उत्तर प्रदेशलखनऊ

दीक्षा

विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला : विज्ञान एवं समाज

‘‘मुद्दत से तमन्ना थी कि रोशन-ए-चिराग करू, उसी गली को जहां से फैला अंधेरा है।’’

प्रो.ध्रुवसेन सिंह, लखनऊ विवि.

विश्व-पटल पर भारत की भूमिका ‘विश्व-गुरु’ एवं ‘भारत महान’ के रूप में स्वीकार की गयी है। भारत की महानता के न सिर्फ मानवजनित, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक आयाम हैं बल्कि प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों ने भी भारत को अनूठा, विशिष्ट एवं महान देश बनाया है। विश्व के बहुत से देश सिर्फ पर्वत हैं (कनाडा, अफगानिस्तान, नेपाल), बहुत से सिर्फ पठार (तिब्बत, मंगोलिया, अरब), बहुत से सिर्फ द्वीप (वेस्टइंडीज, जापान, इंडोनेशिया), बहुत से सिर्फ समुद्र तट (नार्वे, स्वीडन), बहुत से सिर्फ रेगिस्तान (खाड़ी देश), और बहुत से सिर्फ मैदान (इटली में पो का मैदान)। इस प्रकार प्रकृति ने किसी भी देश में सिर्फ एक ही प्रकार की भौगोलिक स्थिति प्रदान की है। किन्तु ये सारी की सारी प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थितियां पहाड़ (हिमालय), पठार (दक्षिण का), द्वीप (लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार), रेगिस्तान (थार), समुद्र तट (पूर्वी एवं पश्चिमी) एंव मैदान (गंगा का) एक साथ भारत देश में मौजूद है, इसलिए भारत विशिष्ट एवं महान है।

प्राचीन काल से ही विश्व के अन्यान्य देशों का भारत के प्रति आकर्षण उसकी ज्ञान-प्ररंपरा के कारण ही बना रहा। यह ज्ञान-परंपरा एक विशिष्ट जीवन दर्शन को आप्लावित करती है। यह जीवन दर्शन जब हमारे आचार-विचार में अवतरित होता है तो संस्कृति स्वरूप ग्रहण करती है। प्रत्येक राष्ट्र को एक प्रकृति-प्रदत्त स्वाभाविक चिति प्राप्त होती है, जो जीवन में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक एवं वैज्ञानिक विषयों को जन्म देती है। शिक्षा का मूल प्रयोजन मनोवृत्ति को सुरक्षित और समृद्ध रखते हुए इसको प्र्रति-प्रकाशित करते रहना है। इसी कारण शिक्षण-संस्थान राष्ट्र के दीप-स्तम्भ माने गये हैं तथा शिक्षण संस्थाएं अक्षय ज्ञान-परंपरा की पोषक, वाहक और रक्षक मानी जाती हैं। विश्वविद्यालय में विभिन्न स्थानों से छात्र अपने श्रेष्ठ और उज्जवल भविष्य को बनाने एवं एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रवेश लेते हैं, अपने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अनवरत अधिक परिश्रम भी करते हैं तथा सफलता भी प्राप्त करते हैं, जिसमें उनके विभाग के शिक्षकों का अमूल्य योगदान होता है। लेकिन कई बार छात्र दूसरे विषयों की ज्वलंत एवं समसामयिक मौलिक जानकारी से अनभिज्ञ होते हैं, हमें ये बताते हुए बड़े ही गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे विश्वविद्यालय के हर विभाग में उच्चकोटि के शिक्षक मौजूद हैं, जो देश-विदेश में जाकर अपने विषय पर व्याख्यान देते हैं तथा देश एवं प्रदेश स्तर की परीक्षाओं में विषय-विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किये जाते हैं। ऐसे शिक्षकों से यहां के छात्र लाभान्वित हो सकें, इसी दिशा में एक सार्थक कदम है, एक सच्चा प्रयास है यह ‘विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला’।

