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बैंकों में जमा पैसा भी अब सुरक्षित नहीं रहा

-सनत जैन

संविधान से मिलने वाले नागरिकों के मूलभूत अधिकारों पर सरकार कानूनों के माध्यम से सीमित और खत्म करने की काम कर रही है। यह चिंता का विषय है। केंद्र सरकार फाइनेंशियल रिजाल्यूशन डिपाजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआई) बिल लेकर आ रही है। इस बिल के मध्यम से सरकार को अधिकार मिलेगा कि वह एक बोर्ड गठित करेगी। इस बोर्ड में 11 सदस्य नियुक्त होंगे। 7 सदस्य सरकार नियुक्त करेगी। 4 सदस्य स्वतंत्र क्षेत्र से नियुक्त होंगे। इसके चयन में भी अप्रत्यक्ष रुप से सरकार की ही भूमिका होगी। इस बोर्ड में अध्यक्ष के अलावा रिजर्व बैंक, सेबी, इरडा, पीएफ,आरडीए, वित्त मंत्रालय का एक प्रतिनिधि, 3 स्वतंत्र पूर्ण कालिक सदस्य तथा 2 स्वतंत्र सदस्य, निर्धारित समय सीमा के नियुक्त होंगे। इस बोर्ड द्वारा जो निर्णय लिए जाऐंगे। इस बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी सकेगी। इस बोर्ड के गठन से रिजर्व बैंक के अधिकार सीमित हो जाएगें। बोर्ड का नियंत्रण सरकार के हाथों पर आ जाएगा। इस बिल को लाने का सरकारी प्रयोजन बैंक, बीमा कम्पनियों और वित्तीय संस्थानों को दिवालिया होने से बचाने का है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान यदि दिवालिया होने की स्थिति में होंगे, तो बोर्ड को अधिकार होगा कि जमाकर्ताओं की राशि को निकालने के अधिकार को सीमित कर दिया जाए। ऐसी स्थिति में बैकों और वित्तीय संस्थानों में जमा रकम निकालने पर बोर्ड उसी तरह का निर्णय कर सकेगी। जैसा सरकार ने नोटबंदी के समय किया था। बोर्ड के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार जमाकर्ताओं तथा नागरिकों को नहीं होगा। इस बिल में अभी एक लाख रुपया तक के जमा पर पैसा वापिस करने की गारंटी रिजर्व बैंक द्वारा पोषित बीमा कम्पनी की थी। इस बिल के पारित हो जाने के बाद अब एक लाख रुपया भी वापिस नहीं मिलेगा। इससे लोगों की जीवनभर की कमाई जो उसने वित्तीय संस्थानों में बचत के रूप में बैंक, एफडी, पीएफ, बीमा और अन्य निवेश योजनाओं में जमा कर रखी है। वह उन्हं कब मिलेगी, कोई गारंटी नहीं होगी।

बैंकों और वित्तीय संस्थानों को दिवालिया होने से बचाने और सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए एफआरडीआई बिल लेकर आ रही है। इस बिल के पारित हो जाने के बाद जनता को दो नुकसान उठाना पडेंगे। उसकी जमा रकम को निकालने का अधिकार जमाकर्ता को नहीं होगा। वहीं सरकार टेक्स से वसूल की गई राशि वित्तीय संस्थाओं बेल आउट पैकिज के रुप में वित्तीय संस्थाओं को देकर उन्हें बचाने की कोशिश करेगी। भारत सरकार ने पिछले दो वर्षों में जो बैंक आर्थिक रुप से दिवालिया होने वाले हैं। उन्हें आर्थिक सहायता (पूंजी) निवेश करेगी। इस प्रस्तावित बिल के पास होने पर जनता जर्नादन का पैसा समय पर लौटाने की जिम्मेदारी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के स्थान पर बोर्ड के निर्णय पर होगी। बैंक और वित्तीय संस्थायें बोर्ड जाकर जमा, राशि को वापिस करने के लिए बोर्ड से समय ले लेगी। लोगों को अपनी जरुरत पर उसका जमा पैदा नहीं मिलेगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार बैंक, बीमा कम्पनियों और अन्य वित्तीय संस्थानों में 67 फीसदी आम जनता का पैसा एक लाख रुपया से कम जमा है। अभी एक लाख तक जमा बीमा होने से सुरक्षित था। इसकी जबाब देही अभी रिजर्व बैंक की थी। इस बिल के पास हो जाने से रिजर्व बैंक की भी कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाएगी। 2008 में अमेरिका में आये वित्तीय संकट के कारण जब सैकडों बैंक दिवालिया हुए थे, उसके बाद अमेरिका में बेल इन और बेल आउट पैकिज से अमेरिका ने वित्तीय संस्थानों को बचाने का काम किया था। इसमें आम नागरिकों को ही सबसे बडा नुकसान उठाना पडा। साइप्रस में बेल इन प्रावधान के कारण जमाकर्ताओं को 50 फीसदी रकम गंवाना पडी थी। वहीं अमेरिका में बेल आउट पैकिज में सरकार ने जनता से टैक्स के रुप में जमा राशि को बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को देकर उन्हें डूबने से बचाया। जिसके कारण वहां के नागरिकों की सुविधायें कम कर दी गई। लोगों को नौकरी से हाथ धोना पडा।

संविधान ने भारतीय नागरिकों को जो मूलभूत अधिकार दिए है। उसमें न्यायपालिका को सर्वोच्च अधिकार दिए गए है। संविधान के मूलभूत अधिकारों में न्यायिक समीक्षा, पंथ निरपेक्षता, स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था, आर्थिक स्वतंत्रता मूलभूत अधिकारों में बिना किसी भेदभाव के शामिल है। संविधान के मूलभूत अधिकारों में संशोधन का अधिकार संसद को नहीं है। 1973 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय खण्डपीठ ने केशवानंद भारती के मामले में स्पष्ट निर्णय दिया था। संविधान के आर्टिकल 368 के अंतर्गत ही संसद कानून बना सकती है। किन्तु संविधान की मूल प्रस्तावना और उसके अधिकारों में छेड्छाड् करने का अधिकार संसद के पास भी नहीं है। प्रस्तावित बिल में नागरिकों के मूलभूत मौलिक अधिकार को सरकार समाप्त करने का प्रयास कर रही है। वहीं बोर्ड के फैसले के खिलाफ न्यायिक समीक्षा को भी खत्म कर रही है। यदि ऐसा हुआ तो भारत में संविधान अधिकारों का सबसे बडा हनन होने जा रहा है। आर्थिक गुलामी की ओर ले जाने का अब तक सबसे बडा कदम होगा। इस बिल का कानून बनने के बाद जिस तरह नोटबंदी के बाद आम जतना परेशान रही। उससे कहीं ज्यादा परेशानी इस कानून से आम जनता को झेलना पडेगी। भारत के नागरिक वर्षो की जमा पूंजी का उपयोग अपनी जरूरतों के लिए नहीं कर पाएंगे। इससे अराजकता की स्थिति बन सकती है।

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

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