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धरती से गायब हुआ Okjokull Glaciar, अब दूसरों पर भी खतरा

जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी पश्चिमी यूरोप के द्वीप आइसलैंड के पश्चिम में स्थित ग्लेशियर ‘ओकजोकुल’ ने अपनी पहचान खो दी है। जी हां ‘ओकजोकुल’ अब ग्लेशियर नहीं रहा, उसने अपना यह दर्जा खो दिया है। यहां एक समारोह में कांस्य पट्टिका का अनावरण किया जाएगा, जिसमें इसकी वर्तमान स्थिति बयां करने के साथ ही बाकी ग्लेशियर के भविष्य को लेकर भी आगाह किया गया जाएगा।

ओक’ ग्लेशियर
इस पर लिखा होगा, ‘ओक’ अपना ग्लेशियर का दर्जा खोने वाला आइसलैंड का पहला ग्लेशियर है। आने वाले 200 वर्ष में हमारे सभी ग्लेशियरों का यही हाल होने की आशंका है। अब समय आ गया है कि हम देखें की क्या हो रहा है और क्या किए जाने की जरूरत है। ’ इसके साथ ही इस पट्टिका में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर भी लिखा होगा। जोकि यहां पर 415 पीपीएम है।

पहचान खोने वाला यह पहला ग्लेशियर
आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकोब्स्दोतिर, पर्यावरण मंत्री गुडमुंडुर इनगी गुडब्रांडसन और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त मेरी रॉबिंसन भी इस समारोह में शामिल होंगे। राइस यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर सायमीनी हावे ने जुलाई में ही इसकी स्थिति को लेकर आगाह किया था। उन्होंने कहा था कि विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण अपनी पहचान खोने वाला यह पहला ग्लेशियर होगा।

हर साल पिघल रही करोड़ों टन बर्फ
आइसलैंड द्वीप में हर साल करीब 1100 करोड़ टन बर्फ पिघल जाती है। शोधकर्ताओं ने चिंता जताई है कि वर्ष 2,200 तक यहां के 400 से अधिक ग्लेशियर गायब हो जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत जल्द रोकना होगा। उन्होंने बताया कि स्थिति इतनी विकट है कि यदि हम अभी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य कर दें फिर भी सामान्य स्थिति आने में एक से दो सदी लग जाएंगी।

ओकजोकुल’ में गायब हुई बर्फ
शोधकर्ताओं ने बताया कि आइसलैंड के ग्लेशियर ‘ओकजोकुल’ में जलवायु परिवर्तन की वजह से बर्फ बहुत से तेजी से पिघली है। 1890 में यहां 16 वर्ग किलोमीटर तक बर्फ फैली थी, लेकिन 2012 तक आते-आते यहां मात्र 0.7 वर्ग किलोमीटर में ही बर्फ बची। आइसलैंड के मौसम विज्ञान कार्यालय की ओर से कहा गया कि 2014 में यह ग्लेशियर पूरी से मृत हो चुका था। ग्लेशियर की स्थिति के लिए यह जरूरी होता है कि यहां बर्फ की मोटाई 40 से 50 मीटर (130 से 165 फीट) तक होनी चाहिए। यह इतना मोटा होना चाहिए कि अपने आप खिसक सके।

2100 तक आधे ग्लेशियर हो जाएंगे खत्म
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही होता रहा तो दुनिया की लगभग आधी धरोहरें वर्ष 2100 तक अपने ग्लेशियरों को खो देंगी।

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