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नोटबंदी से इन 10 फायदों की थी उम्मीद, लेकिन हो गया इसका उल्टा, जनता हुई परेशान

देश में नोटबंदी लागू हुए 1 साल 9 महीने का समय बीत चुका है यानी आर्थिक वर्ष के मुताबिक 7 तिमाहियां. इन सात तिमाहियों के दौरान केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के 8 नवंबर 2016 को लिए गए नोटबंदी के फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई. जहां केन्द्र सरकार अपने दावे कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा फायदा मिलने वाला है पर डटी रही, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलीजुली प्रतिक्रिया के साथ कुछ संस्थाओं ने तीखी आलोचना भी की. इन सात तिमाहियों के दौरान नोटबंदी के वास्तविक आंकड़े केन्द्रीय रिजर्व बैंक के एकत्र होते रहे और रिजर्व बैंक विमुद्रित की गई करेंसी की गिनती करती रही.

अब रिजर्व बैंक ने नोटंबदी से जुड़े अंतिम आंकड़े जारी करते हुए बताया है कि विमुद्रित मुद्रा में से 10,700 करोड़ रुपये वापस बैंकिंग प्रणाली में नहीं लौटे हैं. इस धनराशि की जानकारी आरबीआई की सालाना रिपोर्ट के आधार पर, आठ नवंबर, 2016 को घोषित नोटबंदी से पूर्व चलन में रहे विमुद्रित नोटों की 15.42 लाख करोड़ रुपये की राशि में से वापस बैंकिंग प्रणाली में लौटी 15.31 लाख करोड़ रुपये की राशि को घटाने के बाद सामने आई है.

नोटबंदी से होना था यह फायदा

1. भ्रष्टाचार पर लगाम

देश में 500 और 1000 रुपये की प्रतिबंधित करेंसी कुल करेंसी की 85 फीसदी थी. यह दोनों करेंसी देश में भ्रष्टाचार की पोशक भी थी. नोटबंदी के फैसले के बाद से ही भ्रष्टाचार के लिए इस करेंसी का इस्तेमाल रुक गया है. पुरानी करेंसी की जगह जारी हुई नई करेंसी को सरकार धीरे-धीरे और सभी सुरक्षा मापदड़ों के सहारे बाजार में संचालित किया जिससे दोबारा अर्थव्यवस्था में कालाधन एकत्र न होने पाए.

2. कैशलेस इकोनॉमी

कैश इकोनॉमी बनाने के लिए जरूरी था कि देश में ज्यादा से ज्यादा ट्रांजैक्शन डिजिटल माध्यमों से किया जाए. इससे करेंसी पर देश की निर्भरता कम होगी और रिजर्व बैंक और अन्य बैकों के साथ-साथ केन्द्र सरकार को करेंसी संचालन में कम खर्च करना पड़ेगा. कैशलेस इकोनॉमी का फायदा सरकार के रेवेन्यू में इजाफे के साथ-साथ आम आदमी को भी होगा क्योंकि उसका पैसा डिजिटल आदान-प्रदान में ज्यादा सुरक्षित रहेगा.

3. नकली करेंसी पर लगाम

देश में सीमापार से नकली करेंसी के प्रवाह की गंभीर समस्या थी. नकली करेंसी जिसके हाथ पहुंचती थी उसे उतने मूल्य का तुरंत नुकसान उठाना पड़ता था. वहीं सरकार को भी इसके रोकथाम के लिए बड़े नेटवर्क का सहारा लेना पड़ता था. करेंसी का कम इस्तेमाल (डिजिटल पेमेंट) और बड़े डिनॉमिनेशन की करेंसी से एक झटके में देश से नकली करेंसी साफ हो चुकी है. लिहाजा उम्मीद थी कि नई करेंसी के सुरक्षा मानक ज्यादा पुख्ता होने से अगले कई वर्षों तक अर्थव्यवस्था नकली करेंसी से सुरक्षित रहेगी.

4. रियल एस्टेट सेक्टर होगा पारदर्शी

नोटबंदी के बाद सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर में होना था. बीते कई दशकों से रियल एस्टेट सेक्टर कालेधन के निवेश का सबसे बड़ा जरिया था. इसके चलते कागजों पर प्रॉपर्टी की खरीद और वास्तविक खरीद में बड़ा अंतर होना आम बात थी. इससे जहां सरकार को स्टैंप ड्यूटी में बड़ा नुकसान होता था वहीं आम आदमी को ब्लैकमनी न होने के चलते मकान खरीदने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था.

5. खत्म होगा कालाधन

सरकार ने दावा किया था कि नोटबंदी के फैसले से कालेधन के खिलाफ सामाजिक बदलाव लाने के काम को आसानी से किया जा सकेगा. यह हकीकत है कि किसी भी अर्थव्यवस्था से कालाधन तब तक नहीं खत्म किया जा सकता जब तक सामाजिक स्तर पर इसका बहिष्कार न होने लगे. अभी तक कालेधन का निवेश प्रॉपर्टी और सोना-चांदी में किया जाता था जिससे इनकी कीमत वास्तविक कीमत से हमेशा अधिक बनी रहती थी. लिहाजा, नोटबंदी के बाद इन क्षेत्रों में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगने की उम्मीद थी.

