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भारतीय वीर शहीदों को याद कर रही दुनिया, 74 हजार सैनिकों ने लिया था विश्व युद्ध में हिस्सा

नई दिल्ली : आज के इतिहास में जिस घटना को दुनिया प्रथम विश्व युद्ध कहती है, उसके लिए लाखों अविभाजित हिंदुस्तानी नागरिकों को जिन्हें युद्ध कौशल में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था, को बड़े समुद्री जहाजों के जरिए युद्ध में भाग लेने के लिए ईस्ट अफ्रीका, फ्रांस, मिस्र, पर्शिया जैसे देशों में भेज दिया गया। 11 नवंबर को दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के समापन के तौर पर जानती है, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत की जीत हुई थी। 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में अविभाजित हिंदुस्तान के हजारों सैनिकों ने हिस्सा लिया था। युद्ध समाप्ति के दिन को कॉमनवेल्थ देशों में इसे एक ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद किया जाता है। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों की भूमिका को पूरी दुनिया में सम्मान के साथ याद किया जाता है। पिछले सप्ताह ब्रिटेन की संसद में प्रधानमंत्री थेरेजा मे ने भी भारतीय सैनिकों को याद किया। उन्होंने कहा, हम इस युद्ध विजय में उन 74 हज़ार सैनिकों को नहीं भूल सकते जो अविभाजित भारत के नागरिक थे। उन सैनिकों ने संघर्ष किया और अपनी जान गंवाई, इनमें से 11 को उनके अदम्य साहस के लिए विक्टोरिया क्रॉस से भी सम्मानित किया गया। प्रथम विश्व युद्ध में भारत प्रत्यक्ष हिस्सेदार नहीं था, लेकिन अविभाजित भारत की इस युद्ध में भागीदारी जरूर थी।

भारत से 13 लाख से अधिक आदमी और 1.7 लाख से अधिक जानवरों को युद्ध क्षेत्र में भेजा गया। इस युद्ध में 74 हजार भारतीय सैनिक शहीद भी हुए और आज के रुपए की गणना में 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा का धन भारत से युद्ध क्षेत्र में खर्च किया गया। इस युद्ध में भारत के लिहाज से सबसे अधिक चिंताजनक बात थी कि युद्ध के लिए भेजे गए बहुत से भारतीयों को जरूरी कौशल प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया था। हालांकि, युद्ध में भेजी गई कुछ टुकड़ियां प्रशिक्षित थीं और उनकी साहसिक भागीदारी इतिहास में पूरे सम्मान के साथ याद की जाती हैं। मैसूर और जोधपुर लैंसर्स की टुकड़ियों ने जबरदस्त वीरता का परिचय दिया और हाईफा विजय के लिए इजरायल आज भी उनका आभार मानता है। पश्चिमी क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की साहसिक भागीदारी को लेकर कोई दो राय नहीं है।

अविभाजित भारत से जिस जत्थे को युद्ध के लिए भेजा गया था वह बहुआयामी था। उसमें कई जाति, अलग-अलग भाषा बोलने वाले शिक्षित, निरक्षर और अलग धार्मिक मान्यताओं वाले सैनिक थे। भारतीय सैनिकों के लिखित अवशेष पत्र या डायरी के फॉर्म में इस वजह से ज्यादा नहीं हैं। हालांकि, ब्रिटिश लाइब्रेरी में एक अनाम सैनिक का पत्र हाल ही में सार्वजनिक हुआ है, जिसमें सैनिक ने युद्ध की भयावहता की तुलना महाभारत के युद्ध से की।

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