दस्तक-विशेष

परदे के पार

चचा-भतीजे के बीच खुली जंग
chacha bhatijaयूं तो चचा और भतीजा का रिश्ता अपने आप में बड़ा अनूठा होता है। भतीजे की जो इच्छायें बाप पूरी नहीं करता है उसे चुपके से उसका चचा पूरी कर देता है। यूपी की सियासत में भी एक चचा और भतीजे के किस्से आजकल आम हैं। लेकिन यहां भतीजा चचा से नाराज है तो चचा भतीजे से। दरअसल दोनों की ही अपनी कमजोरियां हैं। चचा को उम्मीद थी कि जब यूपी में सरकार बनाने की स्थिति आयेगी तो उन्हें ही मुख्यमंत्री के रूप में आगे किया जायेगा लेकिन पिता पर पुत्र मोह हावी हुआ और मुख्यमंत्री की दौड़ से चचा आउट हो गए। खैर मुख्यमंत्री के बाद वे नम्बर दो कहलाने लगे। सरकार के अब तक के कार्यकाल में कई मौके आये जब दोनों के बीच कुछ विषयों पर विवाद देखा गया लेकिन एक बाहुबली की पार्टी के विलय को लेकर भतीजे ने जिस तरह का रवैया अपनाया उससे चचा खासे आहत हो गए। नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच तल्खी खासी बढ़ गयी है। चचा-भतीजे के बीच चल रही अनबन के बीच सत्ता के गलियारों में चर्चाओं का बाजार भी गर्म है। हर कोई अपने-अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर इसका क्या परिणाम होगा यह बता रहा है।

दिल्ली में भी हो जनमत संग्रह
delhi me janmat sangrahब्रिटेन में जनमत संग्रह क्या हुआ, दिल्ली के मफलरमैन को एक नया आइडिया मिल गया। अब उन्होंने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए यहां भी जनमत संग्रह कराने का शिगूफा छोड़ा है। उनके इस फैसले की अब चौतरफा निन्दा हो रही है लेकिन उनका सुर नहीं बदला है। उनकी इस जिद पर भगवा पार्टी के एक नेता ने चुटकी ली कि अगर जनमत इस बात का हो कि दिल्ली की जनता ने कहीं उन्हें चुनकर कोई गलती तो नहीं कर दी। जब इसका फैसला आयेगा तो उन्हें खुद ही अहसास हो जायेगा कि वे कितने पानी में हैं। आन्दोलन करने और सरकार चलाने में बहुत अन्तर है। लेकिन मफलरमैन और उनकी टीम को इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्या कह रहा है। वे तो बस अपनी ही धुन में हैं और रह-रहकर देश के सबसे बड़े सेवक को ललकार रहे हैं।

ऐसा वृक्ष तो कोई न लगाये
rambrikshपिछले दिनों यूपी की एक धार्मिक नगरी में बड़ा ही गजब हुआ। यदुवंशी भगवान माधव की जन्मभूमि में एक सरकारी बाग पर एक सिरफिरे ने जो तांडव किया उससे तो कंस भी शरमा जाये। सरकार भी ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए धरती को हरा-भरा करने का हर जतन कर रही है। वहां भी खासी हरियाली की गयी थी। लेकिन इस धरती पर जो वृक्ष दो साल पहले रोपित किया गया वह तो बजाये आक्सीजन देने के उल्टे लोगों की आक्सीजन का हरण करने लगा। सरकारी खाद और पानी क्या मिला, वृक्ष दिनों दिन बड़ा और मजबूत होता गया, उसकी शाखायें भी बहुत हो गयीं। नतीजा यह हुआ कि उसे गुमान हो गया कि उसके आगे सब बौने हैं। वह देश के प्रथम नागरिक की ही नागरिकता को चुनौती देने लगा। जिला प्रशासन ने जब-जब इस वृक्ष की जड़ों में मठ्ठा डालने की कोशिश की तो उसे उच्च पदों पर बैठे लोगों ने रोक दिया। उसके बाद जो कुछ हुआ उससे दो अफसरों की शहादत देनी पड़ी। पर सवाल अब भी अनुत्तरित राम नामी इस वृक्ष को आखिर खाद पानी सरकार का कौन कद्दावर खद्दरधारी सुलभ करा रहा था।

