दस्तक-विशेषसाहित्य

फाग के भाग कहा कहिए

 

उर्मिल कुमार थपलियाल

नई तर्ज की होली है
ये होली बड़बोली है।
पहले थी मनभावन होली
मन फागुन तन सावन होली।
प्यार से भीगी पावन होली
नेताओं के जुमलों जैसी
अबकी लोकलुभावन होली।

पहले की होली होली थी
अब होली हुड़दंगा है।
पहले जो अधनंगा था
अब वो पूरा नंगा है।
ये कैसी राधा है जिसने
गांठ शरम की खोली है।
राजनीति की तरह बेशरम
ना लहंगा ना चोली है।
नई तर्ज की होली है
अजब-गजब की होली है।

पहले मालामाल थी होली
गुझियों सी तरमाल थी होली।
ढोल, मृृदंग धमाल थी होली
खुशबू भरा रूमाल थी होली।
अब तो कीचड़ है-गोबर है
पहले रंग गुलाल थी होली।
धुत नशे में किसे क्या कहें
ये किन्नर वो छंगा है।
पहले की होली, होली थी
अब तो करफ्यू-दंगा है।

नई तर्ज की होली है
निरी भांग की गोली है।
जैसी भी है होली है।

Related Articles

Back to top button