स्वास्थ्य

जानिए क्या है लाइलाज निपाह वायरस के लक्षण, कैसे करें बचाव…

केरल में एक छात्र के निपाह से संक्रमित होने की पुष्टि के बाद यह विरल और जानलेवा बीमारी फिर से खबरों में है. पशुजनित यह बीमारी चमगादड़ों या सुअरों के जरिये मनुष्यों में फैलती है और यह दूषित भोजन एवं मनुष्य से मनुष्य के संपर्क से भी फैल सकती है.

निपाह के लक्षण:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार निपाह से संक्रमित व्यक्ति में कभी-कभी कोई लक्षण नजर नहीं आता है लेकिन आम तौर पर इससे संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, घातक इनसेफलाइटिस, मस्तिष्क में सूजन की समस्या हो सकती है. संक्रमित व्यक्ति के शुरुआती लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी और गले में खराश शामिल है. इसके बाद व्यक्ति को चक्कर आने, झपकी आने की समस्या के साथ याददाश्त, बोधगम्यता पर असर देखा जा सकता है, जो गंभीर इनसेफलाइटिस के संकेत हैं.

इनसेफलाइटिस से उबर चुके अधिकतर मरीज शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ तो हो जाते हैं लेकिन यह भी देखा गया है कि उनमें तंत्रिका से संबंधी समस्या लंबे समय तक बनी रहती है. डब्ल्यूएचओ ने इस रोग से मृत्यु दर 40 से 75 प्रतिशत बतायी है.

कब हुई इस महामारी की शुरुआत :
निपाह वायरस का सबसे पहले पता 1999 में मलेशिया में सुअर पालने वाले किसानों के बीच फैली महामारी के दौरान चला. 2001 में बांग्लादेश में इसका पता चला और तब से यह देश में महामारी सालाना तौर पर उभरती रहती है. समय-समय पर भारत में भी इस रोग का पता चलता रहता है. पिछले साल केरल में इस विषाणु से 17 लोगों की मौत हो गयी थी.

कैसे फैलता है निपाह :
डब्ल्यूएचओ के अनुसार पहली बार मलेशिया में इस बीमारी का पता चलने और सिंगापुर के भी इससे प्रभावित होने के दौरान पाया गया कि विषाणु से संक्रमित अधिकतर लोग बीमार सुअरों या उनके दूषित उत्तकों के सीधे संपर्क में आये थे. इसके बाद बांग्लादेश और भारत में इस महामारी के फैलने का सबसे संभावित स्रोत चमगादड़ों के मूत्र, लार से संक्रमित फलों अथवा उनसे निर्मित उत्पाद या ताड़ी का सेवन है. फिलहाल खून या लार जैसे शरीर के तरल पदार्थ या प्रकृति में विषाणु की मौजूदगी को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है.

मनुष्य से मनुष्य में भी इसके संक्रमण की रिपोर्ट मिली है, जैसे कि संक्रमित मरीज की सेवा कर रहे परिवार के लोगों या तीमारदारों में इसके संक्रमण की रिपोर्ट मिली है. बांग्लादेश एवं भारत में बाद में फैली यह महामारी सीधे-सीधे मानव-से-मानव संपर्क से फैली. गुरुग्राम के पारस अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन के डॉ. पी. वेकंटा कृष्णन ने बताया, ‘‘संक्रमित उत्पाद को खाने से विषाणु व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित हो जाता है.

ऐसे में यह विषाणु अपने पहले स्थान से कहीं नहीं हटता. यह मौसमी प्रतिक्रिया के मामले जैसा है.’’ उन्होंने बताया, ‘‘ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां निपाह विषाणु की पहचान हुई है. ऐसे मामले किसी खास इलाके में ही बने रहते हैं और इसका प्रसार नहीं होता.’’ कृष्णन ने बताया कि स्वाइन फ्लू की तुलना में इसकी संक्रमण दर बेहद कम है.

रोग का निदान:
निपाह विषाणु के शुरुआती लक्षण अक्सर ज्ञात नहीं होते और इसी कारण शुरू में इसका उपचार नहीं हो पाता है.
इससे सही समय पर उपचार में रुकावट आती है और यह महामारी का पता लगाने, प्रभावी एवं समय रहते संक्रमण को नियंत्रित करने वाले उपाय और महामारी से निपटने वाली गतिविधियों में चुनौतियां पैदा करता है.

मुख्य जांच : लार, खून से रियल टाइम पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) जांच और एंजाइम लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट (एलिसा) जांच से एंटीबॉडी की पहचान. अन्य जांच में पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) की जांच और सेल कल्चर द्वारा वायरस का पता लगाना.

उपचार :
फिलहाल इस रोग के लिये कोई दवा या टीका नहीं है हालांकि डब्ल्यूएचओ ने इसकी पहचान डब्ल्यूएचओ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिये प्राथमिक रोग के तौर पर की है. गाजियाबाद में कोलंबिया एशिया अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन के डॉ. दीपक वर्मा ने बताया, ‘‘निपाह के लिये इस वक्त कोई टीका उपलब्ध नहीं है. निपाह विषाणु रोग की वजह से इनसेफलाइटिस से पीड़ित मरीजों में एंटीवायरल ‘रिबाविरीन’ मृत्यु दर को कम करने में भूमिका निभा सकता है.’’ ‘साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन’ में प्रकाशित हालिया अध्ययन के अनुसार बंदरों पर किये गये प्रयोग में प्रायोगिक इबोला दवा का निपाह से संक्रमित बंदरों पर सकारात्मक असर देखा गया.

प्राकृतिक स्रोत :
चमगादड़, सूअर
मलेशिया में 1999 में महामारी के पता चलने पर अन्य घरेलू जानवरों जैसे बकरी, भेड़, कुत्ते और बिल्ली में भी संक्रमण का पता चला.

रोकथाम :
महामारी का संदेह होते ही पशुओं के बाड़े को तुरंत खाली कर देना चाहिए.
संक्रमित पशुओं का वध कर उन्हें दफना या जला देना चाहिए. संक्रमित पशुओं को अन्य इलाकों में जाने से रोकना चाहिए. टीके की अनुपस्थिति में संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका लोगों को इससे बचाव के उपायों की जानकारी देना और जागरुकता का प्रसार है

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