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नोटबंदी के बाद पुराने नोट जमा करने के 1.5 लाख मामलों की जांच

ऐसे समय में जब नोटबंदी की विफलता को लेकर मोदी सरकार राजनीतिक हमलों का सामना कर रही है, इनकम टैक्स विभाग नोटबंदी के बाद बड़ी रकम जमा करने के 1.5 लाख मामलों की जांच कर रहा है. ये ऐसे मामले हैं जिनमें बड़ी संख्या में 500 और 1000 के पुराने नोट जमा किए गए और ये कहां से आए, यानी इस कमाई का स्रोत क्या है, यह स्पष्ट नहीं है. ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहले ऐसी किसी आमदनी की घोषणा नहीं की थी. दिलचस्प यह है कि इस मामले में साल 2017-18 से 2018-19 के दौरान पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात के लोग सबसे आगे हैं.

नोटबंदी के बाद पुराने नोट जमा करने के 1.5 लाख मामलों की जांचआयकर विभाग ने साल 2017-18 के दौरान बैंकों में बड़ी रकम जमा करने के 20,088 मामलों की जांच शुरू की है. ये मामले नोटबंदी के दौरान (8 नवंबर 2016 से 31 दिसंबर 2016) बड़ी रकम जमा करने के हैं, जब 500 और 1000 के पुराने नोट अवैध घो‍षित करने के बाद बैंक में जमा किए जा रहे थे. साल 2017-18 से 2018-19 के दौरान पुराने नोट जमा करने संबंधी सबसे ज्यादा मामले जांच के लिए गुजरात से आए हैं.

साल 2018-19 के दौरान आयकर विभाग के पास जांच के लिए ऐसे 1,34,574 मामले चुने गए. साल 2017-18 के दौरान आयकर इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 142 (1) के तहत 2,99,937 जमाकर्ताओं को नोटिस भेजा गया, जिन्होंने नोटबंदी के दौरान बड़ी रकम जमा की थी, लेकिन इनकम टैक्स रिटर्न नहीं दाखिल किया.

गौरतलब है कि आयकर विभाग को यह आशंका पहले से थी कि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद काला धन रखने वाले लोग बड़ी मात्रा में पुराने नोट बैंक में जमा करने की कोशिश करेंगे, इसलिए विभाग ने इस पर अंकुश के लिए तमाम कदम उठाए थे. सबसे पहले यह नियम आया कि 9 नवंबर से 30 दिसंबर, 2016 के बीच 2.5 लाख रुपये से ज्यादा जमा के लिए PAN अनिवार्य होगा. लेकिन लोगों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया था और 50 हजार रुपये से कम के टुकड़े-टुकड़े में जमा करते रहे. इसके बाद एनुआल इनफॉर्मेशन रिटर्न रूल (AIR) में बदलाव किए गए. बैंकों और पोस्ट ऑफिस के लिए यह अनिवार्य बनाया गया कि 9 नवंबर से 30 दिसंबर, 2016 के बीच बचत खाता में 2.5 लाख से ज्यादा नकद जमा और चालू खाते में 12.5 से ज्यादा नकद जमा के लिए AIR हो यानी आयकर विभाग को इसक जानकारी दी जाए. इन सबकी वजह से ऐसे सभी बड़ी जमाओं का पता लग गया जिनके आय का स्रोत स्पष्ट नहीं था.

संसद में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने इस बारे में आंकड़ा दिया था कि किस राज्य में ऐसे जांच वाले कितने मामले हैं. उन्होंने बताया था कि 2018-19 के दौरान इस मामले में सबसे आगे गुजरात था. इसके बाद कर्नाटक, गोवा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हैं. साल 2017-18 के दौरान तमिलनाडु सबसे आगे था, जिसके बाद गुजरात का स्थान था.

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