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बड़ा सवाल: मौजूदा मकान खरीदारों के हितों की GST काउंसिल ने की अनदेखी

जीएसटी काउंसिल ने दिल्ली में आयोजित अपनी 34वीं बैठक में रेजिडेंशियल फ्लैट पर नई दरों को अंतिम रूप दे दिया है. कहा जा रहा है कि इससे मकान और सस्ते होंगे. लेकिन इसमें बिल्डर्स को कुछ ऐसी छूट दी गई है जिससे इस तरह की बातें होने लगी हैं कि वास्तव में पहले से मकान बुक कर चुके खरीदारों को फायदा नहीं होगा और जीएसटी काउंसिल ने ऐसे हितों की अनदेखी की है.

जीएसटी काउंसिल ने मंगलवार को अपनी बैठक में जिस ट्रांजिशन स्कीम को मंजूरी दी है, उसमें बिल्डरों को विकल्प दिया गया है कि अभी चालू प्रोजेक्ट पर वे चाहें तो नई जीएसटी रेट लागू करें या पुराने रेट ही जारी रखें. जीएसटी काउंसिल ने वैसे नए प्रोजेक्ट्स के लिए मकान खरीदारों के लिए बड़ी राहत दी है. अफोर्डेबल निर्माणधीन मकानों के लिए जीएसटी रेट 1 फीसदी और अन्य मकानों के लिए 5 फीसदी निर्धारित की गई है.

क्या है पेच?

निर्माणाधीन इमारतों में नई रेट या पुरानी रेट स्वीकार करने का बिल्डर्स को विकल्प देने के निर्णय से यह सवाल उठाए जाने लगे हैं कि जीएसटी कौंसिल ने मकान खरीदारों के हितों का ध्यान रखा है या बिल्डर्स के. इसकी वजह यह है कि ऐसे प्रोजेक्ट के लिए बिल्डर पुरानी रेट ही जारी रखना चाहेंगे, क्योंकि उन्हें इस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा.

पहले जीएसटी की प्रभावी दर 8 फीसदी प्रभावी थी और इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ यह 12 फीसदी था. नई जीएसटी रेट अफोर्डेबल निर्माणाधीन मकान के लिए 1 फीसदी और अन्य मकानों के लिए 5 फीसदी हैं. इसमें ऐसे प्रोजेक्ट शामिल हैं जिनकी बुकिंग 1 अप्रैल, 2019 से पहले हो गई हो. 1 अप्रैल, 2019 से शुरू होने वाले नए प्रोजेक्ट के लिए अनिवार्य रूप से नई दरें लागू होंगी.

अभी चल रहे जो प्रोजेक्ट 31 मार्च, 2019 तक नहीं पूरे हो रहे उनके लिए बिल्डर्स को पुरानी दरों (8 फीसदी प्रभावी दर या इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 12 फीसदी) पर टैक्स जमा करने की छूट दी गई है. हालांकि, इसके लिए एक निश्चित समय सीमा तय की गई है. यानी अगर निर्धारित समय सीमा में बिल्डर इस विकल्प को स्वीकार नहीं करता तो उस प्रोजेक्ट पर नई दरें लागू हो जाएंगी.

मीटिंग के बाद रेवेन्यू सेक्रेटरी अजय भूषण पांडेय ने कहा कि सरकार को यह उम्मीद है कि बिल्डर कम टैक्स रेट का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगे, क्योंकि उनके ही सुझाव पर दरें तय की गई हैं. पीडब्ल्यूसी इंडिया में इनडायरेक्ट टैक्स के पार्टनर ऐंड लीडर प्रतीक जैन कहते हैं, ‘ऐसे विकल्प से उन डेवलपर को फायदा होगा जिन्होंने पहले से ही अपने प्रोजेक्ट की बिक्री कीमत तय करने में समूचे इनपुट क्रेडिट का आकलन कर लिया है. कई मामलों में यह फायदा ग्राहकों तक भी पहुंच सकता है.’

उन्होंने बताया कि यदि बिल्डर नई दरों से मिला फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंचाता है, तो ग्राहक नेशनल एंटी प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी की शरण में जा सकता है.

जीएसटी काउंसिल ने बड़े और सही बिल्डर्स को बढ़ावा देने के लिए एक अच्छी शर्त यह रखी है कि नई दरें उन्हीं प्रोजेक्ट्स पर लागू होंगी जिनमें 80 फीसदी इनपुट और इनपुट सेवाएं (कैपिटल गुड्स, डेवलपमेंट राइट का ट्रांसफर, एफएसआई, लॉन्ग टर्म लीज प्रीमियम आदि) रजिस्टर्ड व्यक्तियों से खरीदेंगे.

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