फीचर्डराष्ट्रीय

बागपत शूट-आउट से खुली सरकार की आंख, अब तिहाड़ की तरह हाई सिक्योरिटी जेलों में रहेंगे कैदी

अब तक जेलों में बैठकर संगीन वारदातों को अंजाम देने वाले जरायम पेशेवर जेल में ही हत्या जैसी संगीन वारदात करने से नहीं हिचक रहे। प्रदेश में यह पहला मौका नहीं, जब बागपत जेल में हत्या हुई है। इससे पहले मथुरा में हुए गैंगवार में राजेश टोंटा व उसके गैंग के राजकुमार को गोली मारी गई। फिर इलाज को जाते समय राजेश टोंटा की हत्या कर दी गई। इन साजिशों पर अंकुश के लिए तिहाड़ की तर्ज पर प्रदेश में हाई सिक्योरिटी जेल की आवाज पुरजोर ढंग से उठाई जा रही है।
कारागार प्रशासन द्वारा प्रदेश के सभी कारागार अधीक्षकों से इस दिशा में सुझाव मांगे गए हैं, जिसमें सबसे बड़ा सुझाव हाई सिक्योरिटी जेल का है। जिसमें कहा गया है कि प्रदेश को तीन भागों में बांटकर तीन हाई सिक्योरिटी जेलें बनाई जाएं। जिनमें संवेदनशील व अतिसंवेदनशील श्रेणी के अपराधियों को रखा जाए और इन जेलों की सुरक्षा का जिम्मा कारागार प्रशासन के बजाय किसी अन्य सुरक्षा एजेंसी को दिया जाए। इस सुझाव के आने के बाद ललितपुर में पहली हाई सिक्योरिटी जेल बनाने का विचार चल पड़ा है और वहां जमीन भी इसके लिए चिह्नित कर ली गई है।

तिहाड़ की तर्ज पर हो हाई सिक्योरिटी जेल की सुरक्षा
स्थानीय कारागार के वरिष्ठ अधीक्षक आलोक सिंह बताते हैं कि बागपत कांड के बाद आईजी/एडीजी कारागार की ओर से सभी अधीक्षकों से बेहतर सुरक्षा इंतजाम व संसाधनों और बदलाव को लेकर सुझाव मांगे गए हैं। इसी दिशा में बागपत जैसी शहर से बाहर की जेलों को लेकर कड़े सुरक्षा इंतजामों पर जोर दिया गया है। प्रदेश के कई शहर ऐसे हैं, जहां शहर से बाहर जेल हैं। वहां सुरक्षा व मुलाकात की व्यवस्था बेहद जटिल व कड़ी होना जरूरी है।

प्रदेश को तीन भागों में यानि पूर्वांचल, मध्यांचल व पश्चिमांचल में विभाजित कर तीन हाई सिक्योरिटी जेलों के सुझाव भी पहुंचे हैं, जिनमें तीनों हिस्सों के अपराधियों को रखा जाए। इन जेलों में तिहाड़ की तर्ज पर सीआईएसएफ या किसी अन्य सुरक्षा एजेंसी से सुरक्षा कराने, बाहर से कोई सामान न ले जाने की व्यवस्था के मानक होने चाहिए। जैसा कि तिहाड़ में है। तभी इस तरह के अपराधों पर अंकुश लग सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं कि नई जेल बने, वर्तमान में संचालित प्रदेश की किन्हीं तीन जेलों को चिह्नित कर उन्हें हाई सिक्योरिटी जेल की तर्ज पर संचालित किया जा सकता है।

अंग्रेजों के जमाने का स्वीकृत स्टाफ है अलीगढ़ जेल में
1148 बंदियों की क्षमता वाली इस जेल में बंदी रक्षक व प्रधान बंदी रक्षकों के कुल 113 व 13 यानि 126 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 106 वर्तमान में तैनात हैं। यानि 20 की कमी है। इसी तरह डिप्टी जेलर के 7 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से यहां मात्र 4 की तैनाती वर्तमान है। मगर वर्तमान में जेल में क्षमता से तीन गुना यानि 3300 बंदी हैं। इसी के अनुसार सुरक्षा स्टाफ होना चाहिए। मगर इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। मौजूदा क्षमता के अनुसार जेल में 350 बंदी रक्षक व प्रधान बंदी रक्षक, 20 के करीब डिप्टी जेलर और दो जेलर चाहिए।

बागपत कांड के बाद तीन वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी प्रदेश स्तर पर बनाई गई है। यह जल्द ही जेलों व सुझावों का अध्ययन कर गृह विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे। इसमें स्टाफ की कमी, सुरक्षा इंतजामों पर फोकस से लेकर जैसे तमाम तथ्यों पर अध्ययन किया जा रहा है। ललितपुर में पहली हाई सिक्योरिटी जेल पर विचार चल रहा है। इसके लिए वहां जमीन भी लगभग चिह्नित है।
संजीव त्रिपाठी डीआईजी जेल आगरा

Related Articles

Back to top button