दस्तक-विशेषसाहित्य

नत-मस्तक हूँ अनत के आगे 

अनुराग शर्मा
सत्तर के दशक में अभिमन्यु अनत को पढ़ते और उनसे प्रभावित होते समय, उत्तर प्रदेश के एक साधारण शहर के एक निम्न-मध्यवर्गीय परिवार के मेरे जैसे साधारण बालक को सपने में भी यह आभास नहीं था कि मैं कभी उन जैसे व्यक्तित्व से साक्षात हो सकूंगा। न ही कभी यह सोचा था कि उनके लेखन में वर्णित मॉरिशस के रोचक द्वीप पर कभी जाना हो सकेगा। छात्र जीवन में साहित्य से लगाव था लेकिन नौकरी लगने के बाद पढ़ना-लिखना भी अपने काम-काज से सम्बंधित जानकारियों तक ही सिमटने लगा। भारत में होते हुए भी साहित्य के नाम पर हर महीने अपने बैंक की पत्रिका श्रेयस को पढ़ना ही बच रहा था। देश छूटा तो परिस्थितियाँ बिल्कुल ही बदल गईं। नये धरातल में एक नया संघर्ष तो आरम्भ हुआ ही, भारतीय संस्कृति अगम्य तथा हिंदी साहित्य अलभ्य हो गया, लेकिन इन दोनों को ही पाने की उत्कंठा तेज होने लगी। समय बीतने के साथ जीवन में तनिक ठहराव आया और तब लिखना-पढ़ना फिर से आरम्भ हुआ। दूर देश में रहते हुए हिंदी साहित्य से सम्पर्क का एक ही साधन सुलभ था – इंटरनेट, सो उसी पर जम गये।
लिखने पढ़ने का सूत्र फिर से जुड़ने के बाद भी लम्बे समय तक अनत जी से सम्पर्क का कोई बहाना तब नहीं बन सका था। 2016 में सेतु पत्रिका आरम्भ करते समय उनका आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से सम्पर्क सूत्र ढूंढे। फोन मिलाया तो पता लगा कि तबीयत अच्छी न होने के कारण वे फोन पर नहीं आ सकते हैं लेकिन उनकी शुभकामनाएँ हमारे साथ हैं। बात न हो पाने के कारण कुछ निराशा हुई लेकिन दूसरों को तकलीफ न देने की प्रवृत्ति के कारण उनसे सम्वाद के बारे कोई आग्रह किये बिना प्रणाम पहुँचाने का अनुरोध करके फोन रख दिया। निजता के आदर के कारण उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता होते हुए भी बीमारी की प्रकृति के बारे में भी कोई प्रश्न नहीं किया।
2017 में जब मुझे मॉरिशस के प्रतिष्ठित महात्मा गांधी संस्थान द्वारा अप्रवासी भारतीयों के लिये नव-स्थापित ‘साहित्य सृजन सम्मान’ का प्रथम विजेता बनने का गौरवशाली अवसर मिला उस समय काम के बोझ से दबा होने के बावजूद मॉरिशस जाकर समारोह में सम्मिलित होने की बात सोचने के पीछे मॉरिशस दर्शन के अतिरिक्त मन में कहीं दबी हुई एक इच्छा अनत जी से भेंट की भी थी।
हिंदी के आप्रवासी साहित्यकारों के सम्मान के उद्देश्य से स्थापित इस नई पहल की घोषणा सन् 2015 में भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में मॉरिशस की शिक्षामंत्री माननीय लीलादेवी दुखन-लछमन ने की थी। दुर्भाग्य से भारतीय मीडिया ने हिंदी के इस अंतरराष्ट्रीय सम्मान को अपेक्षित कवरेज नहीं दिया लेकिन वह एक अलग ही विषय है।
पिट्सबर्ग से चलकर पेरिस होता हुआ, 21 अगस्त 2017 की सुबह मैं मॉरिशस के अंतरराष्ट्रीय वायुपत्तन पर था। हवाई अड्डे पर अंग्रेज़ी के साथ-साथ लगे हिंदी के संदेश और यूरोपीय तथा अफ्रीकी मूल के यात्रियों के बीच भारतीय वेशभूषा में अपने जैसे ही मुखड़ों को देखकर बिल्कुल ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे मैं भारत वापस पहुँच गया होऊं।
