ज्ञान भंडार

पूरा यूपी सूखे से बदहाल

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संजय सक्सेना

सूरज से तपती धरती को मानसून जल्द सराबोर कर देगा। मौसम विभाग ने जब से दो साल के बाद अबकी बार पूरे देश में भरपूर वर्षा होने की बात कही है तब से देशवासी यही कह रहे हैं कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, लेकिन मानसून जब आयेगा तब आयेगा, फिलहाल तो सूखा प्रदेश की करोंड़ों की आबादी के लिये जानलेवा बना हुआ है। बुंदेलखंड का नाम दिमाग में आते ही चेहरे के सामने एक ऐसी तस्वीर घूमने लगती हैं, जहां भुखमरी हर तरफ दस्तक देती है। कुपोषण यहां अभिशाप की तरफ कुंडली मारे बैठा रहता है। पशु-पक्षी तो दूर, यहां इंसानों तक को एक-एक घूंट पानी के लिये जद्दोजहद करते देखा जा सकता है। हर तरफ सूखा ही सूखा नजर आता है। कोई भी मौसम हो और कोई भी महीना, यहां चंद दौलतमंदों और साहूकारों के घरों के अलाावा किसी भी चौखट पर खुशहाली डेरा नहीं डालती है। यह सिलसिला कोई दो-चार वर्ष पुराना नहीं है।
बुंदेलखंड कभी हरा-भरा हुआ करता था, खुशियां लोंगो के द्वार खड़ी रहती थीं, लेकिन सरकारी बेरुखी के साथ-साथ प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन करने वाले तत्वों ने बुंदेलखंड की हरियाली और खूबसूरती दोंनों पर ग्रहण लगा दिया। कुुंए, हैंडपम्प, पोखर, तालाब, नदियां सब सूख गये हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, बुंदेलखंड के ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में पेयजल संकट गहराता जा रहा है। पेयजल संकट इतना भयावह है कि ग्रामीण कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। लोग सुबह से ही पानी की तलाश में निकल जाते हैं और शाम होने तक उन्हें अगर पानी मिल पाता है तो यह उनका नसीब है। बुंदेलखंड की सूखे की समस्या से निपटने के लिये बांध बनाये गये थे, लेकिन अब बांध का पानी भी सूखने लगा है। कई सालों से बारिश न होने से जलस्तर बहुत नीचे खिसक गया है। जानवरों के लिए भी पीने को पानी नहीं है। आलम यह है जानवर पानी की तलाश में तलहट के कीचड़ में फँसकर दम तोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। सूखे के चलते खेती की दुर्दशा ने किसानों को खुदकुशी करने को मजबूर कर दिया है।
up sukhaगौरतलब है कि बुंदेलखंड के किसान पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से आत्महत्या और सर्वाधिक जल संकट से जूझ रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सूखे की भीषण मार झेल रही बुन्देलखण्ड की बंजर धरती के किसान इस बार भी पहले सूखा और तैयार फसल पर ओलों की बारिश से आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। पिछले दो महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो, जब किसी किसान के आत्महत्या का मामला सामने न आया हो। अगर यह कहा जाये कि बुंदेलखंड पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भुखमरी और सूखे की वजह से अब तक 62 लाख से अधिक किसान यहां से पलायन कर चुके हैं। तकरीबन सभी राजनीतिक दल किसानों के लिए झूठी हमदर्दी जताते रहते हैं। समूचे बुन्देलखण्ड में स्थानीय मुद्दे गायब हैं और उसकी जगह जातिवादी की राजनीति चरम पर है। बुन्देलखण्ड के जिलों में बांदा से 7 लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से 3 लाख 44 हजार 801, महोबा से 2 लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से 4 लाख 17 हजार 489, उरई (जालौन) से 5 लाख 38 हजार 147, झांसी से 5 लाख 58 हजार 377 व ललितपुर से 3 लाख 81 हजार 316 और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले जनपदों में टीकमगढ़ से 5 लाख 89 हजार 371, छतरपुर से 7 लाख 66 हजार 809, सागर से 8 लाख 49 हजार 148, दतिया से 2 लाख 901, पन्ना से 2 लाख 56 हजार 270 और दतिया से 2 लाख 70 हजार 277 किसान और कामगार आर्थिक तंगी की वजह से महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं।
बुंदेलखंड के लिये राहत पैकेज बेइमानी हो गये हैं। ऊपर से जितना पैसा चलता है, वह जरूरतमंद किसानों और ग्रामीणों तक पहुंचते-पहुंचते तितर-बितर हो चुका होता है। सूखे से जूझ रहे यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों को एनडीआरएफ के तहत सूखा राहत के रूप में 1,303 करोड़ रुपए की राशि मिलेगी, जबकि मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी को बढ़ाकर 150 रुपए प्रति दिन कर दिया गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा प्रदेश की स्थिति का जायजा लेने के बाद यह फैसला लिया गया। यह भी तय किया गया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को तेज किया जाएगा और इसका विस्तार सभी ब्लॉकों में किया जाएगा ताकि आय का वैकल्पिक स्रोत सृजित हो सके। इसके अलावा बुंदेलखंड में विभिन्न परियोजनाओं और योजनाओं के तहत प्राथमिकता से पानी टंकियों के निर्माण, कुंआ खुदाई, खेतों में तालाबों का निर्माण आदि कराया जाएगा। इसी के साथ सहायता राशि किसाानों के बैंक खाते में सीधे भेजी जा रही है। गृह मंत्रालय जांच करेगा कि क्या राज्य आपदा राहत कोष के तहत 25 प्रतिशत की सीमा पर छूट दी जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के किसानों के लिए सूखा भले ही अभिशाप बना हो, लेकिन यह सूखा खनन कारोबार से जुड़े माफियाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। नदियों का जलस्तर घट जाने का बेजा लाभ उठाते हुए कारोबारी पुलिस और प्रशासन के गठजोड़ से ‘लाल सोना’ यानी बालू (रेत) लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। ’

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