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बीआईएस ने दी बड़ा गारंटी: अब स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालेगा मोबाइल हैंडसेट

देश के भीतर मोबाइल फोन हैंड्सेट तैयार करने वाली कम्पनियां और विदेशों से आयातित फोन सेट अब पूरी तरह सुरक्षित होंगे। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने यह गारंटी दी है। दो साल पहले एक जांच रिपोर्ट में सामने आया था कि सस्ते और कम ब्रांडेड कंपनियों के हैंडसेट में शीशा, मरकरी और केडमियम जैसे हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल हो रहा है। इसके बाद डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी व बीआईएस ने मिलकर इस समस्या का हल तलाशा।बीआईएस ने दी बड़ा गारंटी: अब स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालेगा मोबाइल हैंडसेट
बीआईएस द्वारा टेस्टिंग के बाद सभी मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कम्पनियों को नए मापदंडों की सूची सौंपी गई थी।अब सभी कम्पनियों के उत्पादों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। कोई भी नया सेट मार्केट में उतरने से पहले बीआईएस उसकी जांच कर उसे अपना ई-लेबल प्रदान करता है।

दूरसंचार मंत्रालय, आईटी, स्वास्थ्य विभाग और बीआईएस की एक संयुक्त पहल के तहत यह पता लगाया गया कि मोबाइल हैंडसेट के निर्माण में कौन से हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल हो रहा है। मोबाइल हैंडसेट या बैटरी गर्म होने जैसी शिकायतें मिलने के बाद स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जांच-पड़ताल कराई गई। रिपोर्ट में सामने आया कि कई लोग जिनके फोन की एसएआर तय सीमा से ज्यादा थी, वे गुस्से और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से पीड़ित मिले।ऐसे लोगों के मस्तिष्क और त्वचा की कोशिकाओं पर हैंडसेट का हानिकारक प्रभाव पड़ रहा था।

मोबाइल हैंडसेट बनाते मरकरी, केडमियम, शीशा और हेक्सावेलेंट क्रोमियम जैसे हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल होता है। हालांकि इनके प्रयोग की एक सीमा तय की गई है, लेकिन कई कंपनियां अपने हैंडसेट में बड़े स्तर पर इनका इस्तेमाल कर रही थी। इसके चलते फोन में रेडिएशन एनर्जी की मात्रा बढ़ जाती है। मानव शरीर में इस एनर्जी को सहने की एक निश्चित सीमा होती है, जिसे स्पेसिफिक अब्र्जोप्शन रेट (एसएआर) कहा जाता है।

बीआईएस ने अब एसएआर की अधिकतम सीमा 1.6 वाट प्रति किलोग्राम तय की है। यदि हैंडसेट में एसएआर उक्त सीमा से ज्यादा है तो मोबाइल से निकलने वाली हानिकारक रेडियो किरणे ब्रेन, कान और त्वचा की कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव डालती हैं। सामान्य भाषा में हम इसे यूं समझ सकते हैं, जैसे किसी व्यक्ति का वजन सौ किलो है तो मानक के हिसाब से उसका शरीर 160 वाट की ऊर्जा प्रति सेकेंड ले सकता है।

अगर इससे ज्यादा ऊर्जा आती है तो वह हानिकारक है। इसके अलावा लंबी बात करने पर यदि हैंडसेट गर्म होता है या बैटरी फट जाती है तो इसकी वजह भी हैंडसेट के निर्माण में हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल होना है। जांच रिपोर्ट में यह भी देखने को मिला था कि हैंडसेट के निर्माण में एसएआर की मात्रा तय सीमा 1.6 वाट प्रति किलोग्राम से अधिक इस्तेमाल की जा रही थी। ब्रांडेड कंपनियों के फोन में भी एसएआर का स्तर 1.56 तक मिला था।

सुरक्षा मानकों के दायरे में आई सभी कम्पनियां

ग्राहकों की सुरक्षा के लिए बीआईएस ने अब हैंडसेट से लेकर बैटरी तक फोन के हर पुर्जे का सुरक्षा मानक तैयार कर दिया है। बीआईएस के एक अधिकारी के मुताबिक, सैमसंग, एप्पल, ब्लैकबेरी, सोनी, माइक्रोमेक्स, डेल, डिक्सन, विडियोकॉन, एलजी, कैनन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने वाली करीब पांच सौ कम्पनियां बीआईएस में पंजीकृत हो चुकी हैं। इनमें केवल मोबाइल कम्पनियों की बात करें तो लगभग 70 देशी-विदेशी कंपनियों ने अपने साढ़े पांच सौ के करीब मॉडल पंजीकृत करा दिए हैं। भले ही हैंडसेट का निर्माण देश-विदेश में कहीं पर भी हो, लेकिन उसे बीआईएस के मानकों का पालन करना होगा। हर कंपनी अपने हैंडसेट का मॉडल बाजार में उतारने से पहले उसे बीआईएस की लैब में भेजती है।

फिर भी मोबाइल धारक बरतें ये सावधानी

– बातचीत के लिए कम पावर वाले ब्लूटूथ का इस्तेमाल

– हैडफोन या वायरलैस फोन ज्यादा फायदेमंद है

– लंबी बात की बजाए छोटी बात करें, एसएमएस का ज्यादा प्रयोग किया जाए

– सिग्नल क्वालिटी अच्छी नहीं है तो बात करने से परहेज करें

– शरीर में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे पेसमेकर, कान में मशीन लगना या फिर ब्रेन सर्जरी हुई है तो 15 सैं. मी. दूरी से मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें

– बच्चों और गर्भवती महिलाओं को लंबी बात करने से बचना चाहिए

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