 14 दिसंबर 1924 को पेशावर में जन्मे राज कपूर की स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई थी। हालांकि पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा और 10वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि मनमौजी राज कपूर ने विद्यार्थी जीवन में अपनी किताबें-कॉपियां बेचकर खूब केले, पकौड़े और चाट के मौज उड़ाए थे।
राज कपूर की फिल्मों के कई गीत बेहद लोकप्रिय हुए, जिनमें ‘मेरा जूता है जापानी’ (श्री 420), ‘आवारा हूं’ (आवारा), ‘ए भाई जरा देख के चलो’ (मेरा नाम जोकर), ‘जीना इसी का नाम है’ (मेरा नाम जोकर), ‘आजा सनम, मधुर चांदनी में हम’ (चोरी-चोरी), ‘कहता है जोकर सारा जमाना…’ (मेरा नाम जोकर), ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ (तीसरी कसम), ‘मुड मुड कर न देख’ (श्री 420), ‘ये रात भीगी भीगी’ (चोरी चोरी), ‘किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार’ (अनाड़ी), और ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ (श्री 420) सबसे ज्यादा मशहूर हैं। राज कपूर के बारे में एक और दिलचस्प बात है। कहते हैं कि बचपन में राज कपूर सफेद साड़ी पहने हुई एक स्त्री पर मोहित हो गए थे। उसके बाद से सफेद साड़ी से उनका मोह इतना गहरा गया कि उनकी तमाम फिल्मों की अभिनेत्रियां (नर्गिस, पद्मिनी, वैजयंतीमाला, जीनत अमान, पद्मिनी कोल्हापुरे, मंदाकिनी) पर्दे पर भी सफेद साड़ी पहने नजर आईं। यहां तक कि घर में उनकी पत्नी कृष्णा हमेशा सफेद साड़ी ही पहना करती थीं। राज कपूर की मशहूर फिल्मों में ‘बरसात’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘तीसरी कसम’, ‘जागते रहो’, ‘संगम’,‘मेरा नाम जोकर’, ‘श्री 420’, ‘आवारा’, ‘बेवफा’, ‘आशियाना’, ‘अंबर’, ‘अनहोनी’, ‘पापी’, ‘आह’, ‘धुन’, ‘बूट पॉलिश’ प्रमुख हैं। जबकि बतौर निर्देशक उनकी फिल्में ‘आग’, ‘अंदाज’, ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘संगम’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’, ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’, ‘प्रेमरोग’, ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई’ मशहूर हैं। भारत सरकार ने राज कपूर को मनोरंजन जगत में उनके अपूर्व योगदान के लिए 1971 में पद्मभूषण से विभूषित किया था। साल 1987 में उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा 1960 में फिल्म ‘अनाड़ी’ और 1962 में ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। 1965 में ‘संगम’, 1970 में ‘मेरा नाम जोकर’ और 1983 में ‘प्रेम रोग’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। शोमैन राज कपूर का दुनिया की नजरों से ओझल हो जाना भी सामान्य घटनाओं से अलहदा रहा। दो मई, 1988 को एक पुरस्कार समारोह में उन्हें भीषण दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद वह एक महीने तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे। आखिरकार दो जून 1988 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। भारतीय सिनेमा के इतिहास में राज कपूर का योगदान उन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके बाद परिवार की चार पीढ़ियां लगातार सिनेमा जगत में सक्रिय रही हैं और मनोरंजन के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं। कपूर परिवार एक ऐसा परिवार है, जिसमें दादा साहेब फालके पुरस्कार दो बार आया। सन 1972 में राज के पिता पृथ्वीराज कपूर को भी यह सर्वोच्च पुरस्कार मिला था।

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