स्वामी ही सिर्फ चर्चा में
swami hee charcha meइन दिनों चाहे देश की राजधानी हो या फिर यूपी की। चर्चा सिर्फ स्वामियों की हो रही है। दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालिये, दरअसल यह धार्मिक लोग नहीं हैं ये सभी विशुद्ध रूप से राजनीतिज्ञ हैं। दोनों ही बयान बहादुर हैं। एक स्वामी से केन्द्र सरकार हलकान है तो दूसरे से यूपी का एक बड़ा राजनैतिक दल। दिल्ली वाले स्वामी के निशाने पर कब कौन आ जाये कोई भरोसा नहीं। लेकिन जब कभी कोई उनके निशाने पर आ जाता है तो फिर वे उसके पीछे ही पड़ जाते हैं। देश के सबसे उम्रदराज राजनैतिक दल के आलाकमान को तो उन्होंने कोर्ट तक खींचने में भी कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी। उसके बाद उन्होंने देश की आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले बैंक के मुखिया की ओर रुख किया तो वे भी पनाह मांग गए। बाद में उन्होंने देश के अर्थ मंत्री से ही पंगा ले लिया। वहीं लखनऊ वाले स्वामी ने अपनी ही पुरानी पार्टी की मुखिया को चुनौती दे डाली। यहां तक कह गए कि वे उनकी राजनीति खत्म कर देंगे। हालांकि उनके ही समाज में उनकी कोई खास पूछ नहीं है। लेकिन कहने में क्या हर्ज है। फिलहाल यूपी के स्वामी पैदल हैं और राजनैतिक मंच की तलाश में हाथ-पांव मार रहे हैं।

बुरे फंसे सुशासन बाबू
buru fanseस्वच्छ और जवाबदेह प्रशासन, जंगलराज की मंगलराज ऐसे तमाम वादे करके फिर से सत्ता हासिल की थी सुशासन बाबू ने। लेकिन पिछले दिनों उनके राज्य के टॉपरों की जब पूरे देश में चर्चा हुई तो उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा। वहीं कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भी सुशासन बाबू फेल नजर आ रहे हैं। ऐसा लगता ही नहीं है कि वहीं पुराने वाले कुमार साहब हैं। पत्रकार, इंजीनियर, डाक्टर सभी हिंसा का शिकार हुए। रंगदारी से कोई भी अछूता नहीं है। हालत तो यह हो गयी है कि पुलिस के एक बड़े अधिकारी से भी बेखौफ बदमाशों ने रंगदारी मांग ली तो वहीं एक जिलाधिकारी को जान से मारने की धमकी मिली है। अब सुशासन बाबू विपक्ष के निशाने पर हैं। हर कोई उन्हें ही निशाने पर ले रहा है। उनके बचाव में उनके ही दल के लोग अन्य राज्यों में हो रही आपराधिक घटनाओं का हवाला दे रहे हैं। लेकिन दूसरों का उदाहरण देकर सुशासन बाबू बच नहीं सकते हैं। अभी तक विपक्षी उनके खिलाफ थे लेकिन अब जनता भी उनसे जवाब तलब करने लगी है। साफ है कि प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले सुशासन बाबू की मुख्यमंत्री की ही कुर्सी डोल रही है।

भगवा दल के वामपंथी सांसद
bhagawa dalभगवा पार्टी में यूं तो कई और दलों के लोग भी शामिल हो गये हैं लेकिन दो साल पहले एक वामपंथी सोच वाले नेता ने जब भगवा पार्टी की ओर रुख किया था तब लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ था। हालांकि वे अपनी वामपंथी सोच के कारण विधायक रह चुके हैं लेकिन भगवा रंग में रंगते ही वे सांसद बन गए। कई कार्यक्रमों में उन्हें अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया जाने लगा। पिछले दिनों ऐसे ही उन्हें एक सरकारी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था। वहां जब उन्हें सम्बोधन के लिए बुलाया गया तो वह यह भूल गए कि यह सरकारी कार्यक्रम है। शुरू हुए तो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे सरकारी कार्यक्रम में नहीं बल्कि किसी चुनावी सभा को सम्बोधित कर रहे हों। अपने भाषण में उन्होंने सूबाई सरकार की जमकर धज्जियां उड़ायीं। वहीं मंच पर एक केन्द्रीय मंत्री भी मौजूद थे। बोलते-बोलते जब उनकी आंखें उनसे मिलीं तो उन्हें यह अहसास हुआ कि वे कुछ ज्यादा ही बोल गए हैं। फिर किसी तरह उन्होंने अपने आप को सहेजा और अपनी वाणी को विराम दिया।

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