आव्रजन प्रक्रिया पूरी करके बाहर आते ही महात्मा गांधी संस्थान के सृजनात्मक लेखन तथा प्रकाशन विभाग की अध्यक्ष तथा अभिमन्यु अनत द्वारा आरम्भ की गई दो पत्रिकाओं ‘वसंत’ तथा ‘रिमझिम’ की मुख्य सम्पादक डॉ. राजरानी गोबिन के दर्शन हुए जो वहाँ मेरी यजमान थीं। राजरानी जी हिंदी व अंग्रेज़ी के अतिरिक्त फ्रांसीसी, भोजपुरी और मॉरिशियन क्रीयोल भाषाओं पर पूर्ण अधिकार रखती हैं। उन्होंने वयस्कों के हिंदी शिक्षण के एक पाठ्यक्रम का प्रकाशन किया है। कुछ ही देर की बातचीत में पता लगा कि इस समय वे जिस पद पर हैं उस पर पहले अभिमन्यु अनत रह चुके हैं। यह भी पता लगा कि उन्होंने न केवल अनत जी के साक्षात्कार किये हैं बल्कि उनकी कई रचनाओं के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ‘रोकदोकान्हा’ का फ्रांसीसी मेंअनुवाद भी समाहित है।
उनसे बात करते हुये हिन्दी साहित्य के सम्राट अभिमन्यु जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। 9 अगस्त 1937 को मॉरिशस के उत्तर प्रान्त स्थित त्रियोले ग्राम के एक साधारण परिवार में जन्मे अनत जी ने लगभग18 वर्ष तक हिन्दी का अध्यापन किया है। उनकी साहित्यिक कृतियों ने मॉरिशस को विश्व के हिन्दी साहित्य मंच में एक प्रमुख स्थान दिलाया है।
जब मैंने राजरानी जी से पूछा कि क्या अनत जी ‘साहित्य सृजन सम्मान’ समारोह में आमंत्रित हैं तो एक बार फिर उनकी बीमारी का जिक्र आया जिसके कारण वे किसी भी सार्वजनिक समारोह में नहीं जाते हैं और न ही किसी अनजान व्यक्ति से मिलते हैं। उनके इस अलगाव के बारे में जानकर मुझे दु:ख हुआ। उससे भी बड़ा दु:ख इस बात पर हुआ कि व्यक्तिगत रूप से मेरे लिये अति महत्वपूर्ण इस सम्मान समारोह में मॉरिशस आकर भी उनसे मिले बिना वापस लौट जाना मेरे लिये एक अपराध से कम नहीं होता।
मॉरिशस का मौसम सुहावना था। फ्लिक-एन-फ्लैक के समुद्रतट पर स्थित रिसॉर्ट पर निवास काम-काज से पूर्ण छुट्टी का अहसास दिला रहा था। मेरे मॉरिशस प्रवास के पहले दिन महात्मा गांधी संस्थान तथा रवींद्रनाथ ठाकुर संस्थान की फैकल्टी तथा प्रबंधन समिति के अधिकारियों से भेंट हुई। राजरानी जी के साथ-साथ श्रीतीजी और मित्र विनय गुदारी ने आतिथ्य की जिम्मेदारी ली। दो दिन इस सुंदर द्वीप की यात्रा में बीते। महात्मा गांधी संस्थान तथा रवींद्रनाथ ठाकुर संस्थान के भ्रमण के साथ-साथ भारतीय उच्चायोग,13वें ज्योतिर्लिंग मॉरिशसेश्वर, गंगा तालाब तथा निकटवर्ती क्षेत्रों की यात्रा में बीता। आप्रवासी घाट, सतरंगीभूमि, निकटवर्ती जल-प्रपात तथा हिरण-कूद ज्वालामुखी झील आदि भी देखे। 23 अगस्त 2017 को मंगलवार के दिन मॉरिशस प्रसारण निगम के लिये टीवी पर साक्षात्कार देने के बाद जब विनय की कार में हम उत्तर प्रांत का भ्रमण कर रहे थे तब मोका पर्वत शृंखला के ऊपर शांत बैठकर अभिमन्यु अनत के साहित्य का साक्षी मुड़िया पहाड़ (ढ्री३ी१ इङ्म३ँ) लगातार हमें देख रहा था। विनय ने शायद मेरे मन की प्रबल इच्छा को भाँप लिया था, इसीलिये पूछा, ‘अनत जी से मिलने चलें?’
