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बसंत पंचमी के दिन याद किये जाते हैं पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गोरी को उतारा था मौत के घाट


नई दिल्ली : आज देश में बसंत पंचमी का त्योहार उत्साह से मनाया जा रहा है। हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है बसंत पंचमी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन विद्या की देवी सरस्‍वती का जन्‍म हुआ था। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्‍वती की पूजा की जाती है। साथ ही इसी दिन से ऋतुराज बसंत प्रारंभ होता है।वहीँ आज का दिन दिल्‍ली पर शासन करने वाले अंतिम हिंदू शासक पृथ्‍वीराज चौहान के शौर्य और पराक्रम के लिए भी याद किया जाता है। गौरतलब है कि पृथ्वीराज चौहान 15 वर्ष की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ़ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानियां थी, 1192 ईसवीं में बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्‍वीराज चौहान ने आंखें न होने के बावजूद अपने दुश्‍मन मोहम्‍मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था। पृथ्‍वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्‍मद ग़ोरी का वध किया था वह वाकया भी बड़ा दिलचस्‍प और हैरतअंगेज है।पृथ्‍वीराज चौहान और मोहम्‍मद ग़ोरी के बीच तराइन के मैदान में कई बार युद्ध हुआ था। पहले के युद्धों में मोहम्मद ग़ोरी को मुंह की खानी पड़ी। पृथ्‍वीराज चौहान उदार हृदय वाले थे और उन्‍होंने युद्ध में शिकस्‍त देने के बावजूद ग़ोरी को जिंदा छोड़ दिया। लेकिन तराइन के मैदान में जब युद्ध हुआ तब ग़ोरी जीत गया और उसने पृथ्‍वीराज को नहीं छोड़ा, वह पृथ्‍वीराज चौहान को अपने साथ अफगानिस्‍तान ले गया और वहां उनकी आंखें फोड़ दीं। ग़ोरी का प्रतिशोध यही शांत नहीं हुआ और उसने उन्‍हें जान से मारने की ठान ली। पृथ्‍वीराज चौहान शब्‍दभेदी बाण चलाने के उस्‍ताद थे। वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई ने ग़ोरी को ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत करने का परामर्श दिया। ग़ोरी मान गया और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा कि चंदबरदाई ने कहा था, तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया-
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान अपने प्रिय मित्र चंदबरदाई का इशारा समझ गए और उन्‍होंने तनिक भी भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगा लिया कि ग़ोरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है। फिर क्‍या था उन्‍होंने जो बाण मारा वह सीधे ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे का वध कर आत्मबलिदान दे दिया। इतिहासकारों के अनुसार 1192 ईसवीं की यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

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