अन्तर्राष्ट्रीय

पाकिस्तान पर रहेगी बरकरार सख्ती, फिलहाल नहीं होगी कोई बातचीत

भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में भले ही तल्खी थोड़ा कम हुई हो, लेकिन आतंकवाद अभी भी एक मुख्या मुद्दा बना हुआ है।

नई दिल्ली। एक सामान्य नजरिये से देखा जाए तो ऐसा लग रहा है कि भारत और पाकिस्तान के रूख में हाल-फिलहाल के दिनों कुछ नरमी आई है। भारत के कुछ फैसलों, जिनमें सार्क के नए महासचिव का समर्थन, पाकिस्तान के मछुआरों की रिहाई और लाहौर में इस माह के आखिर में होने वाली सिंधु आयोग की बैठक में सिंधु आयुक्त को भेजने का फैसला शामिल है, उससे ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों की तल्खी कुछ कम हो रही है। हालांकि दोनों देशों के बीच रिश्तों की तल्खी में आतंकवाद अभी भी मुख्य मुद्दा बना रहेगा।

एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, पाकिस्तान के साथ बातचीत करने से पहले भारत पाक समर्थित आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखेगा और इसी के आधार पर आगे की रणनीति तय करेगा। सीमावर्ती इलाकों में बर्फ पिघलने के साथ-साथ भारत पाकिस्तान के आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ और घाटी में अशांति फैलाने के उसके प्रयासों पर नजरें बनाए रहेगा।

वर्ष 2016 के दौरान घाटी में कई हिंसक प्रदर्शन हुए और इन सबके पीछे पाकिस्तान का ही हाथ रहा था। पिछले साल ही भारत में पठानकोट, उड़ी और नागरोटा में आतंकवादी हमले हुए थे और इन आतंकी हमलों में भी का ही हाथ रहा था। हालांकि, भारत पूरी तरह खामोशी अख्तियार नहीं करना चाहता तांकि दोनों देशों के बीच तल्खी और ज्यादा नहीं बढ़े। इसीलिए बैठकों और कैदियों की अदला-बदली सामान्य रूप से चलते रहेंगे। इससे बिना किसी ठोस बातचीत के भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट में कमी आएगी।

भारत सिंधु जल समझौते पर विश्व बैंक के रूख का विरोध कर चुका है। भारत का कहना है कि विश्व बैंक भारत का पक्ष ले रहा है और इस कारण भारत ने जल समझौते पर मध्यस्थता की प्रक्रिया में भाग लेने से ही मना कर दिया था। उसके बाद विश्व बैंक ने इस मामले का हल निकालने के लिए एक निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने की भारत की मांग मानी थी। इसके बाद भारत ने सिंधु आयोग के आयुक्तों की बैठक का लाहौर में आयोजन करने पर भी विरोध जताया था। मीटिंग लाहौर में रखने पर भी आपत्ति जताई थी।

आपको बता दें कि उड़ी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने का फैसला किया था और पीएम मोदी ने तब कहा था कि ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।’ शनिवार को ही भारत ने  पूर्वी नदियों पर एक बांध का निर्माण कार्य दोबारा से शुरू करने की घोषणा की है जो बीते एक दशक से लंबित पड़ा था।

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