एक विश्वविद्यालय के रूप में अपनी गौरवशाली परंपरा के अनुरूप अपने इसी प्रकार के दायित्व बोध का निर्वहन करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन आरम्भ किया है। सामान्यतः प्रत्येक शनिवार को आयोजित होने वाली इस व्याख्यान-श्रृंखला में विद्यार्थियों की बहु-अनुशासनात्मक तथा अंतरानुशासनात्मक समझ को विकसित करने की दृष्टि से विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विभिन्न आयामों तथा दृष्टिकोणों से भी विद्यार्थियों को परिचित कराने का उद्देश्य सामने रहता है। विद्या-विमर्श के क्षेत्र मेें उत्पन्न संकट का निदान करना विद्या-प्रतिष्ठानों और उनमेें कार्यरत विद्वतजनों का दायित्व है। अपने विद्यार्थियों के माध्यम से विद्या-साधना और विद्यार्जन के सतत प्रवाह को केन्द्र में रखते हएु लखनऊ विश्वविद्यालय ने भारतीय इतिहास एवं संस्कृति, संविधान, अर्थनीति, सृष्टि-विज्ञान, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध् तथा पर्यावरण एवं स्वास्थ्य जैसे विद्या-विमर्श और लोक-महत्व दोनों की दृष्टियों से महत्वपूर्ण विषयों पर विश्वविद्यालय और विशिष्ट शोा संस्थानों के आधिकारिक विद्वानों के व्याख्यानों का आयोजन इस व्याख्यान-श्रृंखला में किया गया है।

उल्लेखनीय है कि इस व्याख्यानों से विद्यार्थियों को तो अपेक्षित लाभ हुआ ही, विश्वविद्यालय के शिक्षकों को भी अन्यान्य विषयों के केन्द्रीय प्रश्नों और चिंताओं को समझने का एक अवसर प्राप्त हुआ। विदित हो कि इन व्याख्यानों में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों-विभागों तथा नगर के विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षकों सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहते हैं। प्रत्येक व्याख्या के उपरांत विद्यार्थियों और शिक्षकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों पर आधिकारिक वक्ताओं द्वारा प्रस्तुत समाधानों में एक स्वस्थ और जीवन्त- विमर्श को गति प्रदान की है। समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों के माध्यम से इन व्याख्यानों का सार-संक्षेप जन-मानस तक भी पहुंचता रहा। इस व्याख्यान-श्रृंखला की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि यह श्रृंखला किसी एक विषय, विभाग अथवा संकाय पर केन्द्रित नहीं थी, वरन् इसमें पूरे विश्वविद्यालय के प्रत्येक विषय, विभाग व संकाय के शिक्षकों-विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता रही।

बहुत-बहुत धन्यवाद उन प्यारे छात्रों का जो शनिवार को इस व्याख्यान का इंतजार करते हैं। विश्वविद्यालय परिवार उनके मंगलमय भविष्य की कामना तथा ज्ञान-विज्ञान के प्रति उनकी अभिरुचि का स्वागत करता है। हम आभारी हैं अपने सहयोगी शिक्षकों एवं विषय- विशेषज्ञों के जिन्होंने व्याख्यान दिया तथा अपनी उपस्थिति से शैक्षिक एवं अनुशासित माहौल बनाने में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। अलग-अलग विभागों के शिक्षकों की उपस्थिति छात्रों के सुनहरे भविष्य के लिए उनकी शुभकामनाओं के साथ-साथ उनकी इस व्याख्यान श्रृंखला में सक्रिय सहभागिता, शैक्षिक सुरुचि एवं उनके बहुआयामी चिंतन को प्रदर्शित करती है। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने उन व्याख्यानोें को स्थायी महत्व प्रदान करने के लिए उन्हें एक पुस्तिका ‘दीक्षा’ के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है, जो अति प्रशंसनीय है। विश्वविद्यालय के शिक्षक, छात्र एवं कर्मचारियों को व्याख्यान में सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए ‘दीक्षा’ (विशिष्ट व्याख्यान एवं कुछ शाश्वत विषयों पर विशिष्ट लेख) इस विश्वास के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है कि यह विश्वविद्यालय की शैक्षिक गतिविधियों के क्षेत्र में एक सार्थक प्रयास सिद्ध होगा।

मैं गोपालदास नीरज की निम्न पंक्यिों से अपनी लेखनी को विराम देता हूं कि-

‘‘मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में, नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा।
उतर क्यों न आये नखत सब गगन के, नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा।।
मिटेंगे तभी यह अंधेरे घिरे सब, स्वयं धर मनुज दीप का रूप आये।
जलाओ दीए पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।।’’

(लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं एवं उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के प्रथम अभियान दल के सदस्य हैं तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सरस्वती सम्मान,शिक्षा श्री और विज्ञान रत्न से सम्मानित हैं।)

 

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