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जानिए, टीम जेटली में कौन हैं शामिल और क्या हैं चुनौतियां

जानिए, टीम जेटली में कौन हैं शामिल और क्या हैं चुनौतियां

वित्त मंत्री अरुण जेटली इस सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पहली फरवरी को पेश करने की तैयारी में जुट चुके है। इस बजट से लोगों की उम्मीदें ज्यादा हैं। इस बार बजट तैयार करने का जिम्मा अपेक्षाकृत नई टीम के पास है। इस टीम की कमान फाइनैंस सक्रेटरी हसमुख अढ़िया के पास है। सवाल यह है कि क्या ये लोगों की उम्मीदें पूरी करने में जेटली की मदद कर पाएंगे? क्या इकनॉमी में जान डाल पाएंगे? आइए देखते हैं कि बजट FY19 पर कौन से अहम लोग काम कर रहे हैं और क्या हैं चुनौतियां…जानिए, टीम जेटली में कौन हैं शामिल और क्या हैं चुनौतियां
हसमुख अढ़िया
फाइनैंस सेक्रटरी और सेक्रटरी, रेवेन्यू डिपार्टमेंट
फाइनैंस मिनिस्ट्री में सबसे तजुर्बेकार अढ़िया ने कई बजट देखे हैं। हालांकि इस साल वह बजट टीम की अगुवाई कर रहे हैं। गुजरात काडर के 1981 बैच के आईएएस अफसर अढ़िया को देश के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। अढ़िया ने सरकार के ऐंटी-ब्लैक मनी एजेंडा को आगे बढ़ाने में भी बड़ी भूमिका निभाई है। इसके अलावा टैक्स चुकाने की व्यवस्था को आसान बनाने में भी उन्होंने योगदान दिया, जिसका असर वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनस रैंकिंग में इंडिया की पोजिशन सुधरने में दिखा। उनके सामने अब एक ठोस बजट बनाने की चुनौती है, जिससे इकॉनमी को फायदा हो। (जेटली के साथ अढ़िया)।
अरविंद सुब्रमण्यन
चीफ इकनॉमिक अडवाइजर
बजट घोषणा की पूर्व संध्या पर आने वाले अरविंद सुब्रमण्यम के इकनॉमिक सर्वे में आमतौर पर ऐसे आइडिया होते हैं, जिनसे कई तरह की बहस शुरू होती है। पिछली बार के बजट में गरीबी उन्मूलन के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम का आइडिया था। क्या इस बार इसके बजट में जगह मिलेगी? एक साल के एक्सटेंशन पर काम कर रहे सुब्रमण्यम के लिए यह संभवत: आखिरी इकनॉमिक सर्वे होगा। इस पर ऐसे बड़े आइडिया के लिए लोगों की नजर होगी, जिनसे इकनॉमी को रफ्तार मिले और देश में कृषि क्षेत्र के संकट के समाधान भी मिलें। उन्होंने इकनॉमी को रफ्तार देने के लिए फिस्कल टूल्स के ज्यादा उपयोग की वकालत भी की है।

नीरज कुमार गुप्ता

1981 बैच के इस आईएएस ऑफिसर के नेतृत्व में डायवर्सिफाइड स्ट्रैटिजी ने फायदा दिया है और पहली बार सरकार अपने डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट से अधिक रकम हासिल कर सकी है। उन्होंने स्ट्रैटेजिक सेल्स और दूसरी पब्लिक ऑफरिंग्स के लिए कई अप्रूवल्स के साथ अगले वित्त वर्ष में भी विनिवेश की अच्छी रफ्तार की राह बना दी है। चुनावी साल करीब आने के साथ संसाधन जुटाने के लिए सरकार फाइनैंशल ईयर 2019 के लिए कहीं बड़ा विनिवेश लक्ष्य तय कर सकती है। बड़ी सरकारी कंपनियों में सरकार के बहुमत हिस्सेदारी रखने की जरूरत को देखते हुए ज्यादा गुणा-गणित की गुंजाइश तो नहीं है, ऐसे में ज्यादा मुश्किल स्ट्रैटिजिक सेल्स पर अधिक जोर देना होगा। गुप्ता और उनकी टीम को संसाधन जुटाने के लिए दूसरे इनोवेटिव कदमों पर भी ध्यान देना होगा।
सुभाष चंद्र गर्ग
सेक्रटरी, डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स
इकनॉमिक अफेयर्स सेक्रटरी बनने से पहले गर्ग वॉशिंगटन में वर्ल्ड बैंक में एग्जिक्युटिव डायरेक्टर थे। ग्रोथ में जान डालने, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देने, रोजगार के मौके बनाने जैसी चुनौतियां गर्ग के सामने हैं और ये सभी काम उन्हें राजकोषीय अनुशासन में ढील दिए बिना करने हैं।
राजीव कुमार

सेक्रटरी, डिपार्टमेंट ऑफ फाइनैंशल सर्विसेज
बैंकरप्सी लॉ लागू हो चुका है और सरकारी बैंकों में 2.11 लाख करोड़ रुपये डालने की योजना का ऐलान हो चुका है। ऐसे में सरकार को सरकारी बैंकों में रिफॉर्म्स के दूसरे चरण की शुरुआत करनी होगी। अच्छा प्रदर्शन करने वालों को ग्रोथ कैपिटल मुहैया कराने, कंसॉलिडेशन पर जोर देने और सरकारी बैंकों में एचआर के मोर्चे पर बदलाव करने पर ध्यान बनाए रखना होगा। 1984 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव कुमार को बीमा और पेंशन सेक्टरों पर भी ध्यान देना होगा ताकि इनके दायरे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाया जा सके। सरकारी बैंकों को कर्ज वितरण की रफ्तार बढ़ानी होगी, खासतौर से मीडियम और स्मॉल एंटरप्राइजेज को दिए जाने वाले कर्ज के मामले में। मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया और दूसरी स्व-रोजगार योजनाओं पर ज्यादा जोर दिए जाने की उम्मीद है।

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