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देश की आजादी के लिए काटी जेल, सहूलियतों की चाहत दिल में लिए ही अलविदा कह गए

देश की आजादी में पंजाब के स्वतंत्रता सैनानियों का योगदान काफी सराहनीय रहा है। मगर देश के लिए जेलें काटने व कुर्बानियां देने वाले स्वतंत्रता सैनानियों को अक्सर सरकारें अनदेखा करती आई हैं। सरकारों की अनदेखी व बेरुखी पर इन स्वतंत्रता सैनानियों और उनके परिवारों पर क्या गुजरती है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकारों से सहूलियतों की आस लिए कई स्वतंत्रता सैनानी इस जहां से विदा हो चुके हैं। न जीते जी उन्हें कोई सहूलियत मिल पाई और न उनके परिवारों को आज तक कोई लाभ मिल पाया है।
देश की आजादी के लिए काटी जेल, सहूलियतों की चाहत दिल में लिए ही अलविदा कह गएदेश की आजादी में अहम योगदान देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पैतृक विधानसभा हलका लंबी के गांव शामखेड़ा के स्वतंत्रता सैनानी मुंशा सिंह के परजिनों को यह मलाल है कि वे सरकार से सहूलियतों की चाहत दिल में लिए ही इस दुनिया को अलविदा कह गए। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा सन 1993 में जारी घोषणा पत्र में मुंशा सिंह को स्वतंत्रता सैनानी घोषित करते हुए सभी सहूलियतें प्रदान करने को कह दिया गया था, मगर सहूलियतें पाने की लड़ाई लड़ते-लड़ते सन 2014 में मुंशा सिंह ने प्राण त्याग दिए। अब उनके  मरणोपरांत परिवार को तो क्या सहूलियतें मिलनी थी, उन्हें उचित सम्मान तक नहीं मिल रहा है।

स्वतंत्रता दिवस समारोह में निमंत्रण न मिलने तक का है शिकवा

स्वतंत्रता सैनानी मुंशा सिंह के बेटे बलदेव सिंह ने अमर उजाला’ को बताया कि उनके पिता मुंशा सिंह ने देश की आजादी के लिए कई महीने लाहौर में जेल काटी। मगर उनके इस देश प्रेम का सिला यह मिला कि वे सहूलियतें पाने के लिए ताउम्र सरकारों के अधिकारियों के दरवाजे खटखटा-खटखटा कर 2014 में दम तोड़ गए।
बलदेव सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार ने सन 1993 में उन्हें स्वतंत्रता सैनानी घोषित करते हुए सहूलियतें देने को पत्र जारी कर दिया था। मगर जीवन भर वह सहूलियतों को तरसते रहे। जबकि उनके साथ जेल काटने वाले अन्य साथियों को बस मुफ्त सफर, मेडिकल भत्ता, पेंशन समेत अन्य सहूलियतें मिल रही हैं। मगर उन्हें लिस्ट में नाम न होने की बात कह सहूलियतों से वंचित कर दिया गया। उनके साथ जेल काटने वाले साथियों ने पूर्व मुख्यमंत्री बादल, डिप्टी कमिश्नरों व अन्य अधिकारियों के समक्ष मुंशा सिंह के साथ जेल काटने की बात भी बताई, मगर कोई सुनवाई नहीं हो पाई। कई बार केंद्र व पंजाब सरकारों को भी पत्र लिखे, मगर कोई जवाब न आया।

मुंशा सिंह के पौत्र केवल सिंह ने अपने दादा की कुर्बानियों पर गर्व करते हुए कहा कि उन्हें हर स्वतंत्रता दिवस मौके अपने दादा की कुर्बानियों की याद आती है और उनकी कुर्बानियों को याद कर फख्र महसूस होता है, मगर यह सोचकर अफसोस भी होता है कि उन्हें जो उचित सम्मान मिलना चाहिए था वह न मिल सका। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि गम तो इस बात का है कि हलके  के कई ऐसे परिवार के सदस्य आज उच्च पदों पर तैनात हैं, जिनके परिवारों के पीछे देश के लिए कुर्बानियां देने का इतिहास भी नहीं है। मगर उनके परिवार आज भी सहूलियतों, सम्मान व नौकरी के  लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। परिवार को उचित सम्मान मिलना तो दूर, स्वतंत्रता दिवस मौके होने वाले समारोह का निमंत्रण तक उन्हें नहीं दिया जाता।

 

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