मेरे मुँह से स्वगत ही निकला, ‘किसी हिंदी साहित्य-प्रेमी के लिए मॉरीशस आकर अभिमन्यु अनत जी से मिल पाना तीर्थ-यात्रा से कम नहीं है …’ विनय ने तुरंत अनत जी के घर फोन मिलाया और उनकी पत्नी से बात की। कार के ब्लूटूथ पर मैं विनय को भोजपुरी में अपनी ‘सरिता चाची’ से बात करते हुये मंत्रमुग्ध सा सुन रहा था। सरिता चाची ने पूछा कि क्या अनत जी को फॉर्मल ड्रेस पहनने को कहूँ तो विनय ने किसी भी तकल्लुफ के लिये मना करते हुए बताया कि यह तो एक मित्रवत घरेलू मुलाकात है।
अनत जी के घर की ओर अग्रसर मित्र मुझे अनत जी और उनके त्रियोले ग्राम के साहित्यिक योगदान के बारे में बताते रहे। स्थानीय रेडियो ऑन था जिसमें चल रहे भारतीय हिंदी गीतों के फरमाइशी कार्यक्रम के जनप्रिय आयोजक अरविंद बिसेसर ने जब कार्यक्रम के बीच में ही मॉरिशस में मेरे स्वागत की घोषणा की तो मॉरिशस वासियों के आतिथ्य और प्रेम से मन भीग गया। हिंदी में बातचीत और भारतीय संगीत के बीच ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मैं भारत से बाहर कहीं हूँ। कुछ ही देर में जब गाड़ी का प्रवेश अनत जी के बंगले में हुआ तो मॉरिशस के अन्य घरों के आंगन या उद्यान की तरह वहाँ भी मैंने हनुमान जी को स्थापित पाया।
मुझे उस आंगन में बिखरी हरियाली को देखते पाकर विनय ने बताया कि प्रकृति प्रेमी अनत जी एक अच्छे माली हैं और यदि मैं उनका स्वास्थ्य बिगड़ने से पहले के दिनों में आता तो शायद वे यहीं पौधों के बीच काम करते हुए मिलते। अभी तक मैं अनत जी से नहीं मिला था लेकिन उन्हें अपना समरुचि जानकर अच्छा लगा। मेरे अतिथि भी अक्सर मुझे बाहर बाग में या घर में किसी बॉनसाई पर काम करते हुए पाते हैं।
मॉरिशस के एक घर के द्वार पर हिंदी का नामपट्ट देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। पीतल की पट्टी पर अंग्रेज़ी के साथ खुदे सुंदर देवनागरी अक्षरों में लिखा घर का नाम ‘संवादिता’ उस घर के निवासी महान व्यक्तित्व का हिंदी से गहन सम्बंध उजागर कर रहा था। सुंदर, सुरुचि सम्पन्न घर के भीतर पहुँचते ही श्रीमती अनत, उनके पुत्र और पौत्र ने हमारा स्वागत किया। पुस्तकें, अनत जी को मिले कुछ सम्मान पत्र और उनकी बनाई हुई पेंटिंग्स बैठक में हर ओर नजर आ रही थीं।
हम लोग बैठे ही थे कि दूसरे कमरे से पतले-दुबले, रजतकेशी अनत जी ने हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए प्रवेश किया। जैसे समय ठहर गया हो। हिंदी की इस शताब्दी के महानतम आप्रवासी साहित्यकारों में से एक, मेरे सामने प्रत्यक्ष थे। अनेक संघर्षों के सामने अनत खड़े इतने बड़े लेखक की सरलता और विनम्रता अनुकरणीय है।
