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नकदी प्रवाह के लिए रिजर्व बैंक ने बाजारों से 10 हज़ार करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे

मुम्बई : बैंकिंग प्रणाली में नकदी के प्रवाह बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने गुरुवार को बाजारों से 10 हज़ार करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय बैंक आगे भी बॉन्डों की पुनर्खरीद जारी रख सकता है। गुरुवार को खरीदे गए बॉन्डों का कारोबार बहुत ज्यादा नहीं है और इनमें से अधिकांश बैंकों के पास थे। पुनर्खरीद से इन बैंकों के पास नकदी आएगी। आरबीआई की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) व्यवस्था में शामिल 11 बैंकों की हालत खस्ता है। इन बैंकों की सामान्य कारोबारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा है और उन्हें नकदी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अगर आरबीआई ने उन्हें पर्याप्त नकदी समर्थन नहीं दिया तो उनके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है। वे अपने बॉन्डों पर डिफॉल्ट कर सकते हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक ने गुरुवार को अतिरिक्त टियर-1 (एटी1) बॉन्ड वापस ले लिए और वह ऐसा करने वाला पीसीए में शामिल अंतिम बैंक है। इन बॉन्डोंं को जारी करने वाले के पास वित्तीय संकट की स्थिति में ब्याज के भुगतान में देरी करने और यहां तक कि इससे इनकार करने का भी विकल्प था।
विशेषज्ञों ने कहा कि बॉन्ड वापस लेने की अनुमति देकर सरकार और आरबीआई ने इन बैंकों को कुछ हद तक राहत दी है। सरकार के पास ऐसा करने के अपने कारण हैं। बॉन्डों की प्रकृति को देखते हुए ब्याज के भुगतान में देरी तकनीकी रूप से डिफॉल्ट नहीं है लेकिन बाजार इसे डिफॉल्ट मानेगा। चूंकि इन बैंकों में सरकार की गारंटी अंतर्निहित है, इसलिए इस तरह की घटनाओं से खुद सॉवरेन की साख प्रभावित होती है। लेकिन बैंकों के तय आय वाली अन्य प्रतिभूतियों के पास देर से भुगतान या वापसी की आजादी नहीं है। बाजार इन प्रतिभूतियों को लेकर सतर्क हो गया है। बाजार बैंकों के डिफॉल्ट होने की उम्मीद नहीं कर रहा है लेकिन फिर भी इसमें जोखिम तो है। कुछ मामलों में प्राथमिक बाजार में सौदे नहीं हो रहे हैं क्योंकि निवेशक अंकित मूल्य पर भारी छूट मांग रहे हैं जबकि बैंक सरकारी गारंटी का हवाला देकर इससे इनकार कर रहे हैं। इस कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्डों को जारी नहीं किया जा रहा है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप लिमिटेड के ऋण पूंजी बाजार के प्रमुख शमीक रे ने कहा कि बैंकों के लिए प्राथमिक बाजार से पूंजी जुटाना मुश्किल हो रहा है। पीसीए में शामिल छोटे बैंकों की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ रही हैं क्योंकि उनकी रेटिंग कम होने से निवेशकों ने उनके बॉन्डों से किनारा करना शुरू कर दिया है। इनमें से कई बैंकों की रेटिंग अब एए- रह गई है जो न्यूनतम निवेश ग्रेड से भी कम है। हाल में कुछ ही टियर-2 बॉन्ड जारी होने के कारण बाजार में फ्लोटिंग स्टॉक कम है जिसके कारण सीमित कारोबार हो रहा है।

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