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बजट के बाद RBI की मौद्रिक नीति पर टिकीं लोगों की निगाहें

केन्द्रीय रिजर्व बैंक अपनी छठी मौद्रिक समीक्षा नीति का ऐलान करने जा रही है. मौजूदा वित्त वर्ष की आखिरी द्विमासिक समीक्षा में जहां केन्द्रीय बैंक की नजर महीने की शुरुआत में आए केन्द्र सरकार के बजट पर रहेगी. वहीं पूरे देश की नजर केन्द्रीय बैंक पर टिकी है कि क्या अप्रैल में संभावित आम चुनावों से ठीक पहले वह कारोबारियों और मध्यम वर्ग को ब्याज दरों में राहत देने का ऐलान करेगी.

बजट के बाद RBI की मौद्रिक नीति पर टिकीं लोगों की निगाहें अपनी द्विपक्षीय मौद्रिक समीक्षा में केन्द्रीय बैंक देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति और वैश्विक अर्थव्यवस्था से मिल रही चुनौतियों को मापते हुए देश के सभी सरकारी और गैर-सरकारी बैंकों के लिए रेपो रेट और कैश रिजर्व रेशियो निर्धारित करता है. रेपो रेट वह दर है जिसपर देश का कोई बैंक रिजर्व बैंक से कम अवधि का कर्ज लेता है. रेपो रेट से देश में ब्याज दरें निर्धारित की जाती है जिसपर कारोबारी और आम बैंक उपभोक्ता को बैंक से लिए गए कर्ज अथवा बैंक में जमापूंजी पर ब्याज मिलता है. वहीं कैश रिजर्व रेशियो किसी बैंक के पास मौजूद कुल मुद्रा का वह हिस्सा है जो केन्द्रीय बैंक के अधीन है. इस रेशियो को बढ़ा घटा कर रिजर्व बैंक बाजार में तरलता और बैंक की कर्ज देने की क्षमता में परिवर्तन करता है.

तीन दिनों तक चलने वाली बैठक के आखिरी दिन होने वाले ऐलान पर देशभर के कारोबारियों की नजर इसलिए भी रहती है कि वह मौजूदा समय में महंगाई का आकलन किस तरह कर रहा है. इसके अलावा केन्द्रीय बैंक केन्द्र सरकार की जारी और प्रस्तावित योजनाओं का सरकारी खजाने पर पड़ने वाले असर का भी आकलन करते हुए केन्द्र सरकार को सलाह देने का काम करता है. गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मौद्रिक नीति को लेकर विवाद सामने आए हैं. इन विवादों के चलते पूर्व के गवर्नरों ने केन्द्र सरकार पर रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने की बात कही है.

गौरतलब है कि 1 फरवरी को आए अंतरिम बजट में केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान योजना का ऐलान किया है. इसके अलावा मध्यम वर्ग को इनकम टैक्स में राहत देने का फैसला लिया है. जहां मध्यम वर्ग के लिए किए गए टैक्स ऐलान का असर नए वित्त वर्ष में सरकारी खजाने पर दिखेगा वहीं किसानों की योजना को मौजूदा वित्त वर्ष से ही शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है. इन दोनों की योजनाओं का असर केन्द्र सरकार के राजस्व और खर्च पर पड़ेगा जिसके चलते पहले से ही चुनौती दे रहा वित्तीय घाटा और गंभीर हो सकता है. लिहाजा, इस छठवीं मौद्रिक नीति में लोगों की नजर इस बात पर भी होगी कि क्या रिजर्व बैंक वित्तीय घाटे पर कोई टिप्पणी करता है.

गौरतलब है कि अंतरिम बजट में केन्द्र सरकार ने अनुमान दिया है कि अगले वित्त वर्ष 2019-20 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स से राजस्व में 18 फीसदी का इजाफा होते हुए लगभग 7.60 ट्रिलियन (लाख करोड़) रुपये हो जाएगा. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार को उम्मीद है कि वह जीएसटी राजस्व के लक्ष्य को पाने में 1 ट्रिलियन रुपये से चूक जाएगी. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार का लक्ष्य 7.43 ट्रिलियन रुपये रखा गया था लेकिन अंतरिम बजट में इसे बदलकर 6.43 ट्रिलियन रुपये आंका गया है. जाहिर है, इससे केन्द्र सरकार का वित्तीय घाटा संकट बनने के लिए तैयार है.

वहीं इनकम टैक्स के जरिए राजस्व में अंतरिम बजट का आकलन है कि 17.2 फीसदी के इजाफे के साथ 6.2 ट्रिलियन हो जाएगा. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में 22.8 फीसदी अधिक राजस्व का आकलन किया गया है. वित्त वर्ष 2017-18 में इनकम टैक्स से सरकार को कुल 4.3 ट्रिलियन रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था. लेकिन अंतरिम बजट में किए गए प्रावधानों को देखें को केन्द्र सरकार ने लगभग 3 करोड़ टैक्स पेयर को रीबेट के जरिए राहत देते हुए जीरो टैक्स करने का ऐलान किया है. केन्द्र सरकार को उम्मीद है कि इस राहत से उसके राजस्व को 68.5 मिलियन रुपये का नुकसान होगा. लिहाजा, राजस्व के इस क्षेत्र में भी सरकार के लिए चुनौती गंभीर है.

वहीं केन्द्र सरकार के राजस्व का तीसरा पक्ष भी चुनौतियों से भरा है. केन्द्र सरकार अपने विनिवेश के लक्ष्य से दूर खड़ी है. वित्त वर्ष 2018-19 के विनिवेश लक्ष्य 80 हजार करोड़ रुपये में सरकार लगभग 55 फीसदी पीछे है. अंतरिम बजट के मुताबिक सरकार को मौजूदा वर्ष में विनिवेश के जरिए महज लगभग 35 हजार करोड़ रुपये मिले हैं. इसके बावजूद अंतरिम बजट में केन्द्र सरकार ने 90 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की उम्मीद विनिवेश के जरिए लगा रखी है.

रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा में आर्थिक जानकारों की नजर जहां सरकार के लेखा जोखा पर रहेगी वहीं यह भी देखा जाएगा कि क्या चुनावी वर्ष में कारोबारी तेजी के लिए केन्द्रीय बैंक छोटे और मध्यम करोबारी के साथ-साथ मध्यम वर्ग को ब्याज दरों में राहत का रास्ता साफ करेगी?

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