पहली मुलाकात में अनत जी को मेरे चेहरे में शायद कोई पुराना छात्र या साथी दिखाई दिया, इसलिये उन्होंने मुझसे बहुत उल्लास के साथ बो बासेंझील (इीं४ इं२२्रल्ल) का जिक्र किया और झील की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी चाही। इसी शृंखला में जब उन्होंने आगे यह कहा, ‘आपके घर तो हम खूब आते थे … रुकते भी थे …’ तब यह सोचकर मुझे दु:ख हुआ कि वे मुझे जो भी समझ रहे हैं, मैं वह नहीं था। मेरे कुछ कहने से पहले विनय ने उन्हें मेरा परिचय देकर बताया कि आप्रवासी साहित्य सृजन सम्मान के लिये अमेरिका से आने वाला अतिथि मैं ही था। मेरे इस नये परिचय के बाद तो बातों का सिलसिला दो घंटे तक चलता रहा।
दो शताब्दी पहले पटना से मॉरिशस आये अपने पूर्वजों के संघर्ष की अपने माता-पिता और मामा से सुनी स्मृतियों ने अनत जी के हृदय को आंदोलित किया था। कठिन शारीरिक श्रम से उत्पन्न थकान के कारण एक क्षण के लिये अपनी पीठ सीधी करने मात्र के लिये गोरे स्वामी के कोड़े खाने की, संघर्ष की कहानियाँ तो सुनीं ही, 12 वर्ष की अल्पायु में गन्ने के खेत में अन्य बाल श्रमिकों के साथ काम करके हुये, उनके दुखद मार्मिक अनुभवों को ‘लाल पसीना’ में अंकित करने वाले अनत जी अपने साहित्य के द्वारा भूत और वर्तमान को एक साथ भविष्य की आशा के सामने रख सके हैं। आर्थिक कारणों से उनकी शिक्षा बाधित होने के बाद भी अपने सृजन और रचनात्मकता के चलते उन्होंने बहुत नाम कमाया। अब तक उनके 25 उपन्यास, अनेक कविताएँ और दो सौ से अधिक कथाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके नाटक कई भाषाओं में अनूदित और देश-विदेश में मंचित हुए हैं।
चाय पीते हुए हम सबने अनेक विषयों पर बातें कीं। अपने पोते से बीच-बीच में क्रियोली में बात करते अनत जी हम लोगों से हिंदी में ही सम्वादरत रहे। उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैंने भी यह ध्यान रखा कि यह कोई साहित्यिक साक्षात्कार न होकर एक व्यक्तिगत भेंट ही रहे, सो हम लोगों की वार्ता व्यक्तिगत और सामान्य विषयों तक ही सीमित रही। वार्ता के बीच ही वे मुझे एक अन्य कक्ष में ले गये जो अनेक पुस्तकों के साथ-साथ उन्हें मिले विभिन्न पुरस्कारों तथा सम्मान-फलकों से भरा हुआ था।
नाटककार, निर्देशक और सम्पादक अभिमन्यु जी ने अनेक भूमिकाएँ निभाई हैं। उपन्यासकार से पहले अनत जी कवि हैं और कवि से पहले एक कथाकार। लेकिन कम लोगों को पता है कि कथाकार से पहले, अनत जी एक चित्रकार हैं। उनके बनाये एक से एक सुंदर चित्र घर में हर जगह लगे हुए थे।
ऐसे अनत लेकिन अतिशय सरल व्यक्ति का सामीप्य ही मुझे विनत करने के लिये काफी था। रोचक वार्तालाप के बीच कुछ घंटों का समय कैसे बीता पता ही न चला। एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि उन सबसे पहली बार मिला था। अधिक देर तक रुकने का मन था। सभी ने भोजन करके जाने का आग्रह किया लेकिन भारतीय उच्चायोग और महात्मा गांधी संस्थान के प्रतिनिधियों के साथ रात का डिनर पहले से तय था सो भारी मन से सबसे विदा लेते हुए जब मैंने अनत जी से पूछा, ‘मुझसे मिलने अमेरिका आयेंगे न?’ तो उनके शब्द थे, ‘अवश्य!’
ईश्वर उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु करे।

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