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नाग पंचमी: ऐसे शुरू हुई नागों की पूजा, इस धर्म के लोग इन्हें मानते हैं शैतान

नई दिल्ली: पर्वों की प्रतीकात्मकता जब अपना आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व खोकर सिर्फ कर्मकांड में बदल जाती है तो महज रिवाज का रूप धारण कर लेती है। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन देश भर में मनाए जाने वाले नाग पंचमी के पर्व को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। सावन मास के शुक्‍ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाई जाती है। जो कि इस बार 15 अगस्‍त को है।नाग पंचमी: ऐसे शुरू हुई नागों की पूजा, इस धर्म के लोग इन्हें मानते हैं शैतान

सर्प को शैतान के रूप में देखते हैं यह धर्म
भले ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म में सर्प को शैतान के रूप में देखा जाता रहा हो, लेकिन सनातन धर्म में सर्प को देवताओं व मनुष्यों के लिए सहयोगी के रूप में देखा जाता व प्रेम और अध्यात्म के प्रतीक के रूप में भी पूजा जाता रहा है। आदम और हव्वा को स्वर्ग से निकालने के लिए सर्प ने ही शैतान का रूप धारण किया था और हव्वा को सेब खाने के लिए उकसाया किया था। इसके बाद ईश्वरीय शाप से आदम और हव्वा को स्वर्ग से निकाल दिया गया था।

ऐसे शुरू हुई नागों की पूजा
सनातन धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्प विशेषकर नाग को प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं। शिव के गले में नाग है। समुद्र मंथन के लिए नाग वासुकी को रस्सी बना कर इस्तेमाल किया गया था। आदिम परंपराओं में सर्पों की माता के रूप में मनसा देवी की पूजा प्रचलित रही है। सामाजिक रूप से इसी वजह से नागों या सर्पों की पूजा शुरू हुई।

यह है आध्यात्मिक महत्व
सनातन धर्म की परंपराओं में राजयोग अर्थात कुंडलिनी जागरण के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने की बात कही गई है। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य के शरीर में ऊर्जा का प्रवाह 72 हजार नाड़ियों द्वारा होता है। इनमें इडा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन नाड़ियां सबसे महत्वपूर्ण हैं। इडा और पिंगला नाड़ी हमारी रीढ़ की हड्डियों के बाएं और दाएं स्थित होती हैं। वहीं सुषुम्ना नाड़ी रीढ़ की हड्डी के बीच से होकर ऊपर हमारे मष्तिष्क की तरफ जाती है। इडा और पिंगला से हो रहे ऊर्जा प्रवाह को रोककर उसके मार्ग को सुषुम्ना नाड़ी से होकर गुजारने की क्रिया ही कुंडलिनी जागरण कहलाती है। यह तभी संभव है जब हमारे मूलाधार चक्र को जाग्रत किया जाता है। मूलाधार चक्र को चेतना रूपी सर्प माना गया है, जो साढ़े तीन कुंडली मारकर सुप्त अवस्था में बैठा हुआ है।

पांच चक्रों को भेदना है जरूरी
जब चेतना रूपी सर्प मूलाधार चक्र के अलावा पांच अन्य चक्रों स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्र को भेदता है, तब हमारी मानस शक्ति अर्थात मनसा देवी हमारे सहस्रार चक्र को भेदने में सहायक होती है। इसके बाद ही कुंडलिनी के सर्प को अमृत पान मिलता है। सहस्रार चक्र अर्थात ब्रह्म ज्ञान का चक्र तभी जागृत हो सकता है जब हमारी मानस शक्ति जाग्रत हो। यही वह आध्यात्मिकता है जो प्रतीक रूप में नाग पंचमी के दिन मनाई जाती रही है।

यह है नाग पंचमी का अर्थ और प्रतीक
नाग सुप्त चेतना का प्रतीक है। मानस शक्ति मनसा देवी की प्रतीक है और पंचमी तिथि मूलाधार चक्र और सहस्रार चक्र को छोड़कर शेष पांच चक्रों का प्रतीक है। नाग को दूध पिलाना कुंडलिनी के नाग के द्वारा अमृत पान का प्रतीक है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी पंचम भाव को मंत्र और आध्यात्मिक जागरण का भाव माना गया है। इसलिए जब इस बार नाग पंचमी का पर्व मनाएं तो इसे अपने जागरण के पर्व में बदल दें।

 

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