6. बंद होगी समानांतर इकोनॉमी

कालेधन और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर देश में हमेशा से एक समानांतर इकोनॉमी चलती थी. देश में कोयला की खादान से लेकर सड़क किनारे चाय और सब्जी बेचने वाले इस समानांतर अर्थव्यवस्था में शामिल रहते थे. यहां ज्यादातर लोग देश की सकल घरेलू आय को नुकसान पहुंचाते हुए अपनी आर्थिक गतिविधियों को चलाते थे. लिहाजा, नोटबंदी से डिजिटल पेमेंट की ओर रुझान और नोटबंदी से खत्म हुए कालेधन कालेधन के साथ-साथ इस समानांतर इकोनॉमी को मुख्यधारा में जोड़ने में मदद मिलने की उम्मीद थी.

7. बढ़ेगा टैक्स बेस

देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा फायदा होगा कि बड़े से बड़े और छोटे से छोटे ट्रांजैक्शन बैंकों के पास दर्ज होंगे. इन ट्रांजैक्शन पर इनकम टैक्स विभाग की भी लगातार नजर रहेगी. जब देश में ब्लैक इकोनॉमी का आधार नहीं रहेगा तो जाहिर है ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स का भुगतान करने के बाद ही अपनी खरीद-फरोख्त को पूरा कर पाएंगे. लिहाजा, नोटबंदी से उम्मीद थी कि केन्द्र और राज्य सरकारों का रेवेन्यू तेजी से बढ़ेगा, उसका वित्तीय घाटा कम होगा और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए उसके पास पर्याप्त संसाधन रहेंगे.

8. फाइनेंशियल सेविंग में होगा इजाफा

नोटबंदी के पहले तक देश में लोग अपनी सेविंग को प्रॉपर्टी, सोना और ज्वैलरी में निवेश करते थे. जरूरत पड़ने पर लोग इसे ब्लैकमार्केट में बेचकर एक बार फिर करेंसी में बदल लेते थे. नोटबंदी से पहले तक देश के 50 फीसदी से अधिक परिवार अपनी सेविंग्स को इन्हीं तरीकों से बचाकर रखते थे. यहां निवेश हुआ अधिकांश पैसा संभावित ब्लैकमनी भी थी. लिहाजा उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट और सोना अपेक्षा के मुताबिक रिटर्न नहीं दें पाएंगे और आम आदमी इन माध्यमों में निवेश करने की जगह अपनी सेविंग्स को रखने के लिए एक बार फिर बैंकों का रुख करेंगे. उम्मीद थी कि लोग सेविंग बैंक, डिमांड ड्राफ्ट और म्यूचुअल फंड जैसे विकल्पों का अधिक सहारा लेंगे और यहां इन्हें सबसे सुरक्षित रिटर्न भी मिलेगा.

9. बढ़ेगी बैंकों की कमाई

नोटबंदी से कालेधन पर लगाम के साथ-साथ तेजी से बढ़ते डिजिटल पेमेंट से नोटबंदी के बाद बैंकों की कमाई में बड़ा इजाफा देखने की उम्मीद बंधी थी. माना जा रहा था कि इस इजाफे के सहारे बैंक अपना विस्तार करेंगे और ग्राहकों को लुभाने के लिए आसान और सस्ती बैंकिंग का रास्ता साफ करेंगे. इसके साथ ही यह भी उम्मीद लगाई गई कि नोटबंदी से बैंकों के पास एकत्रित हुई दौलत उन्हें उनका घाटा पाटने में भी मदद करेगी.

10 सस्ता होगा कर्ज

नोटबंदी के बाद से बैंको को रहे फायदे का सीधा असर देश में ब्याज दरों पर पड़ना तय है. उम्मीद थी कि वित्तीय जगत में पारदर्शिता के साथ-साथ बैंक अपना कारोबार फैलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने की कोशिश करेंगे. वहीं ग्राहकों को लुभाने के लिए वह कर्ज पर लगने वाले ब्याज दरों में बड़ी कटौती का ऐलान कर सकते हैं. इससे देश में घर खरीदने, कार या स्कूटर खरीदने अथवा कारोबार के लिए कर्ज सस्ते दरों में मिलना शुरू हो जाएंगे.

नोटबंदी से हो गए ये 5 नुकसान?

 1. लुढ़क गई जीडीपी

2. बढ़ गई बेरोजगारी

3. बढ़ गया बैंकों का कर्ज

4. नहीं बढ़ी सरकार की कमाई

5. घट गई आम आदमी की सेविंग

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