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छोटी बचतों पर कुठाराघात

प्रसंगवश 

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ज्ञानेन्द्र शर्मा

भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी काले धन पर तरह तरह के वादे उस समय से करते रहे हैं जब वे 2014 के चुनाव के लिए वोट मांगने निकलते थे। कभी कहते थे कि सारा काला धन विदेशों से भारत ले आएंगे और हर नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपया जमा करा दिया जाएगा तो कभी कहते थे कि कांग्रेस की सरकार काले धन को बढ़ावा दे रही है। उनकी पार्टी कभी कहती थी कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए तरह-तरह की सुविधाएं दी जाएंगी- उन्हें विशेष स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिया जाएगा, उनकी बचत पर उन्हें ज्यादा मुनाफा दिया जाएगा। एक नई सुकन्या बचत योजना शुरू की गई जिसके लिए कहा गया था कि उस पर बढ़ा हुआ ब्याज दिया जाएगा, ऐसी योजनाएं लागू की जाएंगी कि काला धन पनपे ही नहीं।
लेकिन ये सब बातें तो तब की थीं जब सत्ता चाहिए थी। अब सत्ता मिल गई तो पुरानी बातों को कूड़ेदान में फेंक देना ही उचित है, आखिर स्वच्छता अभियान भी तो चलाना है। सरकार ने जिस तरह से छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर घटाई है, वह इसलिए भी चौंकाने वाली है कि यह उस काले धन को जमा किए जाने को प्रोत्साहन देगा जिसका नारा देकर भाजपा सत्ता में आई है।

chhoti bachatछोटी बचतें लघु मध्यम वर्ग, वरिष्ठ नागरिक और अल्पाय वाले लोग करते हैं। 5-10 हजार जो कुछ उनके पास जमा होता रहता है, उसे वे फिक्स्ड डिपोजिट में डालते रहते हैं, इस उम्मीद में कि उनकी रकम में इजाफा होगा लेकिन अब दरें इतनी कम कर दी गई हैं कि इन वर्गों के लोग परेशान हो उठे हैं और सोचने लग गए हैं कि बैंक या पोस्ट आफिस में पैसा जमा करने से क्या फायदा? वे कर्मचारी जिन्हें विभिन्न मदों में दफ्तर से नकद भुगतान मिलता है, वे भी सोचेंगे कि पैसे को घर की तिजोरी में ही क्यों न रखें। जो कमी की गई है, वह आंखें खोल देने वाली है। वरिष्ठ नागरिकों की 5 -वर्षीय जमा राशि पर ब्याज दर 9.3 से घटाकर 8.6 कर दी गई है। किसान विकास पत्र की ब्याज दर 8.7 से 7.8 और पंचवर्षीय राष्ट्रीय बचत पत्र की दर 8.5 से घटाकर 8.1 कर दी गई है। 5 वर्षीय पोस्ट आफिस डिपाजिट की दर 8.5 से 7.9 और एक वर्ष की दर 8.4 से घटाकर 7.1 कर दी गई है।
सरकार ने पिछले साल बड़े शोरशराबे और प्रचार के साथ सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की थी और कहा था कि उसमें जमा की जाने वाली राशि की ब्याज दर दूसरी योजनाओं से कहीं ज्यादा होगी। यह दर 9.2 रखी गई थी। इसे भी अब घटाकर 8.6 कर दिया गया है। निश्चित है कि सरकार की इस बहु-प्रचारित योजना पर तुषारापात होगा। वैसे भी आंकडे़ बताते हैं कि बैंकों में डिपॉजिट में गिरावट आई है। पिछले एक साल में बैंकों में जमा की वृद्धि दर में भारी गिरावट आई है। 20 मार्च 2015 को यह दर 10.7 थी जो 18 मार्च 2016 में घटकर 9.9 रह गई। यह पिछले 53 साल की सबसे कम दर है। स्पष्ट है कि बैंकों में पैसा जमा करने में लोगों की दिलचस्पी कम हुई है। सरकार जमा राशि पर ब्याज दर में निरंतर रूप से कमी करती आ रही है जबकि होना इससे उल्टा चाहिए था। छोटी बचतें किसी भी अर्थ व्यवस्था को बड़ा संबल देती हैं। इसके अलावा आम लोगों को छोटी बचतों का बहुत बड़ा सहारा होता है। लेकिन सरकार में बैठे बड़े-बड़े अर्थशास्त्री इतना छोटा सा गणित भूल गए, यह सर्वथा आश्चर्य की बात